Edited By jyoti choudhary,Updated: 26 May, 2019 06:46 PM
दूरसंचार नियामक ट्राई ने स्पेक्ट्रम की जो कीमतें सुझाई हैं वे आधार दर की गणना के सिद्धांतों में एकरूपता नहीं होने की वजह से अधिक हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। इंडियन काउंसिल फोर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर)
नई दिल्लीः दूरसंचार नियामक ट्राई ने स्पेक्ट्रम की जो कीमतें सुझाई हैं वे आधार दर की गणना के सिद्धांतों में एकरूपता नहीं होने की वजह से अधिक हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। इंडियन काउंसिल फोर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर) और ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम ने एक संयुक्त रिपोर्ट में कहा है, ‘‘1800 मेगाहर्ट्ज बैंड की कीमत के हमारे आकलन से यह पता चला है कि आरक्षित कीमत न सिर्फ अधिक बनी हुई है, इसकी गणना के लिए अपनाए गए सिद्धांतों में भी समानता नहीं है।''
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने पहले की नीलामियों में बोली की कीमत पर अधिक जोर दिया और यह तरीका दो नीलामियों के बीच अधिक अंतराल नहीं होने के बाद भी बाजार तथा दूरसंचार कंपनियों की परिस्थितियों को बदलने के लिए हमेशा उत्तरदाई हो सकता है।'' ट्राई ने इस बारे में भेजे गए एक ईमेल का उत्तर नहीं दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘स्पेक्ट्रम की नीलामी का डिजाइन तैयार करने में हमेशा जोखिम होता है। आरक्षित दरों पर अधिक निर्भरता से हमेशा सफल बाजार परिणाम मिल पाना जरूरी नहीं है। ऐसे कई अन्य कारक हैं जो नीलामी के परिणाम को प्रभावित करते हैं जैसे बोली लगाने वालों का रुझान, बाजार की परिस्थितियां और नीलामी एजेंट को तरजीह आदि।''