Edited By Priyanka rana,Updated: 06 Feb, 2020 02:03 PM
डायबिटीज एक साइलैंट किलर का काम करती है। आपकी बॉडी के ऑर्गन खासकर किडनी व लिवर को डैमेज कर देती है।
चंडीगढ़(रवि) : डायबिटीज एक साइलैंट किलर का काम करती है। आपकी बॉडी के ऑर्गन खासकर किडनी व लिवर को डैमेज कर देती है। इतनी अवेयरनैस होने के बावजूद लोगों को डायबिटिक रेटिनोपैथी का अंदाजा नहीं है कि डायबिटीज होने पर आंखों की रोशनी तक जा सकती है। पी.जी.आई. कम्युनिटी मैडीसन डिपार्टमैंट की एक रिसर्च में सामने आया है कि लोगों को रेटिनोपैथी को लेकर इतनी कम जानकारी है कि वह शुरूआती दौर में इसका डायग्रोस नहीं कर पाते।
डॉ. महक ने पी.जी.आई. स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के हैड प्रो. अमरजीत सिंह व पी.जी.आई. डायटिक्स डिपार्टमैंट के डॉ. पूनम के अंडर यह रिसर्च की है। 175 डायबिटीक पेशैंट्स पर इसकी रिसर्च की। जिसमें उन्होंने देखा कि महज 30 प्रतिशत लोगों को ही डायबिटिक रेटिनोपैथी का पता था क्योंकि उनकी इस बीमारी को लेकर उनकी एक हिस्ट्री रही थी तो लिहाजा उन्हें भी इस बीमारी के होने के चांस थे।
पंजाब, हरियाणा, पुणे, झारखंड जैसे शहरों से पी.जी.आई. में इलाज कराने आए डायबटिक मरीजों को इस रिसर्च में शामिल किया गया था। इसमें 20 से 80 साल तक के 60 पुरुष व 40 महिलाओं को रिसर्च का हिस्सा बनाया गया। उन्होंने कहा कि कुछ सालों से डायबीटिज को लेकर बहुत अवेयरनैस आई है। बावजूद इसके रिजल्ट बहुत हैरानी वाले है कि इन मरीजों को रेटिनोपैथी के बारे में जानकारी नहीं थी।
ज्यादातर मरीजों को किडनी व डायबीटिक फूट के बारें में पता है जिसको लेकर डायबिटिज मरीज वक्त वक्त पर स्क्रीनिंग करवाते रहते हैं ताकि वक्त से पहले अगर शुगर का असर इन ओर्गन्स पर पड़ा तो इलाज संभव हो सके। डायबिटीक रेटिनोपैथी में बॉडी में ब्लड ग्लूकोज लैवल बहुत बढ़ जाता है जिसकी वजह से आपकी आंखों पर इसका असर पडऩा शुरू हो जाता है। शुरूआती दौर में यह आपके ब्लड वैसेल्स को कमजोर करना शुरू कर देती है।
शुरूआती दौर में नहीं दिखते लक्षण :
रिसर्च में पता चला है कि अगर मरीजों को पहले पता होता कि डायबीटिज का असर आंखों पर भी पड़ता है तो वह वक्त-वक्त पर आंखों की स्क्रीनिंग जरूर करवाते। जब मरीजों को बताया गया तो 90 प्रतिशत मरीजों ने न सिर्फ मैडीकेशन फॉलो करनी शुरू की, बल्कि आंखों की रैगुलर स्क्रीनिंग भी करवानी शुरू की। एक्सरसाइज व सही डाइट लेनी शुरू की। डॉ. महक कहती है कि रिसर्च का मकसद लोगों को इस बीमारी को लेकर अवेयर करना था।
डायग्नोस करना आसान नहीं :
लोगों को नहीं पता होगा, वह स्क्रीनिंग के लिए नहीं आते। शुरूआती दौर में इसको डायग्रोस करना आसान नहीं है। इसके सिम्टम्स दूसरी बीमारियों के साथ मिल जाते है। मरीजों को एडवाइज किया जाता है कि डायबीटिज पेशैंट्स को हर 6 महीने व साल में एक बार आंखों की स्क्रीनिंग जरूर करवाए।
इसके साथ ही अगर आपकी फैमिली हिस्ट्री रही है तो आपको चैकअप रैगुलर लैवल पर करवाना चाहिए। कई मामलों में देखा गया है कि मरीज की बीमारी गंभीर हो जाती है। आंखों में ब्लड आना शुरू हो जाता है या रोशनी बिल्कुल जा चुकी है। तब मरीज इलाज के लिए आते हैं। ऐसे में इलाज मुश्किल हो जाता है। बीमारी का इलाज बहुत महंगा हो जाता है, कई सर्जरी करवानी पड़ती है।
दर्द महसूस नहीं होता :
शुरूआती स्टेज को नॉन पॉलिफरेटिव डायबिटिक रेटीनोपैथी कहते हैं। इसमें छोटे-छोटे ब्लड लीकेज होते हैं। इसमें होने वाली दिक्कत का एहसास भी नहीं होता। इसमें न तो देखने में परेशानी होती है और न ही किसी तरह का दर्द महसूस होता है।
इसका पता केवल आंख के पर्दे की जांच से ही किया जा सकता है। जब ये स्थिति बढ़ती है तो आंख के अंदर खून बहने होने लगता है और देखने में दिक्कत होने लगती है। इसमें एक आंख से कम दिखने लगता है और दूसरी आंख से ज्यादा।