Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Mar, 2018 05:28 PM
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में वर्तमान में जारी समस्याओं के समाधान के लिए इन बैंकों के निजीकरण की मांग के बीच उद्योग जगत से जुड़े लोगों ने कहा है कि निजीकरण समस्या का हल नहीं है।
हैदराबादः सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में वर्तमान में जारी समस्याओं के समाधान के लिए इन बैंकों के निजीकरण की मांग के बीच उद्योग जगत से जुड़े लोगों ने कहा है कि निजीकरण समस्या का हल नहीं है। उनका मानना है कि बेहतर संचालन के लिए बैंकों के निदेशक मंडल को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखने और सशक्त बनाने की जरूरत है।
इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफओ) वी. बालाकृष्णन ने सार्वजनिक बैंकों के कामकाज और उनकी निजीकरण को लेकर बहस के बीच याद दिलाते हुए कहा कि ग्लोबल ट्रस्ट बैंक एक निजी बैंक था, जिस समय वह असफल हुआ। उन्होंने कहा, "देश में बैकिंग प्रणाली से अछूती आबादी की संख्या अधिक है, ऐसे में आपको सार्वजनिक बैंकों की जरूरत है ताकि पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ सामाजिक उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।"
बालाकृष्णन ने कहा कि भारत की बचत दर भी बहुत अधिक है और पीएसबी बचतकर्ताओं को आवश्यक सुरक्षा और सुविधा प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि बैंकों के सीईओ के चयन, उनके पारितोषिक, प्रदर्शन मूल्यांकन और निदेशक मंडल में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति के लिए बैंक बोर्ड ब्यूरो को प्रभावी बनाए जाने की जरूरत है। बालाकृष्णन ने जोर देते हुए कहा कि बैंकों को राजनीतिक हस्तक्षेप सेपूरी तरह मुक्त रखा जाना चाहिए। अंतत: सख्त नियामकीय तंत्र और नियामकीय निगरानी के साथ उचित संस्थागत तंत्र सार्वजनिक बैंकों की सफलता का निर्धारण करेगा। वहीं, इंफोसिस के एक अन्य पूर्व सीएफओ टी वी मोहनदास पई ने नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष के विचार से सहमति जताई है, जिन्होंने भारतीय स्टेट बैंक को छोड़कर अन्य बैंकोंके निजीकरण की मजबूत वकालत की है।