नए कृषि बिल के खिलाफ क्यों हो रहा देशव्यापी किसान आंदोलन, इन सात प्वाइंट में जानें सब कुछ

Edited By rajesh kumar,Updated: 25 Sep, 2020 12:52 PM

why is the nationwide farmer movement against the new agricultural bill

संसद में पारित हुए कृषि बिलों के खिलाफ देश भर के किसानों ने आज भारत बंद बुलाया है। बिल के विरोध में किसानों के साथ-साथ विपक्षी पार्टियां प्रदर्शन में हिस्सा ले रही है। पंजाब में रेल रोको आंदोलन शुरू हो रहा है।

नई दिल्ली: संसद में पारित हुए कृषि बिलों के खिलाफ देश भर के किसानों ने आज भारत बंद बुलाया है। बिल के विरोध में किसानों के साथ-साथ विपक्षी पार्टियां प्रदर्शन में हिस्सा ले रही है। पंजाब में रेल रोको आंदोलन शुरू हो रहा है। जिस बिल को मोदी सरकार किसानों के लिए वरदान बता रही आखिर उस बिल के विरोध में किसान सड़कों पर क्यों उतर रहे हैं। आइए इन सात प्वाइंट में समझे आखिर क्या है इस आंदोलन की जड़?

  • बिल पारित होने के बाद किसानों को सबसे ज्यादा डर न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म होने का है। सरकार ने इस बिल के जरिए मंडी से बाहर भी कृषि कारोबार का रास्ता खोल दिया है। मंडी से बाहर भी ट्रेड एरिया घोषित हो गया है। मंडी के अंदर लाइसेंसी ट्रेडर किसान से उसकी उपज एमएसपी पर लेते हैं। लेकिन बाहर कारोबार करने वालों के लिए एमएसपी को बेंचमार्क नहीं बनाया गया है। ऐसे में मंडी से बाहर एमएसपी मिलने की कोई गारंटी नहीं है
     
  • सरकार ने बिल में मंडियों को खत्म करने की बात कहीं पर भी नहीं लिखी है। फिर भी उसका प्रभाव मंडियों का तबाह कर सकता है। इसका अंदाजा लगाकर किसानों के मन में डर बना हुआ है और आढ़तियों में भी भय का माहोल बना है। इसलिए इस मामले में किसान और आढ़ती दोनों एकसाथ हैं। उनका मानना है कि मंडियां बचेंगी तभी तो किसान उसमें एमएसपी पर अपनी उपज बेच पाएगा।

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  • इस बिल से ‘वन कंट्री टू मार्केट’ वाली नौबत पैदा होती नजर रही है। क्योंकि मंडियों के अंदर टैक्स का भुगतान होगा और मंडियों के बाहर कोई टैक्स नहीं लगेगा। लेकिन सरकार ने अभी मंडी से बाहर जिस एग्रीकल्चर ट्रेड की सरकार ने व्यवस्था की है उसमें कारोबारी को कोई टैक्स नहीं देना होगा। जबकि मंडी के अंदर  6-7 फीसदी तक का मंडी टैक्स लगता है।
     
  • किसानों की ओर से कहा जा रहा है कि आढ़ती या व्यापारी अपने 6-7 फीसदी टैक्स का नुक्सान न करके मंडी से बाहर खरीद करेगा। जहां उसे कोई टैक्स नहीं देना है। इस फैसले से  मंडी व्यवस्था हतोत्साहित होगी। मंडी समिति कमजोर होंगी तो किसान धीरे-धीर बिल्कुल बाजार के हवाले चला जाएगा। जहां उसकी उपज का सरकार द्वारा तय रेट से अधिक भी मिल सकता है और कम भी।

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  • किसानों की इस चिंता के बीच राज्‍य सरकारों-खासकर पंजाब और हरियाणा- को इस बात का डर सता रहा है कि अगर निजी खरीदार सीधे किसानों से अनाज खरीदेंगे तो उन्‍हें मंडियों में मिलने वाले टैक्‍स का नुकसान होगा। दरअसल, दोनों राज्यों को मंडियों से मोटा टैक्स मिलता है, जिसे इस्तेमाल विकास कार्यों में किया जा जाता है। फिलहाल, हरियाणा में बीजेपी का शासन है इसलिए यहां के सत्ताधारी नेता इस मामले पर मौन हैं।
     
  • एक बिल कांट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित है और इसमें किसानों के कोर्ट जाने का हक छीन लिया गया है। कंपनियों और किसानों के बीच विवाद होने की सूरत में एसडीएम फैसला करेगा। उनकी अपील डीएम के यहां होगी नकि कोर्ट में। ऐसे में किसानों को डीएम, एसडीएम पर विश्वास नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि इन दोनों पदों पर बैठे लोग सरकार की कठपुतली की तरह होते हैं।

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  • बता दें कि केद्र सरकार जो बात एक्ट में नहींं लिखी है उसका ही वादा बाहर कर रही है। ऐसे में किसानों में भ्रम का माहौल बना हुआ है। सरकार अपने ऑफिशियल बयान में एमएसपी जारी रखने और मंडियां बंद न होने का वादा कर रही है, पार्टी फोरम पर भी यही कह रही है, लेकिन यही बात एक्ट में नहीं लिख रही। किसानों को लगता है कि सरकार का कोई भी बयान एग्रीकल्चर एक्ट में एमएसपी की गारंटी देने की बराबरी नहीं कर सकता. क्योंकि एक्ट की वादाखिलाफी पर सरकार को अदालत में खड़ा किया जा सकता है, जबकि पार्टी फोरम और बयानों का कोई कानूनी आधार नहीं है. हालांकि, सरकार सिरे से किसानों की इन आशंकाओं को खारिज कर रही है।
     

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