टाटा-मिस्त्री विवाद: न्यायालय ने ‘हस्तक्षेप' के मुद्दे पर कारपोरेट और राजनीति का उदाहरण दिया

Edited By jyoti choudhary,Updated: 16 Dec, 2020 10:40 AM

tata mistry dispute court gives an example of corporate

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को शापूरजी पालोनजी (एसपी) समूह के टाटा संस के कामकाज में न्यासियों के हस्तक्षेप के आरोपों पर राजनीति और कंपनियों के कार्य संचालन का उदाहरण दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि क्या मुख्यमंत्री द्वारा कैबिनेट बैठक

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को शापूरजी पालोनजी (एसपी) समूह के टाटा संस के कामकाज में न्यासियों के हस्तक्षेप के आरोपों पर राजनीति और कंपनियों के कार्य संचालन का उदाहरण दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि क्या मुख्यमंत्री द्वारा कैबिनेट बैठक से पहले अपनी पार्टी सहयोगियों से विचार-विमर्श करने से ‘स्वतंत्रता का हनन' होता है। एसपी समूह ने आरोप लगाया कि टाटा संस के परिचालन में अंशधारक ट्रस्टी निदेशकों द्वारा हस्तक्षेप किया जाता था जबकि यह काम निदेशक मंडल पर छोड़ा जाना चाहिए थ। 

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने इस पर कहा, ‘‘एक मुख्यमंत्री का मामला लेते हैं, जो कैबिनेट की बैठक से पहले अपनी पार्टी सहयोगियों से विचार-विमर्श करता है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। क्या आप कहेंगे कि उसने अपनी आजादी खो दी।'' शीर्ष अदालत राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के आदेश के खिलाफ टाटा संस और साइरस इन्वेस्टमेंट्स की ओर से दायर अपीलों की पांचवें दिन सुनवाई कर रही थी। 

एनसीएलएटी ने साइरस मिस्त्री को 100 अरब डॉलर के टाटा समूह के कार्यकारी चेयरमैन पद पर बहाल करने का आदेश दिया था। इस पर एसपी समूह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुंदरम ने कहा कि पार्टी सहयोगियों से विचार-विमर्श ‘राजनीति की मांग' है और राजनीतिक विज्ञान, कॉरपोरेट से अलग चीज है। सुंदरम ने कहा, ‘‘राजनीति में सब कुछ बहुमत से होता है। जबकि कंपनी कानून के तहत ऐसा नहीं है।'' पीठ ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि यह कैबिनेट पर निर्भर करता है। राजनीति में ऐसे मामले भी होते हैं जबकि अल्पमत वालों से भी विचार-विमर्श करना पड़ता है।'' इस मामले पर सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी। 

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