Edited By Supreet Kaur,Updated: 31 Dec, 2019 12:42 PM
आवासीय संपत्तियां निवेश की दृष्टि से वाणिज्यिक संपत्ति के मुकाबले हमेशा ही पीछे रहती हैं। वर्ष 2019 के आकड़ों से यह बात पूरी तरह सच साबित होती है। आवासीय क्षेत्र में बड़ी संख्या में मकान ग्राहकों के इंतजार में खड़े हैं जबकि बाजार में वाणिज्यिक...
नई दिल्लीः आवासीय संपत्तियां निवेश की दृष्टि से वाणिज्यिक संपत्ति के मुकाबले हमेशा ही पीछे रहती हैं। वर्ष 2019 के आकड़ों से यह बात पूरी तरह सच साबित होती है। आवासीय क्षेत्र में बड़ी संख्या में मकान ग्राहकों के इंतजार में खड़े हैं जबकि बाजार में वाणिज्यिक संपत्तियां किराए पर धड़ाधड़ उठ रही हैं। वर्ष के दौरान घर खरीदारों ने फूंक फूंक कर कदम बढ़ाए। कम प्रचलित बिल्डरों की संपत्तियों में निवेश करने से खरीदार दूर रहे। निर्माणाधीन के बजाय तैयार मकानों की तरफ उनका रुझान अधिक रहा।
वाणिज्यिक कार्यों के लिए वर्ष के दौरान अब तक कुल 4.65 करोड़ वर्गफुट स्थान पट्टे पर दिया गया। इस रुख के चलते ही निवेशकों ने भारत में जारी रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट को हाथोंहाथ लिया। यह इश्यू 5,000 करोड़ रुपए के करीब का था। आवासीय क्षेत्र में कमजोर बिक्री और नकदी की भारी तंगी से जहां एक तरफ डेवलपर्स कारोबार में बने रहने के लिए संघर्ष करते रहे वहीं घर खरीदार अपने सपनों के घर को पाने के लिए लड़ाई लड़ते रहे। घर खरीदारों ने अपनी इस लड़ाई में कई बिल्डरों को दिवाला एवं रिणशोधन अक्षमता कार्रवाई के तहत घसीट लिया।
भारतीय रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसियेसन परिसंघ (क्रेडाई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सतीश मागर ने कहा, ‘‘वर्ष 2019 में भारत में रियल्टी क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय गतिविधि नहीं हुई। आर्थिक सुस्ती से लेकर नकदी की तंगी, दिवाला परियोजनाओं की डिलीवरी में देरी और राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में मामलों की अनियमितता जैसी चुनौतियों की वजह से इस क्षेत्र की वृद्धि में अवराध खड़े हुये।'' क्रेडाई के चेयरमैन जाक्से शाह ने रियल्टी क्षेत्र में नकदी की तंगी को सबसे बड़ी चुनौती बताया। हालांकि, उन्होंने सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बाद अगले साल क्षेत्र की स्थिति सुधार आने की उम्मीद जताई है। सरकार ने निर्माणाधीन मकानों की जीएसटी दर में बड़ी कटौती की है जबकि अटकी पड़ी आवासीय परियोजनाओं को चालू करने के लिए 25,000 करोड़ रुपए के कोष की घोषणा की है।