Edited By Supreet Kaur,Updated: 28 Jun, 2018 09:39 AM
बैंकिंग फ्रॉड के लगभग 6500 मामले इस साल सामने आए हैं। इनमें से 85 प्रतिशत केस पब्लिक सैक्टर बैंकों के हैं। इनमें 30000 करोड़ से ज्यादा का नुक्सान हुआ है। इसका पता आर.बी.आई. की हालिया फाइनैंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट से चला है। उसके मुताबिक 2018 में हुए...
बिजनेस डेस्कः बैंकिंग फ्रॉड के लगभग 6500 मामले इस साल सामने आए हैं। इनमें से 85 प्रतिशत केस पब्लिक सैक्टर बैंकों के हैं। इनमें 30000 करोड़ से ज्यादा का नुक्सान हुआ है। इसका पता आर.बी.आई. की हालिया फाइनैंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट से चला है। उसके मुताबिक 2018 में हुए टॉप 10 फ्रॉड में बैंकों को 10000 करोड़ रुपए से ज्यादा का चूना लगा है। वित्त वर्ष 2017 में बैंकों को लगभग 5000 फ्रॉड में लगभग 20000 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ था।
बैंकिंग रैगुलेटर ने कहा है कि हाल के वर्षों में इंडियन बैंकिंग सैक्टर में 1 लाख से ज्यादा के फ्रॉड की संख्या और उसमें होने वाले नुक्सान में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। अगर इस मोर्चे पर पब्लिक और प्राइवेट की तुलना करें तो पाएंगे कि 85 प्रतिशत फ्रॉड के मामले सरकारी बैंकों के साथ हुए हैं, हालांकि उनका कारोबारी शेयर इतना ज्यादा नहीं है। 2017-18 के दौरान बैंकिंग फ्रॉड में सबसे ज्यादा उछाल लोन से जुड़े मामलों में आया है। इसकी सबसे बड़ी वजह कार्ड और इंटरनैट बैंकिंग से जुड़े स्कैम में हुई बढ़ौतरी है।
आर.बी.आई. के डाटा के मुताबिक बैंकिंग सैक्टर में जितने फ्रॉड हुए हैं उनमें पब्लिक सैक्टर बैंकों का शेयर उनके क्रैडिट और डिपॉजिट शेयर के मुकाबले बहुत ज्यादा है। क्रैडिट में सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत है जबकि डिपॉजिट में उनका शेयर 75 प्रतिशत है। रैगुलेटर ने रिपोर्ट में लिखा है कि लोन में सरकारी बैंकों का जितना मार्कीट शेयर है उससे कहीं ज्यादा उनमें फ्रॉड हुआ है।