ईरान पर अमेरिकी पाबंधियों से भारत सहित कई देश होंगे प्रभावित

Edited By jyoti choudhary,Updated: 09 May, 2018 06:04 PM

other asian oil buyers will deal with trump s sanctions on iran

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान पर लगाई गई पाबंधियों से बहुत से देश चिंतित हैं। ट्रंप के इस फैसले सेे भारत सहित अन्य देश भी प्रभावित होंगे, क्योंकि सभी तेल की खरीद ईरान से ही करते हैं।

नई दिल्लीः अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान पर लगाई गई पाबंधियों से बहुत से देश चिंतित हैं। ट्रंप के इस फैसले सेे भारत सहित अन्य देश भी प्रभावित होंगे, क्योंकि सभी तेल की खरीद ईरान से ही करते हैं। 

भारत में तेल शोधन कारखानों को उम्मीद थी कि वे ईरान से तेल का आयात लगातार कर सकते हैं। पाबंधियों के पिछले दौर के दौरान भारत को यह छूट थी कि वे अमेरिकी डॉलर की बजाए रुपए से भुगतान कर ईरानी तेल को सीमित तेल आयात कर सकता है।

ट्रंप के इस फैसले की जहां ईरान समेत दूसरे सहयोगी राष्ट्र आलोचना कर रहे हैं, वहीं उनके इस निर्णय का दुनिया पर बड़ा असर होने के आसार जताए जा रहे हैं। भारत समेत दूसरे एशियाई देशों पर भी इस कदम का कई रूप में प्रभाव पड़ सकता है।

ईरान तीसरा तेल निर्यात देश
तेल पैदा करने और निर्यात करने वाले ओपेक देशों में ईरान तीसरे नंबर पर है। खासकर एशियाई देशों को ईरान बड़े पैमाने पर तेल सप्लाई करता है। भारत में सबसे ज्यादा तेल ईराक और सऊदी अरब के बाद ईरान से आता है। भारत इस आयात को और बढ़ाने वाला है। हाल ही में जब ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी दिल्ली पहुंचे तो भारत ने उससे तेल आयात बढ़ाने का वादा किया। जिसके बाद ये समझा जा रहा है कि 2018-19 से ईरान और भारत के बीच तेल का कारोबार डबल हो जाएगा। 2017-18 की बात करें तो भारत ईरान से प्रतिदिन 2,05,000 बैरल तेल आयात करता है, जो 2018-19 में बढ़कर 3,96,000 बैरल प्रति दिन होने की संभावना है।

भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों पर असर
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत हमेशा से नियम आधारित संबंधों का समर्थक रहा है लेकिन अमेरिका का ईरान से समझौता तोड़ना एक तरीके की वादाखिलाफी के रूप में देखा जा रहा है। इसका असर भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों के अलावा बहुपक्षीय समझौतों पर भी पड़ सकता है। खासकर, यूएन क्लाइमेट चेंज समझौता और ट्रांस पैसिफिक समझौते से डोनाल्ड ट्रंप के कदम खींचने के बाद ऐसी चिंताएं और बढ़ गई हैं।

बता दें कि जुलाई 2015 में बराक ओबामा के दौर में एक समझौता हुआ था, जिसके तहत ईरान पर हथियार खरीदने पर 5 साल तक प्रतिबंध लगाया गया था। इसके अलावा मिसाइल प्रतिबंधों की समयसीमा 8 साल तय की गई थी। इस समझौते के बदले ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम का बड़ा हिस्सा बंद कर दिया था और बचे हिस्सों पर निगरानी के लिए सहमत हो गया था लेकिन ट्रंप ने इस समझौते से खुद को अलग कर लिया है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में राजनीति गरमा गई है।

तेल आपूर्ति में गिरावट
ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि वह ईरान के साथ वैकल्पिक समझौता करने के मूड में नहीं। पिछले दौर की पाबंधियों के दौरान ईरान की तेल आपूर्ति 10 लाख प्रति बैरल तक गिर गई थी। मगर जनवरी 2016 में पाबंधियां हटाने के बाद ईरान फिर से प्रमुख तेल निर्यातक देश के रूप में उभर आया। ईरान ने अपना तेल उत्पादन बढ़ाया और उसका निर्यात भी किया। उसने मार्च 2018 में 3.8 मिलियन बैरल प्रति दिन उत्पादन किया जो कि वैश्विक उत्पादन का 4 फीसदी है। इस वर्ष जनवरी-मार्च की पहली तिमाही में ईरान का तेल निर्यात 2 मिलियन बैरल प्रति दिन का था। 

विशेषज्ञों का अनुमान है कि ईरान की आपूर्ति 3-10 लाख बैरल प्रति दिन तक कम हो सकती है। ये इस बात पर निर्भर करता है कि कितने अन्य देश वाशिंगटन की राह पर तलते हैं। अमेरिका के अधिकांश सहयोगी देश ट्रंप के समझौते से अलग होने के फैसले से असहमत है।

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!