Edited By Priyanka rana,Updated: 07 Jun, 2020 11:21 AM
कोरोना काल में चंडीगढ़ के तीन प्रमुख अस्पताल पांच कोरोना संक्रमित पेशैंट्स की चुनौतीपूर्ण सर्जरी और पांच कोरोना संक्रमित महिलाओं की नार्मल डिलीवरी कर चुके हैं।
चंडीगढ़(अर्चना) : कोरोना काल में चंडीगढ़ के तीन प्रमुख अस्पताल पांच कोरोना संक्रमित पेशैंट्स की चुनौतीपूर्ण सर्जरी और पांच कोरोना संक्रमित महिलाओं की नार्मल डिलीवरी कर चुके हैं। पी.जी.आई. में दो ट्रामा पेशैंट्स की कोविड सर्जरी की गई हैं जबकि जी.एम.एस.एच.-16 में चार कोरोना संक्रमित महिलाओं की नॉर्मल और दो महिलाओं की सिजेरियन डिलीवरी की गई है।
जी.एम.सी.एच.-32 में दो कोरोना संक्रमित महिलाओं की डिलीवरी की गई है, जिनमें एक महिला की नार्मल डिलीवरी की गई है जबकि दूसरी महिला ने सी सैक्शन से बच्चे को जन्म दिया। चंडीगढ़ में 10 ऐसे पेशैंट्स थे, जिनके ट्रीटमैंट के दौरान डॉक्टर्स हाई रिस्क पर थे। पी.पी.ई. किट्स के ऊपर ओ.टी. गाऊन, गोगल, मास्क, फेस मास्क पहनना (डॉनिंग) और सर्जरी के बाद पी.पी.ई. किट को उतारना (डॉफिंग) कम रिस्की नहीं होता।
कोविड सर्जरी करने वाले डॉक्टर्स का कहना है कि कोरोना काल में की गई सर्जरी दुर्लभ किस्म की नहीं थी। आमतौर पर ऐसी सर्जरी रूटीन में बड़ी तादाद में की जाती हैं लेकिन खतरा सिर्फ संक्रमण से बचाव का था। पेशैंट को ट्रीट भी करना था और खुद की सुरक्षा का भी ख्याल रखना था।
4 घंटे की सर्जरी में सवा घंटा पी.पी.ई. किट को देना पड़ता है :
पी.जी.आई. के इमरजैंसी एंड ट्रामा इंचार्ज प्रो. नवीन पांडे का कहना है कि संस्थान में कोरोना संक्रमित पेशैंट्स की सर्जरी के लिए ऑपरेशन थियेटर भी कोविड अस्पताल का ही इस्तेमाल किया गया। कोविड ओ.टी. में जाने से पहले ही डॉक्टर्स को पूरी तैयारी के साथ ओ.टी. में पी.पी.ई. किट पहनकर जाना होता है और उसके बाद ओ.टी. में घुसने से पहले ओ.टी. गाऊन पहनना होता है।
ओ.टी. के अंदर सर्जन पी.पी.ई. किट की वजह से पसीने से भीगता रहता है और उसके हाथ पेशैंट की सर्जरी में चलते रहते हैं। आम सर्जरी में सर्जन सिर्फ गाऊन व मास्क ही लगाते थे लेकिन पी.पी.ई. किट की वजह से बॉडी के अंदर जरा भी हवा क्रॉस नहीं कर सकती।
ऊपर से गाऊन पहनना इस वजह से जरूरी होता है क्योंकि स्टैराइल (कीटाणु रहित) किया गया होता है। अगर पी.पी.ई. किट पहनने में 30 मिनट लगते हैं तो उसे उतारने में लगभग 45 मिनट सर्जन को लग जाते हैं। चार घंटे की सर्जरी के बाद सवा घंटा सिर्फ पी.पी.ई. किट को देना पड़ता है।
सी-सैक्शन से ज्यादा रिस्की रही नार्मल डिलीवरी :
जी.एम.एस.एच.-16 की गाइनीकालोजी विभाग की एच.ओ.डी. डॉ. अमनदीप कंग का कहना है कि उनके अस्पताल में 6 कोरोना पॉजीटिव महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया है। इनसे सिर्फ एक महिला में कोरोना के लक्षण थे। महिला की सर्जरी से डिलीवरी की गई। उसे सांस लेने में दिक्कत थी, वे अनीमिक भी थी। कोरोना टैस्ट ना किए जाते तो पता ही नहीं चलता कि महिलाएं पॉजीटिव हैं।
जी.एम.सी.एच.-32 की गाइनीकोलॉजी विभाग की एच.ओ.डी. प्रो. अलका सहगल का कहना है कि दो पॉजीटिव महिलाओं में से एक की नार्मल डिलीवरी की गई और दूसरी की सिजेरियन करनी पड़ी। सिजेरियन डिलीवरी जहां डेढ़ घंटे में निपट गई थी, वहीं नार्मल डिलीवरी में आठ से दस घंटों का समय लग जाता है। ऐसे में दोनों डिलीवरी रिस्क पर होती हैं। डॉक्टर्स ने नियमों के अंतर्गत सावधानी बरतते हुए सर्जरी की और पॉजीटिव महिलाओं की डिलीवरी करने वाली एक भी डॉक्टर पॉजीटिव नहीं हुई।
पेशैंट्स की जान थी खतरे में :
पी.जी.आई. ने कोरोना काल में दो सड़क हादसे के शिकार कोविड पेशैंट्स की सर्जरी की है। मलेरकोटला के 50 वर्षीय व्यक्ति के सिर पर चोट आई थी। उसकी खोपड़ी से खून का रिसाव हो गया था। अगर खून को खोपड़ी से साफ न किया जाता तो पेशैंट की जान खतरे में आ सकती थी। डॉक्टर्स की सर्जरी में चार घंटे का समय लगा।
न्यूरो सर्जन डॉ. अनिरूद्ध और डॉ. विगनेश ने टीम के साथ मिलकर सर्जरी को अंजाम दिया। पेशैंट फिलहाल आई.सी.यू. में है। न्यूरोसर्जन डॉ.एस.के. गुप्ता का कहना है कि हैड इंजरी वाले पेशैंट की सर्जरी के लिए इंतजार नहीं किया जा सकता था इसलिए डॉक्टर्स ने पूरी सावधानी के साथ पेशैंट को ऑपरेट किया। दूसरी कोविड सर्जरी आर्थोपैडिस की थी।
23 साल का युवक सड़क हादसे का शिकार हो गया था। उसकी संस्थान में दो सर्जरी की गई। ओर्थोपेडिक एसपर्ट डॉ. कार्तिक का कहना है कि पेशैंट की लेफ्ट टांग पहली सर्जरी में काटनी पड़ी थी। दूसरी सर्जरी में पुराने जख्मों की सफाई करनी थी और दूसरी टांग की सर्जरी भी करनी थी। पेशैंट भले कोरोना संक्रमित था लेकिन डॉक्टर के लिए उसका ट्रीटमैंट प्राथमिकता थी।