Edited By jyoti choudhary,Updated: 02 Apr, 2018 02:46 PM
कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) के निर्धारण में ज्यादातर राज्य उच्च लागत व्यवस्था के पक्ष में हैं। इस व्यवस्था को मार्केट एश्योरेंस स्कीम नाम दिया गया है,
नई दिल्लीः कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) के निर्धारण में ज्यादातर राज्य उच्च लागत व्यवस्था के पक्ष में हैं। इस व्यवस्था को मार्केट एश्योरेंस स्कीम नाम दिया गया है, जिसमें जिंसों की खरीद और बिक्री में परिचालन संबंधी स्वतंत्रता मुहैया कराई गई है, जबकि केंद्र सरकार खर्च में हिस्सेदारी वहन करेगी।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में बनी मंत्रियोंं की अधिकार प्राप्त समिति एम.एस.पी. तय करने के आदर्श तरीके को अंतिम रूप देने की कोशिश कर रही है। नीति आयोग द्वारा तैयार किए गए अवधारणा नोट के मुताबिक अगर राज्यों को खरीद में फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य का 25 प्रतिशत का नुकसान होता है तो केंद्र सरकार मार्केट एश्योरेंस स्कीम के तहत राज्यों के 100 प्रतिशत नुकसान की भरपाई करेगी। अगर घाटा 25 से 30 प्रतिशत है तो केंद्र सरकार 60 प्रतिशत मुआवजा देगी और अगर नुकसान 30 से 40 प्रतिशत है तो केंद्र व राज्योंं को इसका बराबर बराबर बोझ सहना पड़ेगा।
नोट में कहा गया है, 'खरीद की लागत को अलग रखते हुए इस योजना में किसानों को मूल्य के नुकसान के भुगतान पर 25 प्रतिशत की स्वत: स्फूर्त सीलिंग लगी हुई है।' बहरहाल इस कार्यक्रम को चलाने में आने वाली लागत इसे स्वीकार करने की राह में बाधा बन सकती है।
अगर इस योजना में मूल्य नुकसान एम.एस.पी. का 15 प्रतिशत तक रहता है तो कुल व्यय करीब 403.2 अरब रुपए के करीब होगा। अगर मूल्य नुकसान एम.एस.पी. का 25 प्रतिशत तक पहुंचता है तो खर्च 537.7 अरब रुपए आएगा। गणना में यह माना गया है कि गेहूं और चावल को इस खरीद व्यवस्था में शामिल नहीं किया जाएगा और कुल उत्पादन का करीब 40 प्रतिशत अतिरिक्त के रूप में बेचा जाएगा। राज्य सरकारें महंगे एम.एस.पी. की योजना को प्राथमिकता देंगी लेकिन ज्यादा लागत इसे स्वीकार करने की राह में बाधा बन सकती है।