दिवालिया कानून पर SC का बड़ा फैसला, IBC की संवैधानिकता रहेगी बरकरार

Edited By jyoti choudhary,Updated: 25 Jan, 2019 02:17 PM

supreme court upholds constitutional validity of insolvency and bankruptcy code

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की संवैधानिक वैधता को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आईबीसी को चुनौती दी जाने वाली सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए इस कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखा है।

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की संवैधानिक वैधता को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आईबीसी को चुनौती दी जाने वाली सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए इस कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वे ‘संपूर्णता' में इसकी संवैधानिक वैधता को मान्यता देते हैं। कोर्ट ने 16 जनवरी को इस पर फैसला सुरक्षित रखा था। 

हालांकि कोर्ट ने यह साफ किया कि अधिनियम में संबंधित पक्ष से आशय कारोबार से जुड़ा कोई व्यक्ति होना चाहिए। इसी के साथ न्यायालय ने कई कंपनियों द्वारा आईबीसी के कई प्रावधानों को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट के मुताबिक कानून में एकमात्र बदलाव संबंधित व्यक्ति की परिभाषा में होगा। नई परिभाषा के मुताबिक वहीं व्यक्ति संबंधित व्यक्ति माना जाएगा, जो कर्जदाता या डिफॉल्ट कर चुकी कंपनी से संबंधित होगा।

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आपको बता दें कि आईबीसी यानी दिवालिया कानून को जून 2017 में लाया गया था, जब आरबीआई ने बैंकों को ये निर्देश दिए थे कि वे 12 बड़े कर्जदारों का मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रीब्यूनल में ले जाएं। बैंकों के बकाया 8 लाख करोड़ रुपए का करीब 25 प्रतिशत हिस्सा इन 12 कंपनियों पर बाकी था। इनमें से केवल पांच का मामला अब तक सुलझ पाया है।

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क्या होता है इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्ट्सी कोड
इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्ट्सी कोड के तहत अगर कोई कंपनी कर्ज नहीं देती है तो उससे कर्ज वसूलने के लिए दो तरीके हैं। एक या तो कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाए। इसके लिए एनसीएलटी की विशेष टीम कंपनी से बात करती है। कंपनी के मैनेजमेंट के राजी होने पर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और उसकी पूरी संपत्ति पर बैंक का कब्जा हो जाता है। बैंक उस असेट को किसी अन्य कंपनी को बेचकर कर्ज के पैसे वसूलता है। बेशक यह राशि कर्ज की राशि से कम होता है, मगर बैंक का पूरा कर्जा डूबता नहीं है।

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कर्ज वापसी का दूसरा तरीका है कि मामला एनसीएलटी में ले जाया जाए। कंपनी के मैनेजमेंट से कर्ज वापसी पर बातचीत होती है। 180 दिनों के भीतर कोई समाधान निकालना होता है। कंपनी को उसकी जमीन या संपत्ति बेचकर कर्ज चुकाने का विकल्प दिया जाता है। ऐसा न होने पर कंपनी को ही बेचने का फैसला किया जाता है। खास बात यह है कि जब कंपनी को बेचा जाता है तो उसका प्रमोटर या डायरेक्टर बोली नहीं लगा सकता।


 

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