Edited By jyoti choudhary,Updated: 07 Jan, 2019 03:24 PM
कर्ज चूक करने वाले बिल्डरों के मामलों को दिवाला कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के पास भेजने से पहले नए रियल एस्टेट कानून रेरा के तहत नियामकों के पास भेजा जाए। रियल एस्टेट कंपनियों के संगठन नारेडको ने यह सुझाव दिया है
नई दिल्लीः कर्ज चूक करने वाले बिल्डरों के मामलों को दिवाला कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के पास भेजने से पहले नए रियल एस्टेट कानून रेरा के तहत नियामकों के पास भेजा जाए। रियल एस्टेट कंपनियों के संगठन नारेडको ने यह सुझाव दिया है। नारेडको ने यह भी सुझाव दिया है कि किसी नए परियोजना से संबंधित विवाद को रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) कानून (रेरा) के तहत गठित राज्य नियामकों द्वारा सुना जाए। इन्हें उपभोक्ता अदालतों के पास न भेजा जाए। पिछले सप्ताह हुई एक बैठक में नारेडको ने ये सुझाव केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के समक्ष रखे। यह बैठक रेरा के तहत आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए अंशधारकों के सुझाव लेने के लिए बुलाई गई थी। यह कानून रियल एस्टेट क्षेत्र को पारदर्शी बनाने के लिए और रातों रात गायब होने वाले आपरेटरों पर अंकुश लगाने के लिए लाया गया है।
नारेडको के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदनी ने कहा, ‘‘अभी बिल्डरों के खिलाफ शिकायतें उपभोक्ता अदालतों तथा रेरा के तहत स्थापित रीयल एस्टेट नियामक प्राधिरकणों द्वारा सुनी जाती हैं। इससे असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है।’’ उन्होंने कहा कि नई परियोजनाओं को रेरा के तहत ही रखा जाए। उन्होंने इस कानून के प्रावधानों में आवश्यक बदलावों को आवश्यक बताते हुए कहा कि इससे बिल्डरों को कई मंचों पर मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ता है। हीरानंदनी ने कहा कि बिल्डरों द्वारा कर्ज चूक से संबंधित मामलों को शुरुआत में रेरे नियामकों के पास भेजा जाना चाहिए। उसके बाद ही उनके खिलाफ दिवाला प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए।