जेट एयरवेजः दो वक्त की रोटी को मोहताज नरेश गोयल ने ऐसे शुरू की थी कंपनी

Edited By jyoti choudhary,Updated: 26 Mar, 2019 03:33 PM

the two time roti was started by mohitaj naresh goyal

जेट एयरवेज के चेयरमैन पद से इस्तीफा देने को मजबूर हुए नरेश गोयल के फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी शुरू तब हुई जब वह 18 वर्ष की उम्र में बिल्कुल खाली हाथ दिल्ली पहुंचे। वह 1967 का साल था। तब पटियाला में उनका परिवार इतनी गंभी

बिजनेस डेस्कः जेट एयरवेज के चेयरमैन पद से इस्तीफा देने को मजबूर हुए नरेश गोयल के फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी शुरू तब हुई जब वह 18 वर्ष की उम्र में बिल्कुल खाली हाथ दिल्ली पहुंचे। वह 1967 का साल था। तब पटियाला में उनका परिवार इतनी गंभीर आर्थिक तंगी से गुजर रहा था कि उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता। वहां से गोयल ने दुनियावी तिकड़म सीखे और ऐसी स्थिति में पहुंच गए जहां उन्हें लगने लगा कि सरकार की एविएशन पॉलिसीज तो मानो उन्हीं की जरूरतें पूरा करने के लिए बनी हों। दिल्ली से अपने करियर की शुरुआत करने वाले नरेश गोयल बाद में मुंबई में शिफ्ट हो गए थे। हालांकि यह केवल अपनी प्रतिद्वंदी कंपनी से एक रुपए की लड़ाई हार गए, जिसका खामियाजा जेट के कर्मचारियों को भी भुगतना पड़ा।

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300 रुपए से शुरू की थी नौकरी
वर्ष 1967 में गोयल दिल्ली आए तो उन्होंने कनॉट प्लेस से संचालित होने वाली एक ट्रैवल एजेंसी जॉइन कर ली जो उनके चचेरे नाना चला रहे थे। इस नौकरी से उन्हें प्रति माह करीब 300 रुपए मिलने लगे। बाद में उन्होंने ट्रैवल इंडस्ट्री में अपना पांव पसारने लगे और उनके दोस्तों की संख्या लगातार बढ़ती गई। ये दोस्त खासकर जॉर्डन, खाड़ी और दक्षिण पूर्व एशिया आदि में विदेशी एयरलाइंस से थे। इस दौरान वह बहुत तेजी से एविएशन सेक्टर का पूरा व्यापार समझ गए। उन्हें टिकट की व्यवस्था से लेकर लीज पर एयरक्राफ्ट लेने तक की अच्छी समझ हो गई। 

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खुद की एजेंसी 
1973 में गोयल ने खुद की ट्रैवल एजेंसी खोल ली और जिसे उन्होंने जेट एयर का नाम दिया। जब वह पेपर टिकट लेने एयरलाइन कंपनियों के दफ्तर जाया करते तो वहां लोग उनका यह कहकर मजाक उड़ाते कि अपनी ट्रैवल एजेंसी का नाम एयरलाइन कंपनी जैसी रखी है। तब गोयल ने कहा कि एक दिन वह खुद की एयरलाइन कंपनी भी जरूर खोलेंगे।  

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जेट एयरवेज से भड़ी उड़ान 
गोयल का यह सपना साल 1991 में पूरा हो गया जब उन्होंने एयर टेक्सी के रूप में जेट एयरवेज की शुरुआत कर दी। दरअसल, तब भारत में बिल्कुल संगठित तरीके से प्राइवेट एयरलाइंस के संचालन की अनुमति नहीं थी, जिसके एयरक्राफ्ट टाइम टेबल के मुताबिक उड़ान भरे, जैसा कि अब हो रहा है। एक साल बाद अपनी जेट ने चार जहाजों का एक बेड़ा बना लिया और जेट एयरक्राफ्ट की पहली उड़ान शुरू हो गई। 2002 में जेट एयरवेज ने मार्केट शेयर में एयर इंडिया को भी पीछे कर दिया। 

सहारा को खरीदा, 2012 में बिगड़ने शुरू हुए हालात
जेट एयरवेज के हालात 2002 से लेकर के 2011 तक काफी सही थे। उसने इस बीच में शेयर मार्केट में आईपीओ लांच किया, वहीं सहारा एयरलाइन को 2250 करोड़ रुपए में खरीद लिया। इससे उसको 27 विमान, 12 फीसदी मार्केट शेयर और कई सारे अंतरराष्ट्रीय रूट भी मिले। हालांकि जुलाई 2012 में इंडिगो ने मार्केट शेयर में काफी बढ़ोतरी कर ली। इसी बीच 2013 में एतिहाद ने जेट एयरवेज में 24 फीसदी हिस्सेदारी भी खरीद ली थी। 

विवादों का साया 
एविएशन इंडस्ट्री में गोयल का करियर शुरू से ही विवादों में रहा जब जेट की शुरुआती फंडिंग के स्रोतों पर सवाल उठे। एक सीनियर एयरलाइन ऑफिसर ने कहा, 'उन्हें पसंद कर सकते हैं, उनसे नफरत हो सकती है, लेकिन उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिन्होंने जेट के रूप में भारत को पहला संगठित एयरलाइन दिया जब देश के अंदर हवाई यात्रा का एक ही साधन सरकारी इंडियन एयरलाइंस थी। जेआरडी टाटा ने एयर इंडिया की स्थापना की थी जो देश की सर्वोत्तम एयरलाइंस कंपनी थी। लेकिन, जैसे ही सरकार ने इंडियन एयरलाइंस को अपने कब्जे में लिया, दशकों पुराने सरकारी नियम-कानून और कुप्रबंधन ने महाराजा को भिखारी में तब्दील कर दिया।' 

एक फैसला और डूबती गई जेट 
जेट को विदेशों के लिए उड़ाने भरने वाली एकमात्र कंपनी बनाने के लिए गोयल ने 2007 में एयर सहारा को 1,450 करोड़ रुपए में खरीद लिया। तब इस फैसलों को गोयल की गलती के तौर पर देखा गया। तब से कंपनी को वित्तीय मुश्किलों से सही मायने में कभी छुटकारा नहीं मिल पाया। मामले से वाकिफ एक व्यक्ति ने कहा, 'प्रफेशनल्स पर भरोसा नहीं करना और कंपनी के संचालन में हमेशा अपना दबदबा रखना गोयल की दूसरी बड़ी गलती साबित हुई।'
 
 

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