न्यायालय में याचिकाकर्ताओं ने स्थगित किस्त पर ब्याज लगाने को ‘जुर्माने’ के समान बताया

Edited By rajesh kumar,Updated: 03 Sep, 2020 11:30 AM

petitioners court termed imposition interest deferred installment penalty

कोविड-19 संकट के समय ऋणों की मासिक किस्त स्थगन की अवधि पर ब्याज वसूले जाने को उच्चतम न्यायालय के समक्ष कर्जदारों और विभिन्न प्रतिनिधि संस्थाओं ने बुधवार को ‘दंडात्मक’ कार्रवाई बताते हुए इसका विरोध किया।

नई दिल्ली: कोविड-19 संकट के समय ऋणों की मासिक किस्त स्थगन की अवधि पर ब्याज वसूले जाने को उच्चतम न्यायालय के समक्ष कर्जदारों और विभिन्न प्रतिनिधि संस्थाओं ने बुधवार को ‘दंडात्मक’ कार्रवाई बताते हुए इसका विरोध किया। मामले में विभिन्न याचिकाओं पर न्यायालय ने बुधवार को अंतिम सुनवाई शुरू की। इससे पहले शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण किस्त स्थगन (मोरेटोरियम) की अवधि के दौरान मासिक किस्त पर ब्याज वसूले जाने के फैसले की समीक्षा करने के लिए कहा था।

केंद्र और रिजर्व बैंक ने न्यायालय को सूचित किया कि ऋण किस्त स्थगन अवधि की मासिक किस्तों पर ब्याज से छूट देना ‘वित्त के साधारण नियमों’ के खिलाफ होगा। साथ ही यह उन लोगों के साथ अन्याय होगा जिन्होंने समय पर किस्तों का भुगतान किया। सरकार और केंद्रीय बैंक ने कहा कि रिजर्व बैंक पहले ही अधिक दबाव वाले चुनिंदा कर्जदारों के लिए पहले ही स्थगन अवधि को दो साल तक बढ़ाने की योजना पेश कर चुका है। इसका फैसला संबंधित बैंक कर्जदार की स्थिति का जायजा लेकर कर सकते हैं।

ईमानदार कर्जदारों को दंडित न करें
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव दत्ता ने याचिकाकर्ता गजेंद्र शर्मा की ओर से कहा, ‘बैंक ऋणों का पुनर्गठन करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वह मोरेटोरियम योजना के तहत स्थगित मासिक किस्तों पर ब्याज लगाकर ईमानदार कर्जदारों को दंडित नहीं कर सकते।’ पीठ में न्यायमूर्ति आर. एस. रेड्डी और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह भी शामिल हैं।

किस्तों पर ब्याज लेना कर्जदारों पर ‘दोहरी मार’ 
दत्ता ने पीठ से कहा, ‘स्थगन अवधि के दौरान स्थगित किस्तों पर ब्याज लेना योजना का लाभ लेने वाले कर्जदारों पर ‘दोहरी मार’ है।’ गजेंद्र शर्मा पर एक बैंक का आवास ऋण है। उनकी ओर से पेश दत्ता ने कहा, ‘आरबीआई यह योजना लाया और हमने सोचा कि हम किस्त स्थगन अवधि के बाद ईएमआई भुगतान करेंगे, बाद में हमें बताया गया कि चक्रवृद्धि ब्याज लिया जाएगा। यह हमारे लिए और भी मुश्किल होगा, क्योंकि हमें ब्याज पर ब्याज देना पड़ेगा।’

उन्होंने आगे कहा उन्होंने (आरबीआई) बैंकों को बहुत अधिक राहत दी है, 'लेकिन असल मायनों में हमें कोई राहत नहीं दी गई।’ उन्होंने कहा मेरी (याचिकाकर्ता) तरफ से कोई चूक नहीं हुई और एक योजना का हिस्सा बनने के लिए ब्याज पर ब्याज लेकर हमें दंडित नहीं किया जा सकता।

कर्जदारों को कोविड-19 के दौरान दंडित किया जा रहा
दत्ता ने दावा किया कि भारतीय रिजर्व बैंक एक नियामक है, ‘बैंकों का एजेंट नहीं है’ और यहां कर्जदारों को कोविड-19 के दौरान दंडित किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘अब सरकार कह रही है कि ऋणों का पुनर्गठन किया जाएगा। आप पुनर्गठन कीजिए, लेकिन ईमानदार कर्जदारों को दंडित न कीजिए।’ कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (क्रेडाई) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी. ए. सुंदरम ने पीठ से कहा कि किस्त स्थगन को कम से कम छह महीने के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।

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