निगम को झटका : JP प्लांट से MOU रद्द करने के नोटिस पर कोर्ट का स्टे

Edited By Priyanka rana,Updated: 13 Mar, 2020 10:40 AM

court stay on notice of cancellation of mou from jp plant

नगर निगम और जे.पी. के बीच प्रोसैसिंग प्लांट को लेकर चल रहे मामले में वीरवार को निगम को करारा झटका लगा है।

चंडीगढ़(राय) : नगर निगम और जे.पी. के बीच प्रोसैसिंग प्लांट को लेकर चल रहे मामले में वीरवार को निगम को करारा झटका लगा है। डड्डूमाजरा  के गारबेज प्रोसैसिंग प्लांट को हैंडओवर करने और एम.ओ.यू. खारिज करने के मामले में वीरवार को गारबेज प्रोसैसिंग प्लांट कंपनी जय प्रकाश एसोसिएट को उस समय बड़ी राहत मिली गई, जब जिला अदालत में निगम के नोटिस को चुनौती देने संबंधी अर्जी पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने स्टे लगा दी। 

इतना ही नहीं, कोर्ट ने तीन महीने के भीतर आॢबट्रेटर भी नियुक्त करने के आदेश दिए हैं जो कि मामले को तय कर सके। निगम ने जे.पी. प्लांट को पिछले वीरवार को एम.ओ.यू. खारिज करने का एक सप्ताह की समय अवधि का नोटिस दिया था। समय अवधि समाप्त होने के ऐन मौके पर आकर एक तरह से जे.पी. प्लांट को कानूनी लड़ाई में मनोवैज्ञनिक जीत हासिल हो गई। 

जे.पी. प्लांट प्रबंधन ने नोटिस को अवैध करार देते हुए कोर्ट की शरण ली थी। एक तरफ 12 बजे एक सप्ताह की समयावधि समाप्त होनी थी, इससे पहले कि निगम आगे की कार्रवाई करने की सोचता कोर्ट ने 10 बजे से सुनवाई करते हुए शाम को नोटिस पर स्टे लगाने के आदेश जारी कर दिए। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश विजय सिंह की कोर्ट में बहस के लिए निगम के वकील भी पेश हुए।

कांग्रेसी पार्षद और नेता प्रति पक्ष का आरोप, जे.पी. कंपनी की बीजेपी पार्षदों के साथ मीटिंग स्टे का कारण :
अदालत के फैसले के तुरंत बाद ही निगम सदन में कांग्रेसी पार्षद और नेता प्रति पक्ष देवेंद्र सिंह बबला ने भाजपा पार्षदों पर तंज कसा है। बबला ने कहा कि आज पता चला है कि जे.पी. कंपनी ने कोर्ट से स्टे ले ली है। ये बी.जे.पी. काबिज नगर निगम की नालायकी है कि जे.पी. कंपनी स्टे कैसे ले गई? 

क्योंकि हाऊस की मीटिंग में हमें यही कहा गया था कि एन.जी.टी. का फैसला है कि जे.पी. कंपनी को नगर निगम संभाले पर अब क्या हो गया है। हमें तो यह लगता है कि जे.पी. कंपनी की बी.जे.पी. के पार्षदों के साथ हुई मीटिंग यह स्टे का कारण है। ये खुद ही नहीं चाहते कि जे.पी. कंपनी को नगर निगम खुद चलाए।

एन.जी.टी. ने कभी कांट्रैक्ट रद्द करने को नहीं कहा :
उधर, जे.पी. प्लांट के वकील आर.एस. वालिया ने बहस में दलील देते हुए दावा किया कि नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) ने कभी निगम को जे.पी. के साथ कांटै्रक्ट खत्म करने को नहीं कहा। एन.जी.टी. के आदेशों पर ही यह प्लांट स्थापित किया गया और निगम की ओर से हस्ताक्षरित एम.ओ.यू. के अनुसार जे.पी. प्लांट का संचालान 11 वर्षों से कर रहा है। प्लांट के वकील का आरोप था कि निगम का यह हमारी संपत्ति लूटने का प्रयास है। 

दलील में कहा गया कि अगर सेवा में कोई कोताही और कमी थी तो निगम को चाहिए था कि चेतावनी सरीखा नोटिस जारी कर तत्काल उसमें सुधार करता लेकिन निगम ने गलत तरीका अपनाया। दलील में कहा गया कि यह नोटिस कांट्रेक्ट की टर्म एंड कंडीशन के विपरीत था। जिनकी यह भी दलील थी कि निगम ने नोटिस जारी करने की गलत प्रक्रिया अपनाई। उनकी दलील थी कि अगर को कांट्रैक्ट रद्द करने की समयावधि (क्योर पीरियड) 90 दिन दी जानी चाहिए थी ताकि इस बीच सुधार किया जा सके नहीं तो टर्मिनेट करने का समय 180 दिन होना चाहिए था।

निगम की बढ़ी मुश्किलें, दो सदन की बैठक हुई :
जे.पी. प्लांट के मसले पर कानूनी दाव पेंच में निगम इस कदर उलझ गया है कि उसके लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। समस्या यह है कि अगर निगम का जे.पी. प्लांट के साथ रिश्ता आगे जारी  रहा  तो संभवत: अप्रैल में उस पर पैनल्टी का भी खतरा मंडराया हुआ है। निचली अदालत के ताजा फैसले के बाद निगम को जल्द ही नए सिरे से कानूनी विकल्प तलाशने होंगे। 

वहीं, इतनों दिनों के घटनाक्रम की तरफ गौर किया जाए तो जे.पी. प्लांट से गारबेज प्लांट का कब्जा लेने से लेकर वैकल्पिक व्यवस्था को लेकर निगम ने 25 फरवरी और 4 मार्च को दो सदन की बैठक बुलाई। 25 फरवरी को निगम ने बाकायदा 193 पेज का एजैंडा पारित कराया था। जबकि 4 मार्च को प्रशासक के सलाहकार के कहने पर बाकायदा विशेष बैठक बुलाई। इसके अगले दिन 5 मार्च को नोटिस जारी कर दिया गया।

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