RBI विवादः आर्थिक मामलों के सचिव ने डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य पर कसा तंज

Edited By jyoti choudhary,Updated: 03 Nov, 2018 12:00 PM

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आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के बयान पर चुटकी ली। गर्ग ने शुक्रवार शाम ट्विटर पोस्ट के जरिए कहा कि रुपए समेत दूसरे आर्थिक मोर्चों पर अच्छे संकेत मिल रहे हैं। क्या यह बाजार की नाराजगी है?

नई दिल्लीः आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के बयान पर चुटकी ली। गर्ग ने शुक्रवार शाम ट्विटर पोस्ट के जरिए कहा कि रुपए समेत दूसरे आर्थिक मोर्चों पर अच्छे संकेत मिल रहे हैं। क्या यह बाजार की नाराजगी है? विरल आचार्य ने पिछले हफ्ते आरबीआई की स्वतंत्रता का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि इसकी अनदेखी करना सरकार के लिए विनाशकारी हो सकता है। उन्होंने कहा कि जो सरकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करती, उसे बाजार की नाराजगी झेलनी पड़ती है।

किया था यह ट्वीट
गर्ग ने रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य की हाल की टिप्पणियों पर व्यंग्य करते हुए शुक्रवार को ट्वीट किया, "डॉलर के मुकाबले रुपया 73 से कम पर ट्रेड कर रहा है, कच्चा तेल 73 डॉलर के नीचे आ गया है, सप्ताह के दौरान शेयर बाजार 4 फीसदी ऊपर रहा और बॉन्ड यील्ड्स 7.8 फीसदी के नीचे आ गया। क्या यही बाजारों का आक्रोश है?" 

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गर्ग हैं RBI, सरकार के बीच सेतु
सुभाष गर्ग सरकार और आरबीआई के बीच होने वाली सभी तरह की वार्ता के बीच एक तरह से सेतु का काम करते हैं। सरकार ने दो दिन पहले ही बेहद सीधे शब्दों में बयान जारी कर इस बात पर नाराजगी जाहिर की थी कि आरबीआई ने सरकार के साथ मतभेदों को सार्वजनिक कर दिया। हालांकि, वक्तव्य में यह भी कहा गया था कि सरकार और केंद्रीय बैंक, दोनों को ही अपने कामकाज में सार्वजनिक हित और भारतीय अर्थव्यवस्था की जरूरतों को देख कर चलना चाहिए।

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इसलिए बढ़ी तनातनी
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) गवर्नर की ताकत घटा कर बैंक में अपना ज्यादा से ज्यादा दखल बढ़ाने के प्रयासों में लगी सरकार का मकसद है बैंक की जमा पूंजी से राजकोषीय घाटा कम करना। बैंक के पास मौजूदा समय में करीब 3.5 खरब रुपए का कोष है। यह कोष दो-चार साल में नहीं, बल्कि तीन दशक के बाद इस स्तर तक पहुंचा है। ऑल इंडिया रिजर्व बैंक इम्प्लाई एसोसिएशन (एआईआरबीईए) का कहना है कि सरकार अपना घाटा पूरा करने के लिए इस कोष को अपने कब्जे में लेना चाहती है। यही वजह है कि सरकार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से आरबीआई गनर्वर की शक्तियां कम करने का हर संभव प्रयास कर रही है।

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