Edited By Supreet Kaur,Updated: 30 Oct, 2019 01:28 PM
अर्थशास्त्र में नोबेल प्राइज जीतने वाले भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्तेय डिफ्लो और माइकल क्रैमर ने कई देशों में हेल्थकेयर पर प्रयोग में पाया कि जब भी समाज के कमजोर तबके के लोगों को पेट भरने के लिए अतिरिक्त साधन...
नई दिल्लीः अर्थशास्त्र में नोबेल प्राइज जीतने वाले भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी एस्तेय डिफ्लो और माइकल क्रैमर ने कई देशों में हेल्थकेयर पर प्रयोग में पाया कि जब भी समाज के कमजोर तबके के लोगों को पेट भरने के लिए अतिरिक्त साधन मिलते हैं तो वे खाने पर उतना ही खर्च करते हैं जिससे भूख मिट जाए और उनकी प्राथमिकता में पौष्टिक खाना नहीं होता है। पेट की आग बुझाने के बाद वे बाकी बचे पैसे मनोरंजन जैसी चीजों पर खर्च कर देते हैं।
ज्यादा पैसे मिलने पर भी पोषण नहीं बढ़ाता गरीब
उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत न्यूट्रिशन के मामले में अफ्रीका के कुछ देशों के मुकाबले नीचे है लेकिन समृद्धि के मामले में उनसे कहीं आगे है। बनर्जी के मुताबिक, भारत में आमतौर पर गरीब से गरीब आदमी भी खाने पर 50 फीसदी से ज्यादा खर्च नहीं करता। बड़ी बात यह है कि ज्यादा पैसे आने पर वह अपने खाने में पोषण नहीं बढ़ाता, बल्कि उसे घटाकर 30 फीसदी तक ले आता है। ऐसे में सवाल उठता है कि गरीब आदमी अतिरिक्त रकम का आखिर करता क्या है? वे लोग अतिरिक्त रकम के साथ वही करते हैं जो भरे पेट वाले लोग करते हैं। खाने में वे पोषण भुलाकर बेहतर स्वाद लेने की कोशिश करते हैं।
खाने से ज्यादा जरूरी टीवी!
इंटरव्यू में उन्होंने मोरक्को की एक घटना का जिक्र किया था, जहां उनकी मुलाकात भूख से खस्ताहाल एक शख्स से हुई थी। उन्होंने उससे पूछा कि अगर ज्यादा पैसा मिले तो वह क्या करेगा तो उसने कहा कि ज्यादा खाना खरीदेगा। जितना ज्यादा पैसा, उतना ज्यादा खाना लेकिन जब वह उसके घर पहुंचे तो पाया कि उसके यहां एक टीवी और डीवीडी प्लेयर भी था। उसके पास खाना नहीं है लेकिन टीवी है, यह पूछे जाने पर उस शख्स ने कहा कि खाने से ज्यादा जरूरी टीवी है।