सरकार क्यों बेचना चाहती है LIC को?

Edited By vasudha,Updated: 27 Feb, 2020 01:02 PM

why does the government want to sell lic

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने दूसरे बजट भाषण में घोषणा की है कि सरकार एल.आई.सी. को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करेगी और इनीशियल पब्लिक ऑफर (आई.पी.ओ.) के जरिए इसमें अपने स्टेक का एक हिस्सा बेचेगी। इस प्रस्ताव को सही ठहराने के लिए उन्होंने तर्क...

नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने दूसरे बजट भाषण में घोषणा की है कि सरकार एल.आई.सी. को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करेगी और इनीशियल पब्लिक ऑफर (आई.पी.ओ.) के जरिए इसमें अपने स्टेक का एक हिस्सा बेचेगी। इस प्रस्ताव को सही ठहराने के लिए उन्होंने तर्क दिया है, ‘‘किसी कम्पनी को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करने से उसमें अनुशासन आता है। इससे वित्तीय बाजार को कम्पनी में दखल देने का अवसर मिलता है और इसका मूल्य उन्मुक्त होता है। इस क्रम में खुदरा निवेशक भी कंपनी में भागीदारी कर सकते हैं। इस घोषणा से मीडिया में एल.आई.सी. को लेकर एक बहस छिड़ गई है। कुछ वित्तीय विशेषक यह दावा कर रहे हैं कि सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) में सूचीबद्ध होने से पॉलिसी धारकों को बड़ा फायदा होगा। इससे लोग एल.आई.सी. की कार्यप्रणाली पर नजर रख पाएंगे और उसकी कार्पोरेट गवर्नैंस सृदृढ़ होगी। वहीं पॉलिसी धारकों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि सरकार एल.आई.सी. को क्यों बेचना चाहती है और सरकार पॉलिसी अवधि के बीच में कांट्रैक्ट की शर्तें तो नहीं बदल देगी।

 

एल.आई.सी. एक्ट में करना होगा संशोधन
सरकार को एल.आई.सी. का आई.पी.ओ. लाने से पहले एल.आई.सी. एक्ट में संशोधन करना होगा। भले ही देश के बीमा उद्योग पर इंश्योरैंस रैगुलेटरी एंड डिवैल्पमैंट अथॉरिटी निगरानी करती है लेकिन एल.आई.सी. के कामकाज के लिए संसद ने अलग से कानून बना रखा है। एल.आई.सी. एक्ट की धारा-37 कहती है कि एल.आई.सी. बीमा की राशि और बोनस को लेकर अपने बीमाधारकों से जो भी वादा करती है, उसके पीछे केंद्र सरकार की गारंटी होती है। प्राइवेट सैक्टर की बीमा कंपनियों को ये सुविधा हासिल नहीं है।   

 

बीमा बाजार में 73 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी
आइए देखें कि एल.आई.सी. की वर्तमान आर्थिक स्थिति क्या है और कार्पोरेट मीडिया उसे बदनाम करके किन स्वार्थी तत्वों का हित साध रहा है? जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में 1956 में एल.आई.सी. ने मात्र 5 करोड़ रुपए की धनराशि से अपना काम शुरू किया था। आज एल.आई.सी. की विराट परिसम्पत्ति का मूल्य 31 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है। पिछले 2 दशकों से कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने जीवन बीमा के क्षेत्र में प्रवेश किया और एल.आई.सी. को टक्कर देने की कोशिश की। इस जबरदस्त प्रतियोगिता के बाद भी बाजार में एल.आई.सी. का हिस्सा 73 प्रतिशत से अधिक है। यही कारण है कि 2018-19 के लिए भारत सरकार को उसकी मात्र 100 करोड़ की हिस्सा पूंजी के बदले एल.आई.सी. ने 2611 करोड़ रुपए का लाभांश दिया है। अगर स्थापना वर्ष से गिना जाए तो एल.आई.सी. ने कुल 26,005 करोड़ रुपए का बड़ा लाभांश अदा किया है।

 

एल.आई.सी. भारतीय बाजार में बहुत बड़ा निवेश करती है। कई अवसरों पर सरकार के निर्देश पर उसे स्टॉक मार्कीट को गिरने से बचाने के लिए और जब-तब किसी सरकारी कंपनी जैसे भारतीय रेलवे में निवेश करना पड़ता है। डूबते हुए बैंक आई.डी.बी.आई. को बचाने के लिए जुलाई, 2018 में एल.आई.सी. को उसके 51 प्रतिशत शेयर खरीदने के लिए कहा गया। यह 13,000 करोड़ रुपए का निवेश वैसे तो एल.आई.सी. जैसी कंपनी के लिए कोई बड़ी बात नहीं था लेकिन यह फैसला एल.आई.सी. के प्रबंधन या पॉलिसी धारकों का न होकर केवल सरकार में बैठे मंत्रियों का था। आई.डी.बी.आई. के खराब प्रदर्शन के चलते एल.आई.सी. को कई वर्षों तक अपने इस निवेश से कुछ हासिल नहीं होगा। इसी तरह के निवेश एल.आई.सी. ने 29 सार्वजनिक और निजी बैंकों में कर रखे हैं। तात्पर्य यह है कि अगर सरकार दखलअंदाजी न करे तो एल.आई.सी. की परफॉर्मैंस कहीं बेहतर होगी। फाइनैंस के वैश्वीकरण के युग में भी एल.आई.सी. जैसा कार्पोरेशन पूरी दुनिया में नहीं है। इसके कुल लाभ का मात्र 5 प्रतिशत सरकार को मिलता है जबकि 95 प्रतिशत पॉलिसी धारकों को जाता है इसलिए एल.आई.सी. को प्राय: म्यूचुअल बैनीफिट लाइफ इंश्योरैंस कम्पनी भी कहा जाता है। चालू वित्तीय वर्ष (अप्रैल, 2019 से जनवरी, 2020) में एल.आई.सी. के प्रथम वर्षीय प्रीमियम में 43 प्रतिशत वृद्धि हुई जबकि निजी इंश्योरैंस कंपनियों में मात्र 20 प्रतिशत।

 

भविष्य की चिंता 
फिर क्या कारण है कि सुचालित, सुप्रबंधित और जन-जन में लोकप्रिय एल.आई.सी. को भविष्य में बेचने की तैयारी की जा रही है। दरअसल जी.एस.टी. के कठिन क्रियान्वयन के चलते अप्रत्यक्ष कर की मात्रा में भारी कमी देखी जा रही है। सरकार का मानना है कि एल.आई.सी. के आंशिक विनिवेश से उसे 70,000 करोड़ रुपए मिल जाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उपक्रमों के विनिवेश से भी 2.10 लाख करोड़ रुपए उगाहने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य केंद्रीय बजट में रखा गया है। अगर कोई व्यक्ति अपने बुरे दिनों में अपनी खानदानी संपत्तियों को बेच डाले तो वह दिन दूर नहीं जब उसके पास अपने जीवनयापन के लिए कुछ नहीं बचेगा।  

 

गवर्नैंस के मामले में बेहतर संचालन  
मजेदार बात यह है कि इन्हीं पॉलिसी धारकों की दुहाई देकर एल.आई.सी. के निजीकरण की तैयारी की जा रही है। एक ऐसी संस्था जो न केवल अपने पॉलिसी धारकों बल्कि देश के विकास के लिए संसाधन जुटाने में सबसे आगे है, उसमें सरकारी इक्विटी का हिस्सा बेचने का अर्थ होगा सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को हलाल करना। एल.आई.सी. की मुख्य शक्ति उसका डिस्ट्रीब्यूशन नैटवर्क है। आज इसके पास 12 लाख एजैंट और 5000 डिवैल्पमैंट अफसर हैं जो मार्कीटिंग के बेहतर तौर-तरीके अपनाते हैं। उनकी कोशिशों से एल.आई.सी. के पास आज 42 करोड़ पॉलिसी धारक हैं, जिनमें से 30 करोड़ ने व्यक्तिगत पॉलिसियां ले रखी हैं और बाकी ने ग्रुप इंश्योरैंस ली है। जाहिर है कि इन पॉलिसी होल्डरों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सरकार पॉलिसी अवधि के बीच में कांट्रैक्ट की शर्तें बदल सकती है! वित्त मंत्रालय के अफसरों ने फिलहाल यह कह कर जवाब टाल दिया है कि आई.पी.ओ. अगले वित्त वर्ष के उत्तराद्र्ध में ही लाया जाएगा। वैसे यह एक अनैतिक कदम होगा कि मात्र 5 प्रतिशत कानूनी हिस्सेदारी से सरकार एक कार्पोरेशन को बेच डाले। 

 

यह कार्पोरेशन प्रति माह अपनी गतिविधियों की रिपोर्ट अपने रैगुलेटर आई.आर.डी.ए. (इंश्योरैंस रैगुलेटरी एंड डिवैल्पमैंट अथॉरिटी) को देता है जो बाद में संसद में पेश की जाती है। जहां तक सामाजिक तथा बुनियादी ढांचे के विकास के लिए फंड उपलब्ध करवाने की बात है तो यह पूछा जाना चाहिए कि कौन-सी निजी कंपनी 3.5 लाख करोड़ से लेकर 4.5 लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष सरप्लस पैदा करेगी, जितना एल.आई.सी. करती है। बिना सृदृढ़ प्रबंधन के यह संभव नहीं। गवर्नैंस के मामले में भी एल.आई.सी. बेहतर ढंग से संचालित है। इसके ऑप्रेटिंग खर्चों की तुलना अगर निजी बीमा कंपनियों से की जाए तो पता चलता है कि एल.आई.सी. की गवर्नैंस कहीं बेहतर है। 

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