Edited By jyoti choudhary,Updated: 06 Oct, 2018 07:17 PM
इंफ्रास्ट्रक्टर लीजिंग एंड फाइनैंशियल सर्विसेज (IL&FS) को लेकर केंद्र सरकार की चिंता लगातार बढ़ रही है और सरकार उसे संकट से नकालने के लए हर संभव प्रयास करती दिख रही है। सरकार को यह भली-भांति आभास है
नई दिल्लीः इंफ्रास्ट्रक्टर लीजिंग एंड फाइनैंशियल सर्विसेज (IL&FS) को लेकर केंद्र सरकार की चिंता लगातार बढ़ रही है और सरकार उसे संकट से नकालने के लए हर संभव प्रयास करती दिख रही है। सरकार को यह भली-भांति आभास है कि यदि यह कंपनी डूबी तो देश की आर्थिक गतिविधियों में भूचाल आ सकता है। केंद्र सरकार ने कहा है कि वह इन्फ्रास्ट्रक्टर लीजिंग एंड फाइनैंशियल सर्विसेज (IL&FS) के रूप में किसी कंपनी को नहीं, बल्कि आर्थिक सुमद्र के टाइटैनिक जहाज को बचा रही है, जिसके डूबने से अपार क्षति हो सकती है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसे डर है कि अगर आइएलऐंडएफएस डूब गया तो फाइनैंशियल मार्केट को बहुत बड़ा झटका लगेगा। यही वजह है कि वह इसकी रक्षा के लिए कदम बढ़ाने पर मजबूर हो गई।
बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स पर कुप्रबंधन का आरोप
कंपनी मामलों के मंत्रालय की ओर से नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) में दायर 36 पन्नों की याचिका में आइएलऐंडएफएस को ‘टाइटैनिक जहाज’ बताते हुए कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स पर कुप्रबंधन का आरोप लगाया गया है. सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि आइएलऐंडएफएस को बचाना बहुत जरूरी है क्योंकि कंपनी पर कुल 910 अरब रुपए संचित ऋण (अक्यूम्युलेटेड डेट) का करीब दो-तिहाई हिस्सा सरकारी बैंकों के खाते में है। वहीं, देश के बैंकों का नॉन-बैंकिंग फाइनैंशियल कंपनियों (एनबीएफसी) पर कर्ज का 16 प्रतिशत अकेले आइएलऐंडएफएस के पास है।
वित्तीय स्थिरता पर बहुत बुरा असर
इसमें कहा गया है कि भविष्य में ग्रुप कंपनियों द्वारा भी कर्ज नहीं चुका पाने से (देश की) वित्तीय स्थिरता पर बहुत बुरा असर पड़ता। सरकार ने कहा कि आइएलऐंडएफएस की पूंजी जुटाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने की क्षमता घटने से पूरे इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर, फाइनैंशियल मार्केट्स और अर्थव्यवस्था के लिए बहुत नुसकानदायक साबित होगा।