मुखौटा फर्मों पर गिरेगी गाज, 2.25 लाख कंपनियों को कारण बताओ नोटिस

Edited By jyoti choudhary,Updated: 10 Sep, 2018 12:40 PM

notice to 2 25 lakh mukhuta companies

कंपनी मामलों के मंत्रालय ने मुखौटा कंपनियों की अगली खेप का पंजीकरण रद्द करना शुरू कर दिया है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2.25 लाख कंपनियों को कारण बताओ नोटिस भेजा गया था।

नई दिल्लीः कंपनी मामलों के मंत्रालय ने मुखौटा कंपनियों की अगली खेप का पंजीकरण रद्द करना शुरू कर दिया है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2.25 लाख कंपनियों को कारण बताओ नोटिस भेजा गया था। इनमें से 70,000 का पंजीकरण रद्द कर दिया गया है और अन्य 1 लाख कंपनियों का पंजीकरण जल्दी ही रद्द कर दिया जाएगा। 

PunjabKesariपहली सूची में 3 लाख मुखौटा कंपनियों का पंजीकरण रद्द 
इससे पहले सरकार ने पहली सूची में शामिल 3 लाख संदिग्ध मुखौटा कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर दिया था। इन कंपनियों का नाम कंपनी रजिस्ट्रार की सूची से हटा दिया गया था, उनके बैंक खाते जब्त कर लिए गए थे और मंत्रालय ने उनके लेनदेन की जांच शुरू कर दी थी। इसके अलावा मंत्रालय गायब हो चुकी कंपनियों की भी तलाश कर रहा है।

PunjabKesariलापता कंपनियों के निदेशकों की खोज
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हम लापता कंपनियों के निदेशकों को खोजने की कोशिश में लगे हैं। अभी मंत्रालय ऐसी 70 कंपनियों के बारे में खोजबीन कर रहा है। हम कई वर्षों से ऐसी कंपनियों की तलाश कर रहे हैं जो स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्घ है लेकिन उनका कोई अतापता नहीं है। जहां तक ऐसी बाकी कंपनियों का सवाल है तो हम उनके कार्यालयों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उनके निदेशकों को खोजा जा सके।' 

PunjabKesariकंपनियों को भेजा गया नोटिस 
1996 से 2004 के बीच मंत्रालय को 200 से अधिक लापता कंपनियों के बारे में पता चला था जिनमें से 77 का अब भी पता नहीं चल पाया है जबकि बाकी कंपनियों को खोजा जा चुका है। इनमें से कई कंपनियों ने आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के लिए आवेदन किया था लेकिन उसके बाद उनका कोई पता नहीं चला। इन सभी कंपनियों को नोटिस भेजा गया था जिस पर 100 कंपनियों ने जवाब दिया। बाकी कंपनियों का कुछ पता नहीं चला पाया है। 

1992 से 1996 के बीच 4,000 से अधिक कंपनियां लापता पाई गई थीं। इतना ही नहीं, यह भी पता चला था कि ये कंपनियां धन शोधन में लिप्त थीं। इस बारे में प्राइम ने 1997 में एक अध्ययन किया था। इसके मुताबिक 1992 से 1996 के बीच आए सार्वजनिक निर्गमों में से करीब 85 फीसदी स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्घ नहीं हुए या उन्होंने कारोबार नहीं किया या उनका कारोबार नियमित नहीं था या वे अपने निर्गम मूल्य से बहुत कम पर कारोबार कर रहे थे। 
 

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