Edited By jyoti choudhary,Updated: 19 Aug, 2022 01:05 PM
आने वाले समय में यूपीआई के जरिए फंड ट्रांसफर करना महंगा हो सकता है। दरअसल भारतीय रिजर्व बैंक यूपीआई आधारित फंड ट्रांसफर पर शुल्क लगा सकता है। फंड ट्रांसफर पर लगने वाली लागत को निकालने के लिए रिजर्व बैंक इस योजना पर विचार कर रहा है।
बिजनेस डेस्कः आने वाले समय में यूपीआई के जरिए फंड ट्रांसफर करना महंगा हो सकता है। दरअसल भारतीय रिजर्व बैंक यूपीआई आधारित फंड ट्रांसफर पर शुल्क लगा सकता है। फंड ट्रांसफर पर लगने वाली लागत को निकालने के लिए रिजर्व बैंक इस योजना पर विचार कर रहा है। रिजर्व बैंक ने डिस्कशन पेपर ऑन चार्जेस इन पेमेंट सिस्टम जारी किया है और शुल्क को लेकर लोगों से सलाह मांगी है।
लागत की वसूली के लिए फैसला संभव
रिजर्व बैंक ने इस पेपर में कहा है कि ऑपरेटर के रूप में रिजर्व बैंक को आरटीजीएस में बड़े निवेश और ऑपरेटिंग कॉस्ट की भरपाई करनी है। बैंक के मुताबिक इसमें सार्वजनिक धन लगा है ऐसे लागत निकाली जानी जरूरी है। वहीं रिजर्व बैंक ने साफ किया कि रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) में लगाया गया शुल्क कमाई का साधन नहीं है। बल्कि इस शुल्क से सिस्टम पर होने वाले खर्च को निकाला जाएगा जिससे ये सुविधा बिना किसी रुकावट के जारी रहे। पेपर में साफ तौर पर पूछा गया है कि क्या इस तरह की सेवाओं पर शुल्क न लगाया जाना ठीक है। रिजर्व बैंक के मुताबिक सेवा में बैंक लाभ नहीं देखता लेकिन सेवा की लागत की वसूली करना उचित है।
शुल्क के लिए क्या है रिजर्व बैंक के तर्क
पेपर के मुताबिक यूपीआई पैसों के रियल टाइम ट्रांसफर को सुनिश्चित करता है। वहीं यह रियल टाइम सेटलमेंट को भी सुनिश्चित करता है। केंद्रीय बैंक के मुताबिक इस सेटलमेंट और फंड ट्रांसफर को बिना किसी जोखिम के सुनिश्चित करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की जरूरत होती है जिसमें काफी खर्च आता है। रिजर्व बैंक के मुताबिक ऐसे सवाल उठता है कि फ्री सर्विस की स्थिति में इतने महंगे इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने और उसको लागू करने का भारी भरकम खर्च कौन उठाएगा।