जी.एम.सी.एच. के डायरैक्टर प्रिंसीपल और साइकैट्रिक डिपार्टमैंट के एच.ओ.डी. प्रो. बी.एस. चवन का निधन

Edited By Vikash thakur,Updated: 04 Dec, 2020 08:32 PM

diagnose was colon cancer

शुक्रवार अलसुबह 2.30 बजे ली अंतिम सांस, 11 दिन से थे वैंटीलेटर पर  पिछले साल डायग्नोस हुआ था पेट का कैंसर  शहर को मेंटल हैल्थ और ग्रिड जैसे बड़े इंस्टीच्यूट दिए  साथी डॉक्टरों ने कहा-मैडीकल फील्ड का बहुत बड़ा नुक्सान हुआ

चंडीगढ़, (पाल): जी.एम.सी.एच. के डायरैक्टर प्रिंसीपल व साइकैट्रिक डिपार्टमैंट के एच.ओ.डी. प्रो. बीर सिंह चवन का शुक्रवार अलसुबह 2.30 बजे निधन हो गया। वे 11 दिनों से वैंटीलेटर पर थे। डॉ. चवन को कोलन (पेट) का कैंसर था, जिसका इलाज जी.एम.सी.एच. से चल रहा था। 59 साल के डॉ. चवन 22 दिनों से हॉस्पिटल में एडमिट थे। वीरवार रात 9 बजे उनकी हालत गंभीर हो गई थी। सांस लेने में दिक्कत बढऩे लगी थी। शुक्रवार दोपहर 12 बजे उनका अंतिम संस्कार सैक्टर-25 के श्मशानघाट में किया गया। पिछले साल 2019 में डॉ. चवन के पिता की 18 सितम्बर को 105 साल की उम्र में मौत हुई थी। उसके अगले दिन उन्होंने अपनी ड्यूटी ज्वाइन भी की लेकिन उसी दिन उनके पेट में दर्द हुआ। सभी तरह के टैस्ट और स्कैनिंग हुई, जिसमें कैंसर डायग्नोस हुआ था। टाटा मैमोरियल मुंबई, मेदांता, पी.जी.आई. में भी उनका इलाज हुआ था। हालांकि बीमारी के बावजूद उन्होंने कभी अपने काम को अनदेखा नहीं किया। साल 1996 से जी.एम.सी.एच. साइकैट्री में वह अपनी सेवाएं दे रहे थे।  

 


कोरोना काल में भी लगातार काम कर रहे थे
डॉ. चवन बीमारी के बावजूद अपने काम के प्रति समर्पित थे। कोविड के शुरूआती दौर में भी वह बहुत एक्टिव थे। मरीजों के लिए उन्होंने कई तरह की सुविधाएं शुरू की। साथ ही स्टाफ की सेफ्टी को उन्होंने हमेशा अहमियत दी। पिछले कुछ दिनों से सीनियर मोस्ट प्रो. जसबिंदर कौर डायरैक्टर का चार्ज देख रही हैं। एडमिट होने के बाद भी काम को लेकर वह अपनी राय देते हैं। पूरे हॉस्पिटल स्टाफ के लिए यह बहुत बड़ी दुख की घड़ी है।


शहर को दिए मेंटल हैल्थ और ग्रिड जैसे संस्थान
डॉ. चवन साइकैट्रिक फील्ड का एक बहुत बड़ा नाम हैं। जी.एम.सी.एच. के साइकैट्रिक डिपार्टमैंट की गिनती देश में टॉप लैवल पर की जाती है। उनका रिसर्च वर्क इंटरनैशनल लैवल पर सराहा गया है। 198 रिसर्च आर्टिकल नैशनल और इंटरनैशनल लैवल पर कई बड़े जर्नल में पब्लिश हुए हैं। वहीं, मेंटल हैल्थ को लेकर 15 रिसर्च प्रोजैक्ट उन्होंने पूरे किए हैं। चंडीगढ़ में पिछले साल ही मेंटल हैल्थ इंस्टीच्यूट शुरू हुआ है जोकि सैक्टर-32 में है। यह उनके ड्रीम प्रोजैक्ट में से एक था। यह नार्थ इंडिया का पहला बड़ा मेंटल हैल्थ इंस्टीच्यूट है, जहां एडवांस लैवल की सुविधाएं मरीजों को दी जा रहे हैं। लोगों में आज भी साइकैट्रिक को लेकर एक टैबू है लेकिन डॉ. चवन की बदौलत लोगों में मेंटल हैल्थ को लेकर बहुत अवेयरनैस आई। वहीं, सैक्टर-31 में ग्रिड (गवर्नमैंट रीहैबलिएटेशन इंस्टीच्यूट फॉर इंटलेक्चुअल डिसेबिलिटीज) भी उन्हीं की देखरेख में विकसित हुई, जहां मेंटली चैलेंज्ड बच्चों को रिहेब किया जाता है।

एम.बी.बी.एस. सीटों को पहुंचाया 150 तक
डॉ. चवन ने अपने कार्यकाल में कई अहम सुविधाएं जीएमसीएच में मुहैया करवाईं। उन्होंने एम.बी.बी.एस. सीटों को 100 से 150 तक करवाया। हॉस्पिटल में जेनेटिक स्क्रीनिंग लैब की सुविधा शुरू की ताकि जन्म से पहले ही बच्चों में अगर किसी तरह की डिसेबिलिटी है तो उसका पता लगाया जा सके। पी.जी. सीटों को 70 से 132 तक पहुंचाया। हॉस्पिटल में मदर एंड चाइल्ड केयर सैंटर की शुरूआत के लिए अभी टैंडर कॉल हुआ है। साथ ही एडवांस ट्रामा सैंटर का काम भी हो गया है। डी.एम. कार्डियोलॉजी और न्यूनोटोलॉजी को शुरू किया। करीब 10 साल पहले शहर में बढ़ते सुसाइड के मामलों को देखते हुए डॉ. चवन ने ही जी.एम.सी.एच. में 24 घंटे हैल्पलाइन शुरू की थी। होम बेस्ड ट्रीटमैंट केयर सर्विस शुरू की।  
राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने किया था सम्मानित  
 डॉ. चवन ने उम्मीद नामक एक परियोजना की कल्पना की और वर्तमान में चंडीगढ़ में उम्मीद के विभिन्न आऊटलेट्स पर बौद्धिक विकलांगता वाले 60 लोगों को रखा गया है। उम्मीद को साल 2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से सर्वश्रेष्ठ प्लेसमैंट एजैंसी की श्रेणी में राष्ट्रपति पुरस्कार दिया था। साथ ही प्रयत्न नाम के एक और प्रोजैक्ट ने शहर में मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए नौकरी के अवसर पैदा किए। डॉ. चवन के इन्ही कामों को देखते हुए साल 2013 में सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति के रूप में उन्हें दूसरा राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था।  
 
वे गाइड की तरह थे
हम सब के लिए वे एक गाइड की तरह थे। डॉ. चवन को एडमिस्ट्रेशन लैवल का एक बहुत बड़ा अनुभव था। इसी वजह से जी.एम.सी.एच. ने काफी ग्रोथ की। बीमारी के दौरान भी वह अहम फैसलों को लेकर अपनी राय देते थे।  
-प्रो. जसबिंदर कौर, एक्टिव डायरैक्टर, जी.एम.सी.एच.
 
उनकी डिक्शनरी में ना शब्द नहीं था
मैं साल 1998 में जी.एम.सी.एच. आया था। उस वक्त डॉ. चवन साइकैट्रिक डिपार्टमैंट में प्रोफेसर थे। वे बहुत ही एनर्जेटिक इंसान थे। न सिर्फ डॉक्टर्स बल्कि मरीजों के साथ उनका अच्छा तालमेल रहता था। मैं जब डायरैक्टर की पोस्ट पर था, हर चीज में वे अपनी राय देते थे। इनकी डिक्शनरी में ना शब्द नहीं था। मैडीकल फील्ड के लिए एक बहुत बड़ा नुक्सान है। मेरी रिटायरमैंट के बाद भी हम संपर्क में थे। हॉस्पिटल में किए उनके काम को नहीं भुलाया जा सकता। नैशनल कॉन्फ्रैंस, सी.एम.ई., साइकैट्रिक में पी.जी. कोर्स समेत कई नई सुविधाएं उन्होंने ही शुरू की हैं।
प्रो. जनमेजा, हैड, रेस्पिरेटरी यूनिट, महर्षि मारकंडेश्वर यूनिवर्सिटी, सोलन
व एक्स डायरैक्टर, जी.एम.सी.एच. 32

बहुत अलग थी सोच 
साइकैट्री की फील्ड को जितना बढ़ावा इन्होंने दिलाया, उतना शायद ही दूसरा कर पाए। उन्होंने बहुत सारे इंस्टीच्यूट, एन.जी.ओ. बनाए। उनकी सोच आम लोगों से बहुत अलग थी। खास बात यह थी कि जो वह सोचते उसे करते जरूर थे। बहुत से प्रोफेशनल साइकैट्रिस्ट ने उनके साथ काम किया, जिसकी वजह से उन्हें भी ग्रो करने का मौका मिला। यही नहीं, ग्रिड में रहने वाले बच्चों के परिवारों के साथ भी उनका पसर्नल टच था।
प्रो. प्रीति अरुण, साइकैट्रिस्ट, जी.एम.सी.एच.      

बच्चों ने अपना गॉड फादर खो दिया    
जिन बच्चों को सोसायटी एक बोझ समझती है, उन्हें डॉ. चवन ने अपना समझा। वे अक्सर कहते थे कि ये बच्चे स्पेशल हैं, जिन्हें खास लगाव और प्यार की जरूरत है। शहर में ऐसे बहुत से बच्चे हैं जो मेंटली डिसेबल हैं। उन बच्चों के गॉड फादर चले गए। इन बच्चों के अभिभावक खुद कई बार निराश हो जाते थे, ऐसे में सर हमारा हौसला बढ़ाया करते थे। ऐसे कई मां-बाप हैं, जो उनकी बदौलत ही अपने बच्चों को आज अच्छी परवरिश दे रहे हैं। आज असल में इन बच्चों ने अपना गॉड फादर खो दिया।
-पूजा, प्रैजीडैंट, ग्रिड पैरेंट्स एसोसिएशन  
 

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