पांच सालों में ऐसा रहा भारत के रियल एस्टेट सेक्टर का हाल

Edited By jyoti choudhary,Updated: 21 Apr, 2019 02:22 PM

this is happening in five years the real estate sector of india

2019 लोकसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है। भाजपा की ओर से जारी किए गए घोषणापत्र में हर गरीब परिवार को पक्का मकान उपलब्ध कराए जाने की बात कही गई है। सरकार की भले ही रियल एस्टेट को मजबूत बनाने की योजना हो

नई दिल्लीः 2019 लोकसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है। भाजपा की ओर से जारी किए गए घोषणापत्र में हर गरीब परिवार को पक्का मकान उपलब्ध कराए जाने की बात कही गई है। सरकार की भले ही रियल एस्टेट को मजबूत बनाने की योजना हो, लेकिन ऐनारॉक प्रॉपर्टीज की रिपोर्ट के अनुसार भारत के रियल एस्टेट सेक्टर की हालत एकदम खराब है। देशभर के सात प्रमुख शहरों में 4,51,750 करोड़ रुपए की करीब 5.6 लाख आवासीय इकाइयों का निर्माण समय से पीछे चल रहा है। प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एनारॉक का कहना है कि मांग में कमी और डेवलपर्स की ओर से पूंजी का इस्तेमाल दूसरे कार्यों में करने से धन की कमी के कारण परियोजनाएं पूरी करने में देरी हो रही है। 

ये सभी 5.6 लाख आवासीय इकाइयां राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर), मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर), चेन्नई, कोलकाता, बंगलूरू, हैदराबाद और पुणे में हैं। इनका काम 2013 से पहले शुरू हुआ था। एनारॉक के संस्थापक एवं चेयरमैन अनुज पुरी ने बताया कि आवासीय परियोजनाओं में देरी के कारण सभी शीर्ष शहरों विशेषकर एमएमआर एवं एनसीआर में लाखों खरीदार मकान खरीदकर फंसे हुए हैं।

28 फीसदी घटी घरों की बिक्री
रिपोर्ट की मानें तो घरों की बिक्री भी पिछले 5 वर्षों में 28 फीसदी की दर से घटी है। वर्ष 2014 में जहां 3.43 लाख घरों की बिक्री हुई, वहीं पिछले साल 2.48 लाख घर बिके। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के सात प्रमुख शहरों में पिछले पांच साल के दौरान घरों के दाम में 7 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि इस दौरान इनकी मांग 28 प्रतिशत घटी है। इसी तरह घरों की आपूर्ति में इस समय अंतराल में 64 फीसदी की गिरावट आई है।

कितनी सफल हुई प्रधानमंत्री आवास योजना?
एक ओर जहां सरकार प्रधानमंत्री आवास योजना को बढ़ावा दे रही है, वहीं एनारॉक की रिपोर्ट मानें तो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सस्ते आवासीय परियोजना की रफ्तार सुस्त है। इस योजना के तहत मंजूर किए गए 79 लाख घरों में से अब तक सिर्फ 39 फीसदी घरों का निर्माण पूरा हुआ है। एनसीआर में प्रोजेक्ट पूरा कराने की दिशा में नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कार्पोरेशन का आगे आना एक बड़ी पहल है, जिसका असर दिख सकता है। अगर सरकार की ये योजना 50 फीसदी प्रोजेक्ट्स भी हाथ में ले ले तो बड़े पैमाने पर एलआईजी और ईडब्ल्यूएस प्रोजेक्ट्स पूरे होंगे और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। 

एनसीआर में 1,31,460 करोड़ के मकान फंसे 
एनारॉक के आंकड़ों के मुताबिक, देरी से चल रहीं आवासीय इकाइयों में एमएमआर और एनसीआर की हिस्सेदारी 72 फीसदी है। एमएमआर में 2,17,550 करोड़ रुपए के 1,92,100 अपार्टमेंट और एनसीआर में 1,31,460 करोड़ रुपए की 2,10,200 आवासीय इकाइयां फंसी हुई हैं।

मकानों के साइज पर पड़ा असर
पिछले पांच सालों में दिल्ली-एनसीआर में फ्लैटों का औसत साइज 16 फीसदी तक घट गया है। वहीं 40 लाख रुपए तक की कीमत वाले मकानों के आकार में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज हुई है। साल 2014 में फ्लैटों का औसत साइज 1485 वर्गफीट था, जो 2018-19 में 1250 वर्गफीट तक दर्ज किया गया।

भारत के सात बड़े शहरों में मकानों के औसत साइज में पांच साल में 17 फीसदी की गिरावट आई है। सबसे ज्यादा गिरावट मुंबई मेट्रो रीजन में देखने को मिली है। वहीं कोलकाता और बेंगलुरु में मकानों का औसत साइज बीते पांच साल में क्रमशः 23 फीसदी और 12 फीसदी घटा है। बता दें कि सबसे बड़े आकार के फ्लैटों के मामले में हैदराबाद अव्वल है, जहां औसत साइज 1600 वर्गफीट बना हुआ है। मकानों के साइज पर ये असर अफोर्डेबल हाउसिंग की बढ़ती डिमांड, मार्केट में रिकवरी और बढ़ती कीमतों की वजह से पड़ा है।

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