कोरोना से पस्त अर्थव्यवस्था को गांवों से मिलेगी रिकवरी की डोज!

Edited By jyoti choudhary,Updated: 06 Jul, 2020 11:00 AM

the economy battered by corona will get a dose of recovery from the villages

मॉनसून पूरे देश में फैल चुका है। मौसम विभाग की मानें तो इस बार जून में सामान्य से 15 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। 2013 के बाद इस साल जून में सबसे ज्यादा बारिश हुई है। हिमालयी राज्यों के कुछ इलाकों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश

नई दिल्लीः मॉनसून पूरे देश में फैल चुका है। मौसम विभाग की मानें तो इस बार जून में सामान्य से 15 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। 2013 के बाद इस साल जून में सबसे ज्यादा बारिश हुई है। हिमालयी राज्यों के कुछ इलाकों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को छोड़कर देश के अन्य इलाकों में किसानों के मनमाफिक बारिश हुई है। मौसम विभाग ने इस साल मॉनसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है। यह बारिश अपने साथ खासकर ग्रामीण इलाकों में कई उम्मीदें लेकर आई है। कोविड-19 महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पस्त हो चुकी है और शहरी इलाकों में विकास का पहिया एक तरह से रुक गया है। ऐसी गहरी निराशा के माहौल में ग्रामीण इलाकों से एक उम्मीद की किरण नजर आ रही है, जो इकोनॉमी को एक डोज देगी। 

अर्थशास्त्रियों और कॉर्पोरेट दिग्गजों का मानना है कि पस्त हो चुकी अर्थव्यवस्था को अब ग्रामीण इलाकों से ही नई ऊर्जा मिलेगी। मई में घरेलू बाजार में ट्रैक्टर की बिक्री 4 प्रतिशत बढ़ी जो इस बात का संकेत है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था अर्बन इकोनॉमी से कहीं बेहतर स्थिति में है। 

उम्मीद जगाते 3 कारण 
नीति निर्माता और उद्योग जगत केवल अच्छे मॉनसून की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेकर उम्मीद नहीं जता रहा है। वे इसके लिए 3 प्रमुख कारण मानते हैं। पहला कारण यह कि 25 मार्च से शुरू हुए लॉकडाऊन के बावजूद खेती जारी रही जबकि मैन्यूफैक्चरिंग पर इसका व्यापक असर पड़ा। दूसरा यह कि सरकारी एजैंसियों के मुताबिक इस बार ज्यादा बुआई हुई है। तीसरा कारण यह कि शहरों से अपने गांवों की ओर लौटे मजदूर अब कृषि गतिविधियों में शामिल हैं। 

आर.पी.जी. ग्रुप के चेयरमैन हर्ष गोयनका को उम्मीद है कि गांवों में मांग बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि इस साल बुआई ने नया रिकॉर्ड बनाया है। अगर मॉनसून सामान्य रहा तो फिर खरीफ की बंपर फसल होगी। इससे ग्रामीण इलाकों में मांग बढ़ेगी। उनकी कम्पनी ट्रैक्टर और ट्रेलर टायर बेचती है जिसे रूरल इकोनॉमी का बैरोमीटर कहा जाता है। 

कम्पनियों को ग्रामीण मांग बढऩे का भरोसा 
सिगरेट से लेकर बिस्कुट तक का कारोबार करने वाली आई.टी.सी. ने लॉकडाऊन शुरू होने के बाद हाइजीन और वैलनैस सेगमैंट में 5 नए उत्पाद उतारे हैं। इनमें ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए 50 पैसे का हैंड सैनिटाइजर सैशे भी है। कम्पनी के एग्जीक्यूटिव डायरैक्टर बी.सुमंत कहते हैं, अब ग्रामीण इलाकों में भी ऐसे उत्पादों की जबरदस्त मांग है। हम ग्रामीण को शहरी उपभोक्ताओं से अलग नहीं मानते हैं। अब यह अंतर बहुत मामूली रह गया है। 

एग्रीकल्चर मार्कीटिंग में सुधार 
फूलों की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि उन्हेें भारी नुक्सान उठाना पड़ा है। 50 एकड़ के एक खेत में गुलाब तोड़ रहे केशव सक्सेना ने कहा कि मंदिर और मस्जिद बंद थे। खुलने के बाद भी वहां फूल ले जाना मना है। शादियों में भी बड़े फंक्शन नहीं हो रहे हैं। फूलों की मांग कहां से आएगी? प्रधानमंत्री के आॢथक सलाहकार विवेक देवरॉय का कहना है कि अर्थव्यवस्था को अब ग्रामीण इलाकों से बल मिलेगा। केन्द्र सरकार ने एग्रीकल्चर मार्कीटिंग में सुधार के लिए कई उपायों की घोषणा की है लेकिन इसका नतीजा इस बात पर निर्भर करेगा कि राज्य इसे कैसे लागू करते हैं। 
 

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