दिवाला प्रक्रिया के तहत वसूली प्रक्रिया दूसरे विकल्पों के मुकाबले बेहतर: आईबीबीआई प्रमुख

Edited By jyoti choudhary,Updated: 02 Mar, 2020 06:14 PM

the recovery process under the insolvency process is better than other options

दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता कानून के तहत होने वाली वसूली प्रक्रिया इस तरह के दूसरे विकल्पों के मुकाबले बेहतर रही है। आईबीबीआई के प्रमुख एम एस साहू ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिसंबर तक 190 ऋण संकट में फंसी जिन कंपनियों को बचाया गया उनकी...

नई दिल्लीः दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता कानून के तहत होने वाली वसूली प्रक्रिया इस तरह के दूसरे विकल्पों के मुकाबले बेहतर रही है। आईबीबीआई के प्रमुख एम एस साहू ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिसंबर तक 190 ऋण संकट में फंसी जिन कंपनियों को बचाया गया उनकी संपत्ति से मिलने वाली आय के मुकाबले दिवाला प्रक्रिया के तहत 207 प्रतिशत अधिक 1.6 लाख करोड़ रुपए की वसूली हुई। 

दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) 2016 में अस्तित्व में आई। इसके तहत तय अवधि में बाजार स्थिति के मुताबिक फंसे कर्ज का निपटारा किया जाता है। यदि इस प्रक्रिया में कोई निदान नहीं हो पाता है तो संबंधित कंपनी को परिसमापन के लिए भेज दिया जाता है। भारतीय दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के चेयरपर्सन एम एस साहू ने कहा कि कानून के तहत होने वाली वसूली प्रक्रिया काफी अच्छी रही है। ‘‘दिसंबर 2019 तक समाधान योजना के तहत 190 कंपनियों को बचाया गया। इन कंपनियों पर ऋणदाताओं का 3.8 लाख करोड़ रुपए का बकाया था।'' 

उन्होंने कहा, ‘‘इसमें समझने वाली बात यह है कि जब ये कंपनियां दिवाला प्रक्रिया के तहत गई तब उनके पास उपलब्ध संपत्ति से मिलने वाली कीमत मात्र 77 हजार करोड़ रुपए ही थी। इस प्रकार इन कंपनियों के ऊपर ऋणदाताओं का जितना बकाया था, कंपनियों के पास उसके समर्थन में उतनी संपत्ति उपलब्ध नहीं थी।'' साहू ने कहा कि आईबीसी से कंपनी की मौजूदा संपत्ति का मूल्य अधिक हुआ है न कि उस संपत्ति का जो वहां थी ही नहीं। इस प्रक्रिया में ऋणदाताओं ने 1.6 लाख करोड़ रुपए की वसूली की है जो कि उनकी संपत्ति से 207 प्रतिशत अधिक है। उनके मुताबिक वित्तीय ऋणदाताओं को उनके दावों के मुकाबले 57 प्रतिशत तक कटौती झेलनी पड़ी। इससे आईबीसी प्रक्रिया में प्रवेश करते समय इन कंपनियों की संपत्ति के मूल्य में आई गिरावट परिलक्षित होती है। 

साहू ने कहा, ‘‘किसी अन्य वैकल्पिक वसूली प्रक्रिया के तहत यदि 100 रुपए की प्राप्ति होती है। उसमें से वसूली, परिसमापन लागत भी वहन करनी होगी। दूसरी तरफ आईबीसी प्रक्रिया में ऋणदाताओं को 207 रुपए की प्राप्ति हो रही है यानी 107 रुपए अधिक मिल रहे हैं। साथ ही कंपनियों का बचाव भी हो रहा है। यह आईबीसी के खाते में बोनस के रूप में मिल रहा है।'' उन्होंने कहा कि आईबीसी कानून के तहत अब तक 3,600 कंपनियों प्रक्रिया के तहत आई हैं। इनमें से 200 मामलों को समाधान योजना के तहत सुलझा लिया गया है, वहीं 800 कंपनियां परिसमापन प्रक्रिया में गई हैं। इसके अलावा 150 आवेदनों को वापस ले लिया गया है। 

आईबीसी प्रक्रिया के तहत कोई भी कंपनी राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की मंजूरी मिलने के बाद ही आती है। उन्होंने रिजर्व बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2018- 19 में बैंकों ने लोक अदालतों के जरिए 5.3 प्रतिशत, ऋण वसूली न्यायाधिकरणों के जरिए 3.5 प्रतिशत, वित्तीय आस्तियों का पुनर्गठन एवं प्रतिभूतिकरण और प्रतिभूति हित का प्रवर्तन (सरफेसई कानून) के तहत 14.5 प्रतिशत तथा आईबीसी प्रक्रिया के तहत 42.5 प्रतिशत ऋण वसूली की है।
 

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