साल 2018 में समस्याओं के भंवर में रहा इस्पात क्षेत्र, नए साल से बेहद उम्मीदें

Edited By jyoti choudhary,Updated: 21 Dec, 2018 04:22 PM

pains of steel after 2018 of raw material scarcity and insolvency glut

इस्पात क्षेत्र के लिए साल 2018 उथल-पुथल भरा रहा। इस क्षेत्र में वित्तीय संकट की स्थिति और बिगडऩे से कर्ज अदा नहीं कर पाने के मामले सामने आए और कुछ कंपनियां दिवालिया भी हुईं। कई वैश्विक दिग्गजों समेत मौजूदा प्रवर्तकों ने

नई दिल्लीः इस्पात क्षेत्र के लिए साल 2018 उथल-पुथल भरा रहा। इस क्षेत्र में वित्तीय संकट की स्थिति और बिगडऩे से कर्ज अदा नहीं कर पाने के मामले सामने आए और कुछ कंपनियां दिवालिया भी हुईं। कई वैश्विक दिग्गजों समेत मौजूदा प्रवर्तकों ने दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता प्रक्रिया के जरिए क्षेत्र में पांव जमाने की कोशिश की जिसमें अधिकांश मामले अंतत: अदालत तक घिसट गए। 

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विशेषज्ञों तथा उद्योग जगत के अनुसार, इस्पात क्षेत्र के लिए उचित कीमत पर कच्चे माल की उपलब्धता पर संशय के बादल छाए रहने तथा चीन से सस्ती डंपिंग के खतरे ने स्थिति को और खराब किया। हालांकि, सरकार ने हिम्मत से काम लिया और नए साल में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत बढ़ाना, भारत निर्मित इस्पात के लिए नए बाजार खोजना और उद्योग जगत को विशिष्ट इस्पात के उत्पादन के लिए प्रेरित करना उसकी प्राथमिकता में है।

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कच्चा इस्पात उत्पादन को लेकर सरकार का लक्ष्य
सरकार ने मार्च, 2018 के अंत तक सालाना 13.8 करोड़ टन कच्चा इस्पात उत्पादन को बढ़ाकर 2030 तक 30 करोड़ टन करने का लक्ष्य तय किया है। प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत के लिए भी 2030 तक 160 किलोग्राम का लक्ष्य रखा गया है। केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा, ''भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत करीब 68 किलोग्राम है जबकि इसका वैश्विक औसत करीब 208 किलोग्राम है। यह बेहद कम है।'' उन्होंने कहा, ''बाजार तभी संभव है जब उपभोग भी बढ़े। नए साल में हमारा ध्यान देश की प्रति व्यक्ति इस्पात खपत को बढ़ाना है।''

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