प्रशासन ने सिटको को नहीं चुकाए उसकेहिस्से के 13.43 करोड़ रुपए

Edited By bhavita joshi,Updated: 10 Jun, 2019 11:11 AM

administration does not pay citco 13 43 crore rupees

प्रशासन ने चंडीगढ़ इंडस्ट्रीयल टूरिज्म डिवैल्पमैंट कार्पोरेशन (सिटको) को अब तक 13.43 करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि नहीं चुकाई है जो उसने प्रशासन के कहने पर अलग-अलग जगह खर्च की थी।

चंडीगढ़(साजन शर्मा): प्रशासन ने चंडीगढ़ इंडस्ट्रीयल टूरिज्म डिवैल्पमैंट कार्पोरेशन (सिटको) को अब तक 13.43 करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि नहीं चुकाई है जो उसने प्रशासन के कहने पर अलग-अलग जगह खर्च की थी। ऑडिट लगातार इसको लेकर सवाल उठा रहा है लेकिन न तो सिटको व न ही प्रशासन इसको लेकर गंभीर है। इसमें 11.71 करोड़ की वह राशि है जो उसे यू.टी. सैक्रेट्रिएट में कैंटीन चलाने के लिए हर माह दी जाने वाली सबसिडी के तौर पर मिलनी थी। 

कंट्रोलर ऑफ ऑडिटर जनरल ने उठाए सवाल  
सिटको इसे लेकर प्रशासन के पास लैटर डालने की औपचारिकताएं तो निभा रहा है लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई करने से गुरेज कर रहा है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि सिटको खुद प्रशासन के अंडर है लिहाजा इसके उच्च अधिकारियों को मामले में ज्यादा बोलने या लिखने से बचने की सलाह दी जा रही है। ऑडिट के पैरों में लगातार इसको लेकर ऑब्जैक्शन पर ऑब्जैक्शंस जुड़ते जा रहे हैं लेकिन इसका जवाब देने को भी कोई तैयार नहीं। कंट्रोलर ऑफ ऑडिटर जनरल ने इस पर सवाल उठाए हैं।

1983 में दिया था कैंटीन चलाने का आदेश 
यू.टी. सैक्रेट्रिएट में कैंटीन चलाने के लिए प्रशासन ने सिटको को 1983 में एक आदेश जारी किया था। 1995 में दूसरा आदेश जारी हुआ कि सिटको को यहां कैंटीन चलाने की एवज में प्रशासन हर माह 50 हजार रुपए की सबसिडी जारी करेगा। वर्षों  बीत गए लेकिन आज तक सिटको को यह राशि नहीं मिल पाई हालांकि कागजों में ये आदेश आज भी घूम रहे हैं। सिटको ने 2004 से लेकर 2018 तक इस कैंटीन को चलाने में 11.71 करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि खर्च कर दी। प्रशासन की ओर से ये राशि अब तक नहीं दी गई है। इससे प्रशासन की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या घाटे में चल रही सिटको को उबारने के लिए यह राशि दी जाएगी या नहीं? सिटको को इस कदर फटका लग रहा है कि उसे अपने मुलाजिमों को भी नौकरी से निकालना पड़ रहा है। 

होंडा सिटी और टोयोटा कोरोला कार खरीदी
सिटको दिल्ली में भी यू.टी. का एक गैस्ट हाऊस मैंटेन करता है। यहां भी जबरदस्त घालमेल है। यहां तैनात स्टाफ को सिटको सैलरी, ट्रैवल एक्सपैंस, आफिस एक्सपैंस, व्हीकल की मैंटीनैंस व इन्हें चलाने के लिए राशि खर्च करता है। वर्ष 2011 से लेकर 2018 तक इस पर 1.45 करोड़ की राशि खर्च की जा चुकी है। सिटको ने यहां आने वाले अधिकारियों व एम.डी. इत्यादि की आवाभगत के लिए 8.78 लाख की वर्ष 2012 में होंडा सिटी कार भी खरीदी थी। 17.83 लाख की 2017 में टोयोटा कोरोला कार भी खरीदी गई थी। घाटे में चल रही सिटको ने ये सारे खर्चे उच्चाधिकारियों के कहने पर किए हालांकि कमॢशयल एक्टीविटी का यह हिस्सा नहीं थे। इंडियन ऑडिट एंड अकाऊंट्स डिपार्टमैंट की ओर से इश्यू किए गए ड्राफ्ट पैरा में कहा गया कि इस तरह के खर्चे करने को लेकर सिटको का कोई फार्मल एग्रीमैंट किसी कागजात में दिखाई नहीं देता। वर्ष 2014  में दिल्ली में यू.टी. के गैस्ट हाऊस पर खर्च की गई राशि को रिकवर करने का लैटर जारी हुआ लेकिन आज तक इसका कोई रिजल्ट नहीं निकला। 

सिटको ने पैसा वसूली के लिए नहीं किया कुछ खास 
प्रशासन ने ऑडिट के ऑब्जैक्शन पर जवाब दिया है कि यह खर्चा सोशल फंक्शन ऑन कमॢशयल बेसिस पर किया गया है। मई 2016 में इसको लेकर एग्रीमैंट किया गया लेकिन इस पर दस्तखत तो हुए लेकिन यह लागू नहीं हुआ था। सिटको मैनेजमैंट ने इसको लेकर महज कुछ लैटर जारी कर ही अपने काम की इतिश्री कर ली और अपना पैसा वसूलने के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाए। दोनों मामलों में कुल मिलाकर सिटको को 13.43 करोड़ रुपए का फटका लगा है। न तो सिटको और न ही प्रशासन ने इन दोनों मामलों में जनरल फाइनैंशियल रूल्स को फॉलो किया।

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