चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड की बड़ी लापरवाही, सील हुआ गरीब का घर, सड़क पर आया परिवार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Jan, 2018 10:04 AM

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चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड की बड़ी लापरवाही और कमजोरी सामने आई है, जिसका शिकार एक परिवार को होना पड़ा, जिनका सामान कोर्ट के आदेशों के बाद सड़क पर बिखेर दिया गया, जबकि उक्त परिवार सैक्टर-45 के उक्त फ्लैट का मालिक है जिसके नाम फ्री होल्ड फ्लैट की रजिस्ट्री...

चंडीगढ़ (रमेश): चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड की बड़ी लापरवाही और कमजोरी सामने आई है, जिसका शिकार एक परिवार को होना पड़ा, जिनका सामान कोर्ट के आदेशों के बाद सड़क पर बिखेर दिया गया, जबकि उक्त परिवार सैक्टर-45 के उक्त फ्लैट का मालिक है जिसके नाम फ्री होल्ड फ्लैट की रजिस्ट्री भी है। 12 जनवरी को अचानक जब कोर्ट बेलिफ पुलिस और सबसे पहले अलॉटी के साथ कोर्ट के मकान खाली करवाने के ऑर्डर लेकर आया तो देसराज गर्ग के मकान नंबर-325 सैक्टर-45 ए में पहुंचा तो गर्ग परिवार घर से बाहर था। 

 

कोर्ट बेलिफ और पुलिस घर का ताला तोड़ सामान बाहर निकालने की तैयारी में थे कि लोगों ने विरोध शुरू कर दिया और गर्ग परिवार को सूचित किया जो घर पहुंचा तो कोर्ट के ऑर्डर देख उनके होश उड़ गए, क्योंकि उन्हें इससे पहले न तो कोई नोटिस आया, न सम्मन और न ही कोर्ट केस की उन्हें कोई जानकारी थी। ऑर्डर देख देसराज गर्ग और उनकी बीमार पत्नी ऊषा गर्ग बेसुध हो गए, जिनके सामने कोर्ट कर्मियों और पुलिस ने केस जीतने वाले नरिंद्र व उसके समर्थकों के साथ घर का सामान सड़क पर बिखेर कर फ्लैट सील कर दिया। 


 

‘पंजाब केसरी’ ने अलाटमैंट से लेकर आज तक की ताजा स्थिति का ब्यौरा खंगाला 
पंजाब केसरी ने अलाटमैंट से लेकर ताजा स्थिति का ब्यौरा खंगाला तो सामने आया कि उक्त यूनिट 31 जुलाई, 1990 में सैक्टर-22 निवासी नरिंद्र कुमार पुत्र तुलसी राम को अलॉट हुई थी। नरिंद्र को अलाटमैंट लेटर के माध्यम से 30 दिन के भीतर 43,328 रुपए जमा करवाने को कहा गया था, लेकिन नरिंद्र कुमार ने निर्धारित समयसीमा में पैसे जमा नहीं करवाए, जिसके बाद बोर्ड ने 24 अप्रैल, 1991 को यूनिट के कैंसलेशन ऑर्डर पास कर दिए। नरिंद्र कुमार को इससे पहले 21 जनवरी, 1991 को शोकॉस नोटिस भी जारी किया गया और 15 दिन के भीतर जवाब देने को कहा गया, जिसके बाद नरिंद्र ने वित्तीय हालातों का जिक्र करते हुए पैसे जमा करवाने के लिए 28 फरवरी तक का समय मांगा, लेकिन उस समय सीमा के भीतर भी नरिंद्र पैसे जमा नहीं करवा सका, जिसके बाद 24 अप्रैल को कैंसलेशन ऑर्डर जारी कर दिया गया और वीकेंट लिस्ट में डाल  दिया गया। 

 

अथॉरिटी से परामर्श लेने के बाद में पुन: ड्रा निकाला गया और उक्त यूनिट बी.एम. गुलाटी को अलॉट कर दिया गया। गुलाटी ने उक्त यूनिट जून, 1999  में देसराज गर्ग को बेच दिया, जिन्होंने जी.पी.ए. ट्रांसफर पॉलिसी के तहत यूनिट अपने नाम ट्रांसफर करवा लिया और रजिस्ट्री से पहले पब्लिक नोटिस भी निकाला गया और एतराज मांगे गए, लेकिन किसी ने क्लेम नहीं किया जिसके बाद देसराज गर्ग के नाम अप्रैल 2004 में यूनिट नंबर-325 की रजिस्ट्री कर दी गई। तब से गर्ग अपने परिवार के साथ यहीं रह रहे थे जोकि इस वक्त सड़क पर हैं। 

 

चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड के सी.ई.ओ. ने जारी किए थे यह ऑर्डर
9 सितम्बर, 2015 को चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड के सी.ई.ओ. ने देसराज गर्ग को फ्लैट नंबर-325 सैक्टर-45 का मालिक करार देते हुए नरिंद्र कुमार द्वारा दायर केस में ऑर्डर जारी किए थे। ऑर्डर में साफ किया गया था कि नरिंद्र कुमार द्वारा दायर केस को कंसीडर न करते हुए उसकी अपील रिजैक्ट की जाती है। ऑर्डर में कही जिक्र नहीं किया गया कि नरिंद्र कुमार ने चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड के खिलाफ कोई मुकद्दमा भी दाखिल किया हुआ है। ऑर्डर में जुलाई, 2006 में नरिंद्र कुमार द्वारा किए गए एक केस सिविल सूट नंबर-0703538 का जिक्र भी किया गया था और बताया गया था कि इस केस में नरिंद्र कुमार को एक्सपार्टी करार देते हुए 30 अगस्त, 2010 में फैसला हाऊसिंग बोर्ड के पक्ष में आने की बात कही गई है। 

 

कोर्ट के ऑर्डर 
नरिंद्र ने वर्ष 2016 में चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड के खिलाफ सिविल सूट दायर कर फ्लैट नंबर-325 सैक्टर-45 का कब्जा मांगा था, जिस पर सिविल जज जूनियर डिवीजन रेखा चौधरी ने 1 जनवरी, 2018 को बैलिफ को वारंट जारी कर दिए लेकिन यूनिट में लॉक लगा होने के कारण कोर्ट ने 4 जनवरी को संबंधित थाना प्रभारी को कोर्ट बैलिफ को हरसंभव सहायता देने व किसी भी स्थिति से निपटने के लिए फोर्स मुहैया करवाने को कहा, साथ ही सामान बाहर निकाल यूनिट को खाली करवाने के आदेश दिए थे। ऑर्डर में हाऊसिंग बोर्ड के सचिव का आवास अटैच किया गया है।

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