Edited By jyoti choudhary,Updated: 20 May, 2018 12:53 PM
कृषि विशेषज्ञों ने जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति के तहत एथनॉल उत्पादन में गेहूं, चावल के उपयोग की अनुमति को अव्यावहारिक माना है और इसकी जगह जौ, बाजरा जैसे मोटे अनाज के उपयोग की वकालत की है।
नई दिल्लीः कृषि विशेषज्ञों ने जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति के तहत एथनॉल उत्पादन में गेहूं, चावल के उपयोग की अनुमति को अव्यावहारिक माना है और इसकी जगह जौ, बाजरा जैसे मोटे अनाज के उपयोग की वकालत की है। जैव-ईंधन पर राष्ट्रीय नीति में एथनॉल उत्पादन में अधिशेष अनाज के उपयोग की अनुमति दिये जाने के बीच विशेषज्ञों ने यह बात कही है।
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का कहना है कि देश में अनाज उत्पादन फिलहाल खाद्य सुरक्षा कानून की जरूरत को पूरा करने के लिए ही काफी है, ऐसे में एथनाल उत्पादन में कच्चे माल के रूप में गेहूं, चावल जैसे अनाज का उपयोग अव्यावहारिक लगता है। वहीं कृषि अर्थशास्त्री तथा बेंगलुरू स्थित संस्थान इंस्टीट्यूट आफ इकोनामिक एंड सोशल चेंज (आईएसईसी) के प्रोफेसर प्रमोद कुमार का कहना है कि बायो डीजल में कच्चे माल के रूप में गेहूं, चावल के बजाए मोटे अनाज के उपयोग को बढ़ावा देना ज्यादा उपयुक्त होगा।
एथनॉल का इस्तेमाल पैट्रोल में मिलाने के लिए किया जाता है ताकि पैट्रोलियम उत्पादों की आयात निर्भरता कम की जा सके। मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह इस नीति को मंजूरी दी है। इसमें कहा गया है कि अधिक उत्पादन के समय किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। इसको ध्यान में रखते हुए नीति में अन्य चीजों के अतिरिक्त राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की मंजूरी से एथनॉल उत्पादन में शेष बचे अनाज के उपयोग की अनुमति दी गई है। इसके अलावा गन्ने का रस, चुकन्दर, मक्का, कसवा, ऐसा अनाज जो मानव खपत लायक नहीं रह गया, सड़े आलू के भी कच्चे माल के तौर पर उपयोग की मंजूरी दी गई है।