विदेशी निवेश पर आर.बी.आई. सख्त, कंपनियों में हलचल

Edited By Pardeep,Updated: 14 Jul, 2018 04:50 AM

rbi on foreign investment strict stir in companies

कई कम्पनियां विदेशी निवेश को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ  इंडिया (आर.बी.आई.) की पूछताछ से हिल गई हैं। ये निवेश पिछले कई साल के दौरान इन कम्पनियों में हुए हैं। कम्पनियों को निवेश की जानकारी के साथ डैक्लारेशन भी देना है। ऐसे में उन्हें गलत रिपोॄटग के गंभीर...

मुम्बई: कई कंपनियां विदेशी निवेश को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आर.बी.आई.) की पूछताछ से हिल गई हैं। ये निवेश पिछले कई साल के दौरान इन कम्पनियों में हुए हैं। कंपनियों को निवेश की जानकारी के साथ डैक्लारेशन भी देना है। ऐसे में उन्हें गलत रिपोर्टिंग के गंभीर परिणाम का डर सता रहा है। आर.बी.आई. ने इसके लिए कंपनियों को डिटेल फॉर्मेट दिया है। 

इसके मुताबिक कंपनी के बड़े अधिकारी (कंपनी सैक्रेटरी या कोई डायरैक्टर) को साइन किया हुआ डैक्लारेशन देना होगा, जिसमें लिखा होगा, ‘‘अब तक जो विदेशी निवेश मिला है और जिसकी जानकारी दी जा चुकी है, उसका इस्तेमाल प्रिवैंशन ऑफ  मनी लांड्रिंग एक्ट 2002 (पी.एम.एल.ए.) के मुताबिक किया गया है।’’ 

कंपनियों को निवेश के स्ट्रक्चर की भी देनी होगी जानकारी 
आई.सी. यूनिवर्सल लीगल के सीनियर पार्टनर तेजस चितलांगी ने कहा कि कंपनियों को निवेश के ऐसे स्ट्रक्चर की भी जानकारी देनी होगी, जिन्हें सख्त रुख अपनाए जाने पर तत्कालीन नियमों का उल्लंघन माना जा सकता है। इसी वजह से कंपनियों ने स्ट्रक्चर की जानकारी पहले नहीं दी थी। चितलांगी ने कहा कि यह मुश्किल स्थिति है क्योंकि इससे पहले के नॉन-कम्प्लायंस के मामलों के सामने आने का डर है।

अधिकांश कंपनियां नहीं देना चाहतीं डैक्लारेशन
अधिकांश कंपनियां यह डैक्लारेशन नहीं देना चाहतीं। दरअसल कई कंपनियों ने विदेशी निवेश की लिमिट या विदेशी करंसी में कर्ज संबंधी पाबंदियों से बचने की तरकीब अपनाई थी। वे नहीं चाहतीं कि नए रिपोर्टिंग सिस्टम की वजह से इसकी डिटेल सामने आए। लॉ फर्म खेतान एंड कंपनी में पार्टनर मोइन लाढा ने कहा, ‘‘आर.बी.आई. और सरकार कुल विदेशी निवेश और उसकी क्वालिटी पर नजर रखना चाहती हैं।

हालांकि कंपनियों को कुछ आशंकाएं हैं। ड्राफ्ट फॉर्मस को देखने के बाद यह समझ नहीं आ रहा है कि विदेशी निवेश को पी.एम.एल.ए. जैसे सख्त कानून के साथ क्यों जोड़ा जा रहा है जबकि यह कानून खास मामलों से निपटने के लिए बनाया गया है।’’कंपनियों से 22 जुलाई तक सभी डायरैक्ट और इनडायरैक्ट इन्वैस्टमैंट के शुरूआती डाटा शेयर करने हैं। मोइन ने कहा कि कंपनियों के लिए वैसे भी इनडायरैक्ट इन्वैस्टमैंट पर नजर रखना मुश्किल होता है। विदेशी निवेश हासिल करने वाली कंपनी या लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप को यह भी बताना होगा कि फेमा के उल्लंघन को लेकर उसकी जांच एन्फोर्समेंट डायरैक्टोरेट (ई.डी.), सी.बी.आई. या कोई दूसरी एजैंसी तो नहीं कर रही है। 

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