सरकारी स्कूलों में टीचर्स करवाएंगे 17 प्वाइंट्स पर पढ़ाई

Edited By Priyanka rana,Updated: 18 Aug, 2019 02:52 PM

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एक समय था, जब स्कूलों में थ्यौरी की क्लासिस पर ज्यादा फोकस किया जाता है, लेकिन अब समय बदलने के साथ-साथ यह परंपरा भी बदलने लगी है।

चंडीगढ़(वैभव) : एक समय था, जब स्कूलों में थ्यौरी की क्लासिस पर ज्यादा फोकस किया जाता है, लेकिन अब समय बदलने के साथ-साथ यह परंपरा भी बदलने लगी है। एक कहावत है बच्चों को बताओगे तो वह भूल जाएंगे, अगर दिखाओगे तो याद हो सकता है, लेकिन अगर बच्चों को पढ़ाई में इंवॉल्व करोगे तो वह कभी नहीं भूलते हैं। 

चंडीगढ़ एजुकेशन डिपार्टमैंट अब इस कहावत को सच करने जा रहा है। पहली बार विभाग ने सभी टीचर्स के लिए दिशा-निर्देश बनाए हैं, जिसमें 17 प्वाइंट्स में बताया गया है कि टीचर्स को क्लासरूम में क्या-क्या करना है और 10 प्वाइंट ऐसे भी हैं, जिनमें बताया गया है कि टीचर्स को क्लासरूम में क्या नहीं करना है। यह दिशा-निर्देश इसी सत्र से लागू हो जाएंगे। 

शहर के सभी सरकारी स्कूलों में पहली से 12वीं तक विषयों के स्टूडैंट्स को पढ़ाने के तरीके में बदलाव किया जा रहा है। टीचर्स को निर्देश दिए गए हैं कि वह बच्चों से जितना हो सके उतना जुड़ें। क्रिएटिव थिंकिंग, प्रैक्टिकल नॉलेज और साइंटिफिक टैंपर पर दे जोरटीचर्स को सलाह दी गई है कि वह स्टूडैंट्स के क्रिएटिव थिंकिंग, प्रैक्टिकल नॉलेज और साइंटिफिक टैंपर पर जोर देंगे। आसान तरीकों से बच्चों का ज्ञान बढ़ाने के लिए कहा गया है। 

क्रिएटिव थिंकिंग, प्रैक्टिकल नॉलेज और साइंटिफिक टैंपर का टीचर्स को स्वंय ही चुनाव करना पड़ेगा और टीचर्स को किस तरह से पढ़ाना है इसका निर्णय भी टीचर्स को ही करना है। डिपार्टमैंट की कोशिश है कि वह पढ़ाई को दिलचस्प बना दें, ताकि बच्चे दिमाग पर बोझ न लेकर रुचि के साथ पढ़ाई करें। किताबी पढ़ाई के साथ-साथ प्रैक्टिकल चीजों की जानकारी देना जरूरी है। 

स्टूडैंट्स को उदाहरण के लिए अगर बच्चे को बारिश पर कोई कविता याद करा रहे हों तो उनकी उम्र के हिसाब से किसी फिल्मी गाने को जोड़कर समझा सकते हैं। स्पोर्ट्स की जानकारी देनी हो तो बड़े खिलाडिय़ों का जिक्र करके बता सकते हैं। सब्जैक्ट्स को सवाल-जवाब के जरिए पढ़ाएं। इसके लिए खुद भी तैयारी करें। ग्राफिक टेक्नीक का इस्तेमाल करें। क्योंकि बच्चों को शब्दों से ज्यादा तस्वीरें अपने करीब खींचती हैं।

टीचर्स को ये दी सलाह :
-क्लास रूम में एक जीवंत वातावरण बनाएं। ताकि छात्र न केवल सीखने का आनंद लें, बल्कि सीखने के लिए उसमें एक ललक पैदा हो।
-सब्जैक्ट को इस ढंग से प्रस्तुत किया जाए कि स्टूडैंट्स में उसे पढऩे और समझने की जिज्ञासा पैदा हो। वह सब्जेक्ट के बारे में विभिन्न सवाल पूछें।
-कमजोर स्टूडैंट्स को भी टीचर्स यह विश्वास दिलाएं कि वह कर सकते हैं। बताया जाए कि उनमें लक्ष्य हासिल करने की क्षमता है।
-पढ़ाने की पुरानी प्रथाओं, प्रक्रियाओं और कार्यप्रणालियों को छोड़ अपने नॉलेज को नियमित रूप से अपडेट करें। नए विचारों और दृष्टिकोणों के लिए हमेशा तैयार रहें।
-छात्रों के बीच जिज्ञासा और पूछताछ आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना।
-टीचर्स की यह कोशिश होनी चाहिए कि स्टूडैंट्स के हर टॉपिक का बेसिक क्लीयर हो।7. स्टूडैंट्स में साइंटिफिक टैंपर, तर्कसंगत दृष्टिकोण और पॉजिटिव एटीट्यूड को बढ़ावा दें।
-टॉपिक को समझाने के लिए हमारे आपस होने वाली चीजों से उसे को-रिलेट कर समझाएं ।
-एक्सपेरिमैंटल लर्निंग को प्रमोट किया जाए। इनोवेटिव, प्रैक्टीकल नॉलेज को बढ़ावा दें। टीचिंग प्रोसेस को रोचक बनाने के लिए अधिक से अधिक उपकरणों का उपयोग करें।
-छात्रों को सूचना/डेटा और स्थितियों का विश्लेषण करने के लिए प्रोत्साहित करें। क्रिएटिव थिंकिग को बढ़ावा देने के लिए टीचर्स प्रयास करें।
-सूचना, आकार और ग्राफिक टूल के महत्वपूर्ण विश्लेषण को बढ़ावा देना।
-स्टूडैंट्स में सेल्फ लर्निंग को बढ़ावा देना।
-गणित, साइंस मानविकी और आर्ट में टीचर्स यह सुनिश्चित करें कि स्टूडेंट का कांसेप्ट पूरी तरह से क्लीयर हो।
-स्टूडेंट के बैकग्राउंड को जानने का प्रयास करें। अगर बच्चा किसी विषय को समझ नहीं पा रहा है तो उसकी परेशानी समझें और फिर उसे हल करने का प्रयास करें।
-सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, अनाथ, स्पेशल श्रेणी से आने वाले स्टूडेंट्स के साथ टीचर्स करुणामय व्यवहार करें। उन्हें समझने का प्रयास करें।
-जो सीखने में थोड़े कमजोर हैं, उन पर ज्यादा समय लगाएं।
-पीसा फ्रेमवर्क और पीसा टेस्ट आइटम की आवश्यकता के अनुसार टीचर्स खुद सको ढालें और स्टूडेंट्स को तैयार करें।

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