Edited By jyoti choudhary,Updated: 07 Mar, 2020 02:39 PM
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बीते शुक्रवार को कच्चे तेल की कीमतों में 10 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। कच्चे तेल के भाव में यह गिरावट ओपेक देशों द्वारा प्रोडक्शन में कटौती नहीं करने के फैसले के बाद देखने को मिली। US WTI और ब्रेंट क्रूड के भाव में...
नई दिल्लीः अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बीते शुक्रवार को कच्चे तेल की कीमतों में 10 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। कच्चे तेल के भाव में यह गिरावट ओपेक देशों द्वारा प्रोडक्शन में कटौती नहीं करने के फैसले के बाद देखने को मिली। US WTI और ब्रेंट क्रूड के भाव में गिरावट आई। दोनों कच्चे तेल के भाव में क्रमश: 10.07 फीसदी और 9.4 फीसदी की गिरावट देखने को मिली। बता दें कि ओपेक और उसके सहयोगी देशों में बैठक के दौरान क्रूड प्रोडक्शन में कटौती करने पर बात नहीं बन सकी।
क्या है WTI और ब्रेंट क्रूड का भाव
शुक्रवार को US West Texax Intermediate (WTI) क्रूड का भाव 4.62 डॉलर यानी 10.07 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली। इसके बाद WTI का भाव 41.28 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया जोकि अगस्त 2016 के बाद सबसे न्यूनतम स्तर पर है। वहीं, ब्रेंट क्रूड की बात करें तो इसके भाव में भी 9.4 फीसदी की गिरावट देखने को मिली, जिसके बाद ब्रेंट क्रूड का भाव 45.27 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। जून 2017 के बाद यह अब तक का सबसे न्यूनतम भाव है।
सस्ता हो सकता है पेट्रोल-डीजल
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव में इस कटौती का सीधा लाभ घरेूल बाजार में भी देखने को मिलेगा। इस साल अब तक पेट्रोल के दाम में 4 रुपए प्रति लीटर की कटौती हो चुकी है। वहीं, डीजल के भाव की बात करें तो साल की शुरुआत से लेकर अब तक 4.15 रुपए प्रति लीटर तक की कटौती हुई है। केड़िया कमोडिटी के अजय केड़िया ने बताया कि अगर डॉलर के मुकाबले रुपए में तेजी आती है तो घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 3-4 रुपए प्रति लीटर तक की कटौती देखने को मिल सकती है। वहीं, अगर रुपए में आगे भी कमजोरी जारी रहती है तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बड़ी कटौती की उम्मीद कम हो जाएगी।
2008 में की गई थी सबसे बड़ी कटौती
कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद से ही कच्चे तेल के डिमांड में कमी रही है। यही कारण है कि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। बता दें कि पिछली बार साल 2008 में ओपेक व उसके सहयोगी देशों ने कच्चे तेल के उत्पादन में 42 लाख बैरल प्रति दिन की कटौती की थी। यह वैश्विक वित्तीय संकट का दौर था। इस फैसले के बाद ही कच्चे तेल के भाव को सपोर्ट मिला था।