Edited By Vikash thakur,Updated: 11 Mar, 2021 08:07 PM
‘शोध पत्र में खुलासा पुलिस के शब्द और व्यवहार करते हैं दहेज पीड़िता को मैंटल टॉर्चर’
‘दहेज पीड़िताओं को न्याय दिलवाने को आयोग ने की सिफारिशें’
‘पीड़िता पर पुलिस बनाती है समझौते के लिए दबाव’
चंडीगढ़, (अर्चना सेठी): दहेज हत्या करने वाले अपराधी को फांसी की सजा मिलनी चाहिए। भारतीय दंड संहिता के कानून सैक्शन 304 बी में संशोधन की जरूरत है, ताकि दहेज लोभी व्यक्ति को अपने कृत्य की सख्त सजा मिल सके और समाज में भी यह संदेश पहुंचे कि दहेज के लालचियों को कानून बख्शेगा नहीं। यह सिफारिश हरियाणा राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्ययन में की गई है। अध्ययन की रिपोर्ट यह भी कहती है कि दहेज प्रताडऩा के मामलों में पीड़िता के साथ पुलिस का व्यवहार टॉर्चर से कम नहीं होता। दहेज मांग से जुड़ी शिकायत करने वाली महिला को पुलिस अपनी भाषा और आचरण से मानसिक तौर पर पीड़ित करती है। महिला की शिकायत के बावजूद आरोपियों के खिलाफ मामला ना दर्ज कर, महिला के साथ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर दबाव बनाने की कोशिश की जाती है कि जिससे वह दहेज लोभियों के साथ समझौता करने के लिए मजबूर हो जाती है। ऐसे में पुलिस को दहेज मांग से संबंधित मामलों में संवेदनशील होने की जरूरत है। सिर्फ इतना ही नहीं ऐसे मामलों के निवारण के लिए दहेज निषेध अधिकारी की नियुक्ति करना जरूरी है।
‘दहेज निषेध अधिकारी की नियुक्ति की जाए’
अध्ययन का कहना है कि दहेज और वैवाहिक विवादों से संबंधित मामलों को पुलिस न सिर्फ आठ साल लंबा खींचती है बल्कि पीड़िता और उसके परिवार पर समझौते के लिए दबाव भी बनाती है। ऐसे में आयोग ने सिफारिश की है कि राज्य सरकारें दहेज निषेध अधिकारियों की संबंधित राज्य में नियुक्ति करें ताकि महिलाएं दहेज संबंधित अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकें।
अधिकारी को जिम्मेदारी सौंपी जाए कि वह नियमित तौर पर वर्कशॉप और सैमीनारों के आयोजन से महिलाओं में जागरूकता बढ़ाएं। अध्ययनकर्ता सान्या सपरा ने सिफारिश की है कि सर्वोच्च न्यायलय के आदेशों को ध्यान में रखते हुए दहेज से संबंधित मामलों का 6 महीनों मेंं निपटारा किया जाना चाहिए। समाज में एक अभियान की शुरूआत करनी चाहिए, ताकि ग्रामीण तबके में रहने वाली महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकें। महिलाएं अगर साक्षर और आॢथक स्वतंत्र होंगी तो दहेज जैसा कलंक खुद ही समाज से दूर हो जाएगा।
सान्या ने कहा कि न्यायालयों को भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए दहेज लोभी अपराधियों को तकनीकी दांवपेंच की मदद से मामले में बचकर जाने नहीं देना चाहिए। एक सिफारिश कहती है कि दहेज हत्या की बली चढऩे वाली महिला की मौत से पहले जो आखिरी बयान लिए जाते हैं उनकी वीडियोग्राफी जरूर करनी चाहिए, ताकि आग में झुलसी पीड़िता के बयानों को उसकी मौत के बाद बदला न जा सके। दहेज और वैवाहिक विवादों से जुड़े मामलों की अध्ययनकर्ता का कहना है कि वैवाहिक विवादों में पुलिस ऐसी भाषा का इस्तेमाल और इशारे करती है कि पीड़िता पुलिस स्टेशन जाने से ही घबराने लगती है, जबकि पीड़िता के साथ ऐसे समय में सहानुभूतिपूर्वक शब्दों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अध्ययन की रिपोर्ट कहती है कि इंडियन पैनल कोड के सैक्शन 304बी में संशोधन की जरूरत है, ताकि दोषी व्यक्ति को दहेज हत्या के लिए फांसी मिल सके।
‘दहेज लोभी आज भी करते हैं महिलाओं की प्रताडऩा’
अध्ययनकर्ता का कहना है कि समय के साथ दहेज के मायने बदल गए हैं, परंतु पीड़िता की प्रताडऩा और दुव्र्यवहार आज भी जारी है। महिलाओं को दहेज के कलंक से बचाने के लिए राज्य सरकार को महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है। सरकार ने समाज से दहेज के खात्मे के लिए कई कानून बनाए हैं जैसे दहेज निषेध अधिनियम 1961, दहेज हत्या के लिए धारा 304 बी, पति और ससुराल पक्ष द्वारा दहेज प्रताडऩा के लिए धारा 398ए, दहेज हत्या की आशंका के लिए 113 बी इत्यादि बनाए गए हैं। किसी भी महिला की रहस्यमयी मौत की जांच पुलिस और जांच अधिकारी को डाक्टर के साथ मिलकर करनी चाहिए, ताकि मृतक महिला का पोस्टमार्टम समय पर किया जा सके और मामले में फॉरैंसिक विशेषज्ञों का परामर्श भी हासिल किया जा सके।
ऐसे मामले पुलिस द्वारा तुरंत रजिस्टर किए जाने चाहिए, ताकि पीड़ित महिला की चोटों का तुरंत ब्यौरा हासिल किया जा सके। जिस घर में पीड़िता की रहस्यमयी स्थिति में मौत हुई हो उस घर को तुरंत सील किया जाना चाहिए, ताकि अपराधी सबूतों के साथ छेड़छाड़ न कर सके। दहेज हत्या से जुड़े मामलों में किया अध्ययन कहता है कि बहुत से दहेज हत्या के मामले बाद में महिला द्वारा आत्महत्या और दुर्घटना में तबदील कर दिए गए। अध्ययनकर्ता का कहना है कि दहेज हत्या समाज का एक ज्वलंत मुद्दा है। ऐसे मामलों के लिए महिला कल्याण संगठनों, पुलिस, पब्लिक सर्वेंट और न्यायपालिका को चाहिए कि वह मिलकर पीड़िता को न्याय दिलवाने के लिए काम करें ताकि दोषी को सख्त से सख्त सजा मिल सके।
‘महिलाओं की पुलिस थानों में नहीं होती सुनवाई’
हरियाणा मानव अधिकार आयोग के सदस्य दीप भाटिया का कहना है कि अध्ययनकर्ता सान्या ने दहेज से संबंधित विभिन्न मामलों का अध्ययन किया है। दहेज और महिला प्रताडऩा से संबंधित कानूनों की शोधपत्र में जानकारी भी दी है। देखने में आया है कि आज भी बहुत सी महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं। महिलाएं दहेज प्रताडऩा या वैवाहिक विवाद से संबंधित शिकायत लिखवाने जाती हैं तो उनकी सुनवाई नहीं की जाती। बहुत सी महिलाएं आज भी नहीं जानती की दहेज की मांग पर पुलिस से शिकायत करनी है। बहुत सी महिलाएं परेशान आकर आत्महत्या कर लेती है। ऐसे में दहेज निषेध अधिकारी की नियुक्ति समाज में जागरूकता फैलाएगी।
फोटो : डीडैथ के नाम से।