19 साल में 1200 लोगों ने किया ट्राईसिटी में सुसाइड, 60 प्रतिशत पुरुषों ने दी जान

Edited By Priyanka rana,Updated: 11 Sep, 2019 01:19 PM

1200 people suicide in tricity in 19 years

डिप्रैशन और स्ट्रैस किस कदर किसी की जान ले सकता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 19 साल में शहर के 1200 लोगों ने खुद ही अपनी जान ले ली।

चंडीगढ़(पाल) : डिप्रैशन और स्ट्रैस किस कदर किसी की जान ले सकता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 19 साल में शहर के 1200 लोगों ने खुद ही अपनी जान ले ली। 

जी.एम.सी.एच.-32 के साइकैट्रिक डिपार्टमैंट के आंकड़ों के मुताबिक इन सुसाइड करने वालों में 60 प्रतिशत पुरुष रहे हैं। महिलाओं के मुकाबले पुरुष मैंटल स्ट्रैस व डिप्रैशन का ज्यादा सामना नहीं कर पाते। 10 साल पहले शहर में अचानक बढ़े सुसाइड के मामलों को देखते हुए जी.एम.सी.एच. को प्रिवेंशन ऑफ सुसाइड का नोडल सैंटर बनाया गया था। डिपार्टमैंट साल-2004 से ट्राईसिटी में होने वाले हर सुसाइड का आंकड़ा रख रहा है। 

68 प्रतिशत लोगों ने दी लटक कर जान :
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सुसाइड करने का फैसला लेना स्ट्रैस में भी आसान नहीं है। खुद की जान देना कुछ मिनटों में किया जाता है। मैंटली तौर पर अगर वह पल कुछ सैकेंड भी निकल गया तो व्यक्ति इसे नहीं कर पाता। आंकड़ों पर गौर करें तो इन मरने वालों में 68 प्रतिशत लोगों ने लटक कर जान दी है क्योंकि इसमें व्यक्ति की मौके पर मौत हो जाती है जो दर्दनाक होती है। 

शहर में हर साल 80 से 90 लोग करते हैं सुसाइड करने की कोशिश :
जी.एम.सी.एच. के डायरैक्टर व साइकैट्रिक डिपार्टमैंट के हैड प्रो. बी.एस. चवन कहते हैं कि हर साल चंडीगढ़ में 80 से 90 लोग सुसाइड करने की कोशिश करते हैं लेकिन इनमें से कइयों की जिंदगी को बचाया जा सकता है, अगर इन लोगों को जल्दी डायग्नोस कर इनकी काऊंसलिंग की जाए। 

58 प्रतिशत लोगों ने डिप्रैशन व स्ट्रैस की वजह से जान दी :
डॉ. चवन कहते हैं कि उनकी ओ.पी.डी. में आने वाले मरीजों में डिप्रैशन व स्ट्रैस के मामले 15 प्रतिशत तक रहते हैं। सुसाइड प्रिवेंशन के डाटा में भी सामने आया है कि 58 प्रतिशत लोगों ने डिप्रैशन व स्ट्रैस की वजह से अपनी जान दी है। 

सुसाइड करने वालों की उम्र 18 से 30 साल के बीच :
जिन लोगों ने सुसाइड किया है, उनकी उम्र में ज्यादातर 18 से 30 के बीच ज्यादा है। वर्क प्रैशर, एजुकेशन, करियर और रिलेशनशिप जैसी परेशानियां इनमें ज्यादा हैं। यह अपने आपको सिच्युएशन के मुताबिक बदल नहीं पाते जो डिप्रैशन व स्ट्रैस की सबसे बड़ी वजह है। 

पैरेंट्स की गाइडैंस बहुत जरूरी :
सुसाइड के केस ट्राईसिटी में नहीं बल्कि ग्लोबली पिछले कई सालों से बढ़े हैं। डॉ. चवन कहते हैं कि इस बार वल्र्ड सुसाइड प्रिवेंशन-डे की थीम वर्किंग टूगैदर टू प्रिवेंट सुसाइड है। इसे रोकने के लिए हमें मिलकर काम करने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि डिप्रैशन, स्ट्रैस को दूर नहीं किया जा सकता। अच्छा माहौल व एक्सपर्ट की काऊंसलिंग इसे दूर करने में अहम रोल अदा करती है। इसके लिए पैरेंट्स व फैमिली की मदद जरूरी हो जाती है।

एजुकेशन व करियर का स्ट्रैस न दें :
बच्चों पर एजुकेशन व करियर का स्ट्रैस नहीं देना चाहिए। बच्चों को समझाना जरूरी है लेकिन दबाव न हो कि बच्चा स्ट्रैस में आ जाए। अगर आपके फैमिली मैंबर या आसपास के किसी व्यक्ति में कोई बिहैरियर चैंज आता है तो उसे नोटिस करें। 

इसे लोग अक्सर अनदेखा करते हैं। वक्त पर इलाज मिले तो सुसाइड जैसी बड़ी घटना को टाला जा सकता है। हमारे डिपार्टमैंट की ओर से 24 घंटे हैल्प लाइन जारी है जो इस तरह के मामलों में मरीज की मदद करती है। 

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