Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Jan, 2018 10:00 AM
मां-बाप के सामने अगर बच्चा दुनिया से चला जाए तो उससे बड़ा सदमा कोई नहीं हो सकता।
चंडीगढ़(पाल) : मां-बाप के सामने अगर बच्चा दुनिया से चला जाए तो उससे बड़ा सदमा कोई नहीं हो सकता। उसकी कमी तो कोई पूरा नहीं कर सकता। जब डाक्टर ने उसके ओर्गन डोनेट करने को कहा तो फैसला लेना तो दूर की बात थी हमें इस पर यकीन करना बहुत मुशिकल था कि हमारा बेटा इस दुनिया में ही नहीं रहा। लेकिन हमारा बेटा जहां भी होगा, हमें यकीन है कि इस फैसले से काफी खुश होगा। ऊना के रहने वाले 25 वर्षीय युवक परमजीत सिंह 9 जनवरी को मोटरसाइकिल से जा रहा था और इस दौरान वह सड़क हादसे का शिकार हो गया।
स्थानीय अस्पताल ने भी उसकी हालत देखते हुए उसी दिन पी.जी.आई. रैफर कर दिया था। चोटें इतनी ज्यादा थी कि डाक्टर्स ने उसे 11 जनवरी को उसे ब्रेन डैड घोषित कर दिया। पिता सतीश कुमार और मां कांता देवी की मानें तो तो ब्रेन डैड होने के बाद भी बेटे को लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाने की परमिशन देना काफी मुश्किल था। हमारा बेटा हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था। यही वजह थी कि हमने सोचा कि अगर बेटा हमारी जगह होता तो वह भी यही फैसला लेता। जवान बेटे को खोने का गम तो ताऊम्र रहेगा लेकिन संतुष्टि रहेगी कि हमारे बेटे की बदौलत आज कई लोगों को एक नई जिंदगी मिल पाई है।
इस वर्ष का पहला ओर्गन ट्रांसप्लांट :
परमजीत की बदौलत पी.जी.आई. में 5 लोगों को नई जिंदगी मिल पाई है। 11 जनवरी को ब्रेन डेड होने के बाद डाक्टरों ने लीवर, दो मरीजों को किडनी व दो और मरीजों को कॉर्नियां ट्रांसप्लांट किया है। पी.जी.आई. का इस वर्ष का यह पहला ओर्गन ट्रांसप्लांट है। पी.जी.आई. ने पिछले वर्ष देश के दूसरे सभी संस्थानों से ज्यादा 44 ब्रेन डैड मरीजों को ओर्गन ट्रांसप्लांट किए थे जिसकी बदौलत 107 लोगों को नई जिंदगी मिल पाई थी।