GMCH-32 में डेंगू से 6 साल के बच्चे की मौत, डॉक्टरों पर लापरवाही के आरोप

Edited By Priyanka rana,Updated: 18 Nov, 2019 09:40 AM

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जी.एम.सी.एच.-32 में डाक्टरों की लापरवाही से एक 6 साल के बच्चे की मौत हो गई। बच्चे के परिजनों का आरोप है कि सही वक्त पर इलाज न मिलने के कारण बच्चे की मौत हुई है।

चंडीगढ़(पाल) : जी.एम.सी.एच.-32 में डाक्टरों की लापरवाही से एक 6 साल के बच्चे की मौत हो गई। बच्चे के परिजनों का आरोप है कि सही वक्त पर इलाज न मिलने के कारण बच्चे की मौत हुई है। 6 साल के इंद्रजीत को डेंगू की वजह से 16 नवम्बर को शाम 6 बजे जी.एम.सी.एच. में एडमिट किया गया था, लेकिन रविवार सुबह 4 बजे बच्चे की मौत हो गई। परिवार जगतपुरा का रहना वाला है। 

बच्चे के चाचा दीना चंद के मुताबिक बच्चे को 3-4 दिन से हल्का बुखार था व पेट खराब था। प्राइवेट डाक्टर से टैस्ट कराने पर डेंगू की पुष्टि हुई थी। इसके बाद वह बच्चे को अस्पताल लेकर आए थे, लेकिन शाम 6 से सुबह 3 बजे तक कोई भी सीनियर डाक्टर बच्चे को देखने नहीं आया। वहां मौजूद इंटर्न ही बच्चे को देखते रहे, जिन्हें सही से इंजैक्शन लगाना भी नहीं आ रहा था। जिस वक्त बच्चे को इलाज के लिए अस्पताल लाया गया था। उसका बुखार हल्का था व तबीयत भी ज्यादा खराब नहीं थी। 

वहीं अस्पताल पहुंचते ही सुधार होने की बजाय उसकी हालत और बिगडऩे लगी। वहां मौजूद जूनियर डाक्टरों से जब इस बारे में पूछा तो वह बच्चे को यहां से ले जाने की बात बोलने लगी। बच्चे के प्लेटलैट 38 हजार के करीब थे, जिस वक्त उसे एडमिट कराया गया था। 

हालत ज्यादा खराब होने पर डाक्टरों ने परिवार वालों से डॉक्यूमैंट्स पर साइन करने की बात भी कही जिस पर बच्चे की तबीयत अस्पताल में आने से पहले ही ज्यादा खराब होने की बात लिखी गई थी, हालांकि परिजनों ने साइन करने से मना कर दिया। पिता अजय पाल के तीन बच्चों में इंद्रजीत सबसे छोटा था। रविवार सुबह 4 बजे मौत के बाद परिजनों ने पोस्टमॉर्टम करवा बच्चे के शव को शाम 5 बजे दफना दिया है। 

पुलिस को दी शिकायत :
दीना चंद ने बताया कि मामले को लेकर उन्होंने सैक्टर-34 पुलिस स्टेशन में भी शिकायत भी दर्ज करवाई है। वहीं अस्पताल प्रशासन अपनी गलती मानने को तैयार नहीं। उनका कहना है कि बच्चे की हालत पहले ही खराब थी, जहां तक इलाज की बात है तो वह सही तरीके से दिया गया है। 

इंटर्न के हवाले होते हैं मरीज :
जी.एम.सी.एच. में लापरवाही का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई दफा वहां इस तरह के मामले सामने आते रहे हैं। रात को एमरजैंसी में जूनियर व स्टूडैंट्स भी ड्यूटी पर होते हैं। सीनियर व कन्सल्टैंट ऑन कॉल रहते हैं। ऐसे में मरीजों को इलाज के लिए परेशानी का सामना करना पड़ता है। 

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