Edited By pooja verma,Updated: 13 Jun, 2019 01:04 PM
कुछ साल पहले तक एच.आई.वी. पॉजीटिव महिला का गर्भवती होना और उसके बच्चे को यह वायरस न हो, इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था, लेकिन इफैक्टिव दवाओं व सही ट्रीटमैंट से बच्चे को एच.आई.वी. से बचाया जा सकता है।
चंडीगढ़ (रवि) : कुछ साल पहले तक एच.आई.वी. पॉजीटिव महिला का गर्भवती होना और उसके बच्चे को यह वायरस न हो, इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था, लेकिन इफैक्टिव दवाओं व सही ट्रीटमैंट से बच्चे को एच.आई.वी. से बचाया जा सकता है।
चंडीगढ़ एड्स कंट्रोल सोसायटी के आंकड़ों पर गौर करें तो शहर में दो साल से एक भी एच.आई.वी. पॉजिटिव बच्चा पैदा नहीं हुआ है। एड्स कंट्रोल सोसायटी की प्रौजैक्ट डायरैक्टर डा. वनिता गुप्ता के मुताबिक गर्भवती महिलाओं के लिए स्पैशल कैंप लगाए जा रहे हैं, जिससे उनमें काफी अवेयरनैस आ रही है।
वहीं प्रेग्नैंसी के शुरूआती हफ्तों में महिलाओं को सही ट्रीटमैंट देना शुरू कर दिया जाता है जिससे बच्चों को वायरस से बचाया जा सकता है। सबसे अच्छी बात यह है कि अब लोग अपना एच.आई.वी. स्टेट्स चैक करवाने लगे हैं।
हालांकि प्रेग्नैंसी के दौरान यह टैस्ट जरूर किया जाता है, लेकिन कई केसों में पॉजीटिव होने के बावजूद उन्हें पता नहीं होता है ऐसे में एक बार रिपोर्ट आने के बाद प्रेग्नैंट महिला का ट्रीटमैंट शुरू कर दिया जाता है।
आंकड़े देखें तो साल 2017 से 2019 तक 60 हजार से ज्यादा प्रेग्नैंट महिलाओं ने अपना एच.आई.वी. टैस्ट करवाया, जिसमें से 51 महिलाएं पॉजीटिव पाई गई। डिलीवरी के बाद भी बच्चों का फॉलोअप 18 महीनों तक किया जाता है कि कहीं बच्चा इंफैक्टेड तो नहीं, लेकिन फॉलोअप में भी कोई बच्चा पॉजिटिव नहीं पाया गया।
कम्युनिटी बेस्ड स्क्रीनिंग के जरिए मरीजों तक पहुंच रहा एच.आई.वी. टैस्ट
एड्स कंट्रोल सोसायटी ने एच.आई.वी. की रोकथाम के लिए एक नई पहल सी.बी.एस. (कम्यूनिटी बैस्ड स्क्रीनिंग) की भी शुरूआत की है। जिसके तहत अब मरीजों को टैस्ट के लिए अस्पतालों में बने ए.आर.टी. सैंटर्स में जाना नहीं पड़ रहा।
इस नई सुविधा (प्रिक टैस्ट) के तहत लोगों के पास जाकर एच.आई.वी. टैस्ट करेगा। टैस्ट की रिपोर्ट भी 20 मिनट के अंदर मरीज को मिल रही है। एक बार रिपोर्ट आने के बाद मरीज को ट्रैक किया जाता है वहीं रिपोर्ट को एक बार फिर कंर्फमैशन के लिए दोबारा टैस्ट किया जाता है ताकि किसी भी तरह की कोई गलती न हो।
टैस्ट के लिए खास तौर पर हैल्थ वर्कस को ट्रैंड किया गया है जो फील्ड में जाकर इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके साथ ही प्री व पोस्ट काऊंसलिंग की सुविधा भी मुहैया करवाई गई है। मेलों, हैल्थ कैंप व कम्यूनिटी इवेंट्स में इसकों इस्तेमाल किया गया है।
मकसद यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोग अपना एच.आई.वी. स्टेट्स जान सकें। पिछले कुछ सालों में शहर में एच.आई.वी. का प्रिवलेंस काफी कम हुआ है आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2008 में जहां 0.27 प्रतिशत इसका प्रिवलेंस था वहीं साल 2018 में यह घटकर 0.07 प्रतिशत रह गया है जो दूसरे शहरों के मुकाबले बहुत कम है।
डा. गुप्ता कहती हैं कि एच.आई.वी. को तभी कम किया जा सकता है जब लोगों को अपने स्टेट्स का पता होगा। कई लोग ऐसे भी हैं जो अस्पतालों में टैस्ट के लिए नहीं आना चाहते, ऐसे में टैस्ट को उन तक पहुंचाने की नई पहल काफी अच्छी साबित हो रही है जितना जल्दी बीमारी डायग्नोस होगी, इलाज थोड़ा आसान हो जाता है।