राजन ने मोदी के ‘न्यूनतम सरकार- कारगर प्रशासन’ के वादे पर उठाया सवाल

Edited By Pardeep,Updated: 28 Mar, 2019 12:15 AM

rajan raised question on the promise of minimum govt effective governance

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बुधवार को नरेन्द्र मोदी सरकार के ‘न्यूनतम सरकार- कारगर प्रशासन’ के वादे पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि मोदी के शासन में सरकार ने बिना किसी अंकुश के अधिक ताकत हासिल की और इस दौरान कई तरह की अक्षमताएं पैदा...

मुंबई: रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बुधवार को नरेन्द्र मोदी सरकार के ‘न्यूनतम सरकार- कारगर प्रशासन’ के वादे पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि मोदी के शासन में सरकार ने बिना किसी अंकुश के अधिक ताकत हासिल की और इस दौरान कई तरह की अक्षमताएं पैदा हुई। इस जाने माने अर्थशास्त्री ने कहा कि इस तरह के शासन से सरकार पर निर्भर और कमजोर निजी क्षेत्र के सामने कोई विकल्प नहीं रह गया और उसे सरकार की हर तरह के फैसले की प्रशंसा और ताली बजाने पर मजबूर होना पड़ा।
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राजन ने यहां अपनी एक पुस्तक ‘‘द थर्ड पिलर’ के अनावरण के मौके पर कहा, ‘‘सवाल यह खड़ा होता है कि हम इस मामले में (न्यूनतम सरकार- कारगर प्रशासन) के वादे पर कितना खरा उतरे हैं? मेरा मानना है कि हम लगातार बाबुओं और नौकरशाही पर ही लगातार अधिक से अधिक निर्भर रहे हैं।’’ राजन ने स्वीकार किया न्यूनतम आय गारंटी (न्याय) योजना के मामले में उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि यह योजना लागू करने लायक है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने नकदी हस्तांतरण और कांग्रेस ने न्याय योजना के वादे के जरिये यह दिखाया है कि गरीबी दूर करने के लिए नकद हस्तांतरण ही बेहतर मार्ग है।

यहां यह गौर करने वाली बात है कि न्यूनतम सरकार - कारगर प्रशासन देने का वादा वर्ष 2014 के चुनाव अभियान के दौरान मोदी का प्रमुख नारा रहा है। पिछले पांच साल के उनके शासन के दौरान कुछ अर्थशास्त्रियों ने सरकार के नोटबंदी और माल एवं सेवाकर (जीएसटी) को जल्दबाजी में लागू करने जैसे फैसलों को लेकर सरकार की आलोचना करते रहे हैं। 

राजन सितंबर 2013 से सितंबर 2016 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे हैं। उसके बाद वह अमेरिका की शिकागो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के तौर पर काम करने लगे। उन्होंने कहा, ‘‘हमें उदारीकरण के मामले में वापस नहीं लौटना है। उन्होंने हाल ही में शुरू कि गई संरक्षात्मक शुल्क लगाने की आलोचना की। इस्पात और टिकाऊ उपभोक्ता सामानों जैसे की टेलीविजन और स्मार्टफोन पर इस तरह के शुल्क लगाए गए। इसका असर यह हुआ कि कुछ बड़ी विदेशी कंपनी को स्थानीय स्तर पर अपना विनिर्माण बंद करना पड़ा।       
     

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