2,654 करोड़ के एक और बैंक घोटाले का खुलासा, CBI ने किया मामला दर्ज

Edited By jyoti choudhary,Updated: 06 Apr, 2018 12:12 PM

the disclosure of another bank scam of rs 2 654 crore

बैंकों से 2,654 करोड़ रुपए लोन लेकर नहीं चुकाने का और मामला सामने आया है। वडोदरा स्थित बिजली उपकरण बनाने वाली कंपनी डायमंड पावर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। गुरुवार को सी.बी.आई. ने इस मामले में एफ.आई.आर. दर्ज कर जांच शुरू...

नई दिल्लीः बैंकों से 2,654 करोड़ रुपए लोन लेकर नहीं चुकाने का और मामला सामने आया है। वडोदरा स्थित बिजली उपकरण बनाने वाली कंपनी डायमंड पावर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। गुरुवार को सी.बी.आई. ने इस मामले में एफ.आई.आर. दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। जांच एजेंसी ने इस मामले में कंपनी के निदेशकों के घर और दफ्तरों पर छापेमारी की है।

कंपनी के खिलाफ 11 बैंकों के कन्शॉर्सियम को 2,654 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की मामला दर्ज किया है। कंपनी के प्रमोटर एसएन भटनागर हैं और उनके बेटे अमित एवं सुमित भटनागर इस कंपनी में एग्जीक्यूटिव हैं। 

किस बैंक की कितनी रकम
वर्ष 2008 से डायमंड पावर ने एक मॉडस ऑपरेंडी के जरिए बैंक के अधिकारी व कर्मचारियों की मिली-भगत से सैंकड़ों करोड़ रुपए के लोन पास कराए। इसके बाद फर्जी दस्तावेज, बैंक खातों व कंपनी की बैलेंस शीट के जरिए भटनागर बंधु सरकारी व गैर-सरकारी बैंकों से अलग-अलग लोन उठाते गए। बैंक ऑफ इंडिया से करीब 670 करोड़ रुपए, बैंक ऑफ बड़ौदा के 349 करोड़, आई.सी.आई.सी.आई. के 280 तथा एेक्सिस बैंक के 255 करोड़ रुपए इन्होंने लोन के जरिए हड़प लिए। सी.बी.आई. ने आपराधिक षड्यंत्र, बैंक से धोखाधड़ी, जाली दस्तावेज व बैंक खाते के जरिए इस घोटाले को अंजाम देने का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। कंपनी 2008 से ऐसा करती आ रही थी। 29 जून 2016 तक उस पर 2654.40 करोड़ रुपए का बकाया था।

सी.बी.आई. ने बताया कि इस बकाया लोन को 2016-17 में नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट करार दिया गया था। लोन देने वाले बैंकों का समूह जब बनाया गया था तो ऐक्सिस बैंक टर्म लोन के लिए लीड बैंक था और बैंक ऑफ इंडिया कैश क्रेडिट लिमिट्स के लिए लीड बैंक था। 

आरोप लगाया गया है कि इस फर्म ने विभिन्न बैंकों के अधिकारियों से सांठ-गांठ कर क्रेडिट फसिलिटी बढ़वा ली थी। सी.बी.आई. के अनुसार, कंपनी लीड बैंक को गलत स्टॉक स्टेटमेंट्स दिया करती थी, जिसमें वह 180 दिनों से ज्यादा के रिसीवेबल्स (नॉन-करेंट एसेट) को 180 दिनों से कम के रिसीवेबल्स (करेंट ऐसेट) के रूप में दिखाया करती थी और इस तरह अपने कैश क्रेडिट अकाउंट में ज्यादा पैसा निकालने का अधिकार हासिल करती थी। 

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