फार्मासिस्ट घर में, लाइसैंस दीवार पर, मरीजों की जान जोखिम में!

Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Jun, 2017 10:34 AM

chemist shops without pharmacist

शहर के तीनों बड़े सरकारी अस्पतालों के कैमिस्ट स्टोर की दीवार पर फार्मासिस्ट का नाम और लाइसैंस तो लटका नजर आ जाएगा लेकिन फार्मासिस्ट नजर नहीं आएगा। स्टोर पर काम करने वाला स्टाफ ही मरीजों को दवाएं दे रहा है। यह सीधा मरीजों की जान से खिलवाड़ है

चंडीगढ़, (अर्चना सेठी): शहर के तीनों बड़े सरकारी अस्पतालों के कैमिस्ट स्टोर की दीवार पर फार्मासिस्ट का नाम और लाइसैंस तो लटका नजर आ जाएगा लेकिन फार्मासिस्ट नजर नहीं आएगा। स्टोर पर काम करने वाला स्टाफ ही मरीजों को दवाएं दे रहा है। यह सीधा मरीजों की जान से खिलवाड़ है। पंजाब केसरी की टीम ने पी.जी.आई., जी.एम.सी.एच. 16 और जी.एम.सी.एच. 16 में जाकर यह हकीकत जानी। यहां की दवा दुकानों से फार्मासिस्ट गायब मिले जबकि  ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट कहता है कि अस्पतालों में सातों दिन 24 घंटे चलने वाली दवा दुकानों पर पूरे समय के लिए फार्मासिस्ट की मौजूदगी अनिवार्य है। यह स्थिति तब है जब हाल ही में मैडीकल कौंसिल ऑफ इंडिया ने डाक्टर्स को निर्देश जारी कर मरीजों को ब्रांड की बजाए सिर्फ जेनेरिक सॉल्ट प्रिसक्राइब करने के लिए कहा है। डाक्टर्स द्वारा लिखे गए जेनेरिक सॉल्ट सिर्फ फार्मासिस्ट को ही समझ में आ सकते हैं, दूसरा व्यक्ति मरीजों को गलत सॉल्ट वाली दवाएं दे सकता है। 

सूत्रों की माने तो पी.जी.आई. की सरप्राइज चेक कमेटी ने भी बीते दिनों एक कैमिस्ट शॉप पर इसी वजह से जुर्माना किया था क्योंकि शॉप से फार्मासिस्ट गायब था। चंडीगढ़ के एक फार्माकोलॉजी एक्सपर्ट ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आज जेनेरिक के नाम पर कुछ कंपनियां नकली दवाएं बेचने लगी हैं और ऐसी दवाओं का सेवन मरीजों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है। ऐसे में सिर्फ फार्मासिस्ट ही है जो असली और नकली दवाओं में पहचान कर सकता है। जेनेरिक सॉल्ट के नाम पर कौन-सी दवा देनी है, यह सिर्फ फार्मासिस्ट ही बता सकता है। ऐसे में कैमिस्ट शॉप्स पर फार्मासिस्ट मौजूद है या नहीं, इस पर नजर रखी जानी बहुत ही जरूरी है।  

सामने आए ये मामले :
केस 1
पी.जी.आई. की गोल मार्कीट की कैमिस्ट शॉप मां दुर्गा फार्मेसी का  लाइसैंस रजनी गुप्ता, वंदना और मोहित के नाम पर है। शाम 6 बजे के बाद जब दवा दुकान पर फार्मासिस्ट को चैक किया गया तो पाया कि तीनों में से एक भी फार्मासिस्ट दुकान पर मौजूद नहीं था। मैनेजर प्रदीप ने कहा कि रजनी और वंदना कुछ ही देर पहले शॉप से निकली हैं और मोहित को कुछ काम था इसलिए वह शॉप पर नहीं है। प्रदीप ने कहा कि भले वह खुद फार्मासिस्ट नहीं है लेकिन उसके पास इतना अनुभव है कि वह साल्ट का नाम सुनते ही दवा का नाम समझ जाता है। उन्हें फार्मेसी एक्सपर्ट की हर समय शॉप पर जरूरत नहीं है।

केस-2
यही स्थिति गोल मार्कीट की अमृता फार्मेसी और दुर्गा मैडीकोज की भी थी। इन दोनों दवा दुकानों पर भी फार्मासिस्ट उपलब्ध नहीं थे। अमृता का लाइसैंस फार्मासिस्ट धीरज कुमार और ज्योति के नाम से है जबकि दुर्गा मैडीकोज का फार्मेसी लाइसैंस कमलजीत के नाम से है। अमृता के मालिक दीपक कुमार ने कहा कि ज्योति दिन के समय शॉप पर रहती है जबकि धीरज शाम के समय आते हैं। जब पूछा कि शाम 7.30 बजे तक वह शॉप पर क्यों नहीं हैं तो जवाब मिला कि उन्हें भूख लगी थी, खाना खाने गए हैं। परंतु उनकी गैर मौजूदगी में स्टाफ दवाएं बेच सकता है। दुर्गा मैडीकोज के स्टाफ मैंबर राजेंद्र कुमार ने कहा कि वह बहुत सालों से दुकान चला रहे हैं। उन्हें हर दवा के साल्ट की जानकारी हो चुकी है इसलिए उन्हें फार्मेसी एक्सपर्ट की गैर मौजूदगी में किसी किस्म की दिक्कत नहीं आती। दुर्गा मैडीकोज के मालिक डॉ. कमलजीत ने कहा कि उनकी शॉप में फार्मासिस्ट हमेशा मौजूद रहता है। जब पंजाब केसरी की टीम शॉप पर पहुंची तो फार्मासिस्ट खाना खाने गया हुआ था। 

केस 3
पी.जी.आई. की इमरजैंसी और एडवांस ट्रामा सैंटर के अंदर की दवा दुकानों में शाम के समय फार्मेसी एक्सपर्ट के नाम पर सिर्फ दुकान की दीवार पर टंगा हुआ फार्मेसी लाइसैंस था। इमरजैंसी की दुकान श्री कुमार कैमिस्ट का लाइसैंस मनप्रीत और नैंसी के नाम पर है लेकिन जब फार्मासिस्ट के बारे में पूछा तो मैनेजर राहुल ने बताया कि दिन के समय तो फार्मासिस्ट उपलब्ध रहते हैं परंतु शाम के समय उन्हें खाना भी खाने जाना होता है। खाना खाने के बाद वे लौट आएंगे। ट्रामा सैंटर की कुमार मैडीकोज शॉप का लाइसैंस हरपाल सिंह गुरु और अंकिता शर्मा के नाम पर है। शाम के समय दवा दुकान पर यह दोनों मौजूद नहीं थे। मालिक रोहित ने कहा कि रात के समय हरपाल सिंह गुरु शॉप पर रहते हैं परंतु वह खाना खाने गए हैं।

केस 4
सैक्टर-24, सैक्टर-16, सैक्टर-15, सैक्टर-32 की दवा दुकानों पर जब फार्मासिस्ट चेक किए गए तो अधिकतर दुकानों पर फार्मासिस्ट मौजूद थे परंतु उन्होंने ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के अंतर्गत न तो सफेद रंग का कोट पहन रखा था और न ही कहीं उनकी ड्रैस पर उनके नाम की नेम प्लेट ही मौजूद थी जबकि नियम कहता है कि सफेद रंग का कोट और कोट पर फार्मासिस्ट की नेम प्लेट लगा होना बहुत जरूरी है ताकि मरीज डाक्टर्स द्वारा प्रिसक्राइब की गई दवाओं को ठीक से पढ़ सके और सॉल्ट के मुताबिक दवाएं मिल सकें। डाक्टर्स की सॉल्ट से संबंधति लेखनी फार्मासिस्ट के सिवाए अन्य लोगों के लिए पढऩा आसान नहीं है।  

केस 5
जी.एम.सी.एच. 16 की हॉस्पिटल कैमिस्ट शॉप का फार्मेसी लाइसैंस अनूप और अमृत के नाम पर है। जब शॉप के स्टाफ बलविंदर से पूछा कि लाइसैंस में जिस महिला की फोटो है, वह कहां है तो उसने कहा कि वह नहीं जानता क्योंकि उसने तस्वीर वाली मैडम को कभी देखा ही नहीं है। जब अमृत के बारे में पूछा तो स्टाफ ने कहा कि वह खाना खा रहा होगा। जल्दी लौट आएगा। स्टाफ ने कहा कि उनके पास सालों का दवा बेचने का अनुभव है इसलिए फार्मासिस्ट की अनुपस्थिति में भी वह बढिय़ा तरीके से दवाएं बेच लेते हैं। जी.एम.एस.एच.-16 की दवा दकान के मालिक अमृत ने कहा कि फार्मासिस्ट को कुछ काम था इसलिए वह बाहर गया था। वो महिला जिसे स्टाफ नहीं जानता, असल में दिन के समय शॉप पर आती हैं और थोड़ा कम आती हैं इसलिए उनको स्टाफ ज्यादा जानता नहीं है।

केस 6
जी.एम.सी.एच. 32 की अपना कैमिस्ट शॉप की स्थिति तो बहुत ही खराब थी क्योंकि उनके लिए यह भी बताना मुश्किल हो रहा था कि उनका दुकान में कौन सा फार्मासिस्ट बैठता है। जब फार्मेसी लाइसैंस दिखाने को कहा गया तो बोले उन्होंने लाइसैंस को टांगा नहीं है, वह दवाओं के बॉक्स पर रखा है। जब कहा कि आपकी शॉप में आने वाले फार्मासिस्ट का नाम क्यों नहीं पता तो बोले रात के समय शॉप पर ताराचंद बैठते हैं लेकिन वह फार्मासिस्ट नहीं अकाऊंट चेक करते हैं। जब दुकान से लाइसैंस को खोजा गया तो उसमें सिद्धार्थ शर्मा, सतीश कुमार और शरनजीत कौर का नाम लिखा हुआ था। शॉप की देखरेख करने वाले राकेश ने कहा कि तीनों फार्मासिस्ट एक साथ दिन के समय में दुकान पर बैठते हैं। जी.एम.सी.एच.-32 दवा दकान के मालिक राम लाल बंसल ने कहा कि फार्मासिस्ट को खाना भी तो खाने जाना होता है इसलिए दुकान पर नहीं है। दिन में कभी भी चैक कर लो, यहीं मिलेगा फार्मासिस्ट।

यह हैं नियम : 
-- जब तक कैमिस्ट शॉप खुली रहेगी, तब तक फार्मासिस्ट भी दवा दुकान में मौजूद रहेगा। ड्रग लाइसैंस सिर्फ बी फार्मा या डी फार्मा व्यक्ति को ही मिल सकता है। 
-- फार्मासिस्ट को बाकायदा सफेद रंग का कोट दवा दुकान में पहन कर बैठे रहना होगा ताकि फार्मासिस्ट की पहचान आसान रहे।
-- फार्मासिस्ट के लिए सफेद कोट के ऊपर अपने नाम को दर्शाने वाली नेम प्लेट लगाना भी जरूरी है।
-- फार्मासिस्ट तय करता है दवाओं के साल्ट के आधार पर कौन-सी दवा देनी है।

फार्मासिस्ट के बगैर कैमिस्ट शॉप चलाना गैरकानूनी : 
ड्रग कंट्रोलर जसबीर सिंह ने बताया कि फार्मासिस्ट के बगैर कैमिस्ट शॉप चलाना गैरकानूनी है। दवा दुकान का लाइसैंस जिस फार्मासिस्ट के नाम से है, उस फार्मासिस्ट के बगैर लोगों को दवाएं नहीं बेची जा सकती। ड्रग एंड कास्मेटिक एक्ट के अंतर्गत फार्मासिस्ट के लिए जो भी प्रोटोकाल बनाए गए हैं, उन्हें न मानने वाले कैमिस्ट के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कुछ कैमिस्ट चालक किराए पर फार्मासिस्ट का लाइसैंस लेकर दुकान चलाते हैं, उन्हें दवाओं के जेनेरिक साल्ट की जानकारी नहीं होती और यह मरीजों के लिए घातक साबित हो सकती है। इसलिए ड्रग कंट्रोल डिपार्टमैंट समय-समय पर चैकिंग करता रहता है। ऐसे कैमिस्ट को शो कॉज नोटिस जारी किए जाते हैं और लाइसैंस तक रद्द करने का प्रावधान है।   

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