Edited By Supreet Kaur,Updated: 29 Jun, 2018 09:43 AM
बीते कुछ वर्षों में सैंकड़ों नॉन-रैजीडैंट इंडियंस (एन.आर.आइज) को इन्कम टैक्स डिपार्टमैंट और प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) ने या तो सम्मन किया है या उन्हें नोटिस दिए हैं। उनसे कुछ वर्षों की अपनी इन्कम और एसेट्स की जानकारी देने को कहा गया।
बिजनेस डेस्कः बीते कुछ वर्षों में सैंकड़ों नॉन-रैजीडैंट इंडियंस (एन.आर.आइज) को इन्कम टैक्स डिपार्टमैंट और प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) ने या तो सम्मन किया है या उन्हें नोटिस दिए हैं। उनसे कुछ वर्षों की अपनी इन्कम और एसेट्स की जानकारी देने को कहा गया। हालांकि अब ऐसे लोगों ने इंडियन अथॉरिटीज की नजरों से बचने का एक नया रास्ता ढूंढ लिया है। इसके लिए वे अपने पासपोर्ट में दर्ज भारतीय पते को बदलकर उसकी जगह वह पता दर्ज करवा रहे हैं जहां वे विदेश में रह रहे हैं।
इससे संबंधित देश में उनका टैक्स रैजीडैंसी स्टेटस साबित करने में मदद मिल रही है, साथ ही दूसरे देश (भारत) की सरकार से फाइनैंशियल इन्फॉर्मेशन खुद-ब-खुद आने का रास्ता भी रुक रहा है। पैराडाइज और पनामा पेपर्स में जिनके नाम सामने आए थे उनमें से काफी लोग एन.आर.आई. हैं। जिन विदेशी बैंकों में ऐसे एन.आर.आई. के खाते अपने या अपने परिवार के सदस्यों अथवा कम्पनियों या ऑफशोर ट्रस्ट के नाम पर हैं, उनके दस्तावेजों में नया पता दर्ज करवाया जा रहा है।
सूचना जुटाने में बैंक भारत सरकार के लिए अहम जरिया
पैसे को इधर-उधर करने के बारे में सूचना जुटाने में बैंक भारत सरकार के लिए अहम जरिया हैं लेकिन पतों में बदलाव से यह स्रोत सूख सकता है। विदेशी बैंक दूसरे देशों की अथॉरिटीज के साथ अपने ‘टैक्स रैजीडैंट्स’ की जानकारी सांझा नहीं करते हैं। बैंक के रिकॉर्ड में जब तक खाताधारक का लोकल पता होगा तब तक बैंक उसी देश को जानकारी देते हैं, न कि दूसरे देश (भारत) को।