कालका-चंडीगढ़-दिल्ली शताब्दी में लगाया बायो-वैक्यूम टॉयलेट

Edited By pooja verma,Updated: 28 Jan, 2020 03:45 PM

bio vacuum toilet installed in kalka chandigarh delhi shatabdi

उत्तर रेलवे ने स्वच्छता की दिशा में एक नई पहल की है।

चंडीगढ़ (लल्लन): उत्तर रेलवे ने स्वच्छता की दिशा में एक नई पहल की है। इस नई पहल के तहत उत्तर रेलवे ने ऐसी पहली क्षेत्रीय रेलवे बन गई है । जिसने अपनी एक ट्रेन को पूरी तरह से एयरक्राफ्ट (विमानशैली ) के तर्ज पर एक ट्रेन को बॉयो-वैक्यूम शौचालय युक्त बना दिया है। उत्तर रेलवे से मिली जानकारी के अनुसारकालका-चंडीगढ़-दिल्ली शताब्दी ट्रेन नंबर-2005 (शताब्दी एक्सप्रेस ) के सभी डिब्बों में बॉयो-वैक्यूम शौचालयों से युक्त रेल की शुरुआत कर दी है। 

 

जानकारी के अनुसार रेलगाड़ियों में विमान-शैली वाले बन म शौचालय लगाना भारतीय रेलवे प्राथमिकता है। इस मामले की निगरनी रेलमंत्री के डैशबोर्ड आइटम के रूप में उच्चतर स्तरपर की जा रही है। वैक्यूम-निकासी प्रणाली दुर्गंध को दूर करने और पानी की खपत में बचत करने में मददगार साबित होती है। रेल के शौचालय में यह बदलाव उत्तर रेलवे के नई दिल्ली स्थित कोच केयर सँटर में किया गया है।

 

बायो टॉयलेट्स के क्या है फायदें 
-पारंपरिक शौचालयों द्वारा मानव मल को सीधे रेल की पटरियों पर छोड़ दिया जाता था, जिससे पर्यावरण में गंदगी फैलने के साथ ही रेल पटरियों की धातु को
नुकसान पहुंचता था. अब ऐसा नहीं होगा।

-फ्लश टॉयलेट्स को एक बार इस्तेमाल करने पर कम से कम 0 से 5 लीटर पानी खर्च होता था जबकि वैक्यूम आधारित बॉयो टॉयलेट एक फ्लश में करीब आधा लीटर पानी ही इस्तेमाल होता है।

-भारत के स्टेशन अब साफ सुथरे और बदबू रहित हो जायेंगे जो कि कई बीमारियों को रोकने की दिशा में अच्छा कदम है।

-स्टेशन पर मच्छर, कॉकरोच और चूहों की संख्या में कमी आएगी और चूहे स्टेशन को अन्दर से खोलना नही कर पाएंगे।

-वायो टॉयलेट्स के इस्तेमाल से मानव मल को हाथ से उठाने वाले लोगों को इस गंदे काम से मुक्ति मिल जाएगी।

 

शताब्दी और सुपरफास्ट ट्रेनों में यह बदलाव होगा जल्द
रेलवे बोर्ड ने यह फैसला लिया है कि जल्द ही सभी शताब्दी और सुपरफास्ट ट्रेनों में यह बदलाव किया जाएगा। रेलवे बोर्ड के अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि बायो वैक्यूम टॉयलेट के जरिए शौचालय के नीचे बायो डाइजैस्टर कंटेनर में एनेरोबिक बैक्टीरिया होते हैं। जो मानव मल को पानी और गैसों में बदल देते हैं ।इस प्रक्रिया के तहत मल सड़ने के बाद केवल मीथेन गैस और पानी ही शेष बचते हैं । जिसके बाद पानी को री-साइकिल कर शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है | इन गैसों को वातावरण में छोड़ दिया जाता है जबकि दूषित जल को क्लोरिनेशन के बाद पटरियों पर छोड़ दिया जाता है।

 

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