कीटनाशक दवाओं के बाजार में विदेशी माल का दबदबा

Edited By Supreet Kaur,Updated: 15 Jun, 2018 11:50 AM

overseas goods in the market of pesticide drugs

कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों के संगठन ने कीटनाशकों के लिए आयात पर बढ़ती निर्भरता पर चिंता जताई है। उसका कहना है कि आयातित कीटनाशकों में प्रयुक्त होने वाली दवाओं के पंजीकरण की आवश्यकता खत्म होने से देश में कीटनाशकों का आयात तेजी से बढ़ रहा है, घरेलू...

नई दिल्लीः कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों के संगठन ने कीटनाशकों के लिए आयात पर बढ़ती निर्भरता पर चिंता जताई है। उसका कहना है कि आयातित कीटनाशकों में प्रयुक्त होने वाली दवाओं के पंजीकरण की आवश्यकता खत्म होने से देश में कीटनाशकों का आयात तेजी से बढ़ रहा है, घरेलू विनिर्माताओं के लिए समस्या उत्पन्न हुई है और किसानों को आयातित रसायन के लिए महंगा दाम चुकाना पड़ रहा है।

पैस्टीसाइड मैन्युफैक्चरर्स एंड फार्मूलेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (पी.एम.एफ.ए.आई.) के अध्यक्ष प्रदीप दवे ने कहा, ‘‘यू.पी.ए. शासनकाल के दौरान वर्ष 2007 में कीटनाशकों में प्रयुक्त होने वाली दवाओं का विवरण (जिसे टैक्नीकल बोला जाता है) के सैंट्रल इंसैक्टेसाइड बोर्ड के साथ पंजीकरण की अनिवार्यता खत्म कर दी गई थी और केवल कीटनाशक दवा (फार्मूलेशन) का पंजीकरण करने की व्यवस्था को बरकरार रखा गया जहां से सारी समस्या उत्पन्न हुई है।’’ दवे ने कहा, ‘‘भारत में कीटनाशक क्षेत्र वर्ष 1968 के इंसैक्टेसाइड कानून’ से संचालित होता है।’’

भारतीय कंपनियों के लिए कीटनाशकों का उत्पादन करना मुश्किल
उन्होंने कहा, ‘‘इस व्यवस्था के कारण भारतीय कंपनियों के लिए कीटनाशकों का उत्पादन करना मुश्किल हो गया है क्योंकि इसमें कीटनाशकों को तैयार करने के लिए लगभग 5-6 साल लगते हैं और भारी मात्रा में आंकड़ों को एकत्रित करना होता है साथ ही कंपनियों पर इस काम के लिए 250 से 300 करोड़ रुपए का खर्च आता है जबकि विदेशी एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास ये आंकड़े तैयार होते हैं और उन्हें अपने ‘टैक्नीकल’ (कीटनाशक में प्रयुक्त होने वाली दवाओं) का पंजीकरण करवाने की अनिवार्यता नहीं रह गई है। इसके अलावा उनके पास 20 साल तक का पेटैंट भी होता है जिस कारण दूसरी कंपनियों के लिए उसकी नकल पेश करने में कानूनी अड़चनें आती हैं।’’

विदेशी कंपनियां कर रहीं अनाप-शनाप रसायनों का इस्तेमाल 
उन्होंने कहा, ‘‘इस स्थिति में विदेशों से आयात होने वाले कीटनाशकों और उसमें प्रयुक्त अवयवों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना मुश्किल हो गया है जिसके परिणामस्वरूप विदेशी कंपनियां अनाप-शनाप रसायनों का इस्तेमाल कर रही हैं क्योंकि अब उन्हें ‘टैक्नीकल’ का पंजीकरण नहीं करवाना होता है। इसके कारण किसानों को कम उपज मिल रही है लेकिन फिर भी अपनी फसलों की रक्षा के लिए वे महंगे दामों पर विदेशी कीटनाशकों को खरीदने के लिए विवश हैं।’’ इसके उलट भारतीय कंपनियों के लिए अपनी कीटनाशक दवा (फार्मूलेशन) के साथ ‘टैक्नीकल’ (दवा में प्रयुक्त होने वाले रसायनों का विवरण) का पंजीकरण कराना अनिवार्य बना हुआ है।  ऐसे में देश में कीटनाशक क्षेत्र पर बहुराष्ट्रीय कीटनाशक कंपनियों के एकाधिकार की स्थिति होती जा रही है जबकि भारतीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा का समान अवसर मिले तो गुणवत्ता के साथ-साथ किसानों को सस्ती दरों पर कीटनाशक को सुलभ करवाया जा सकेगा। 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!