Edited By bhavita joshi,Updated: 16 Feb, 2019 10:05 AM
पिछले महीने पी.जी.आई. में पहली बार हुए लाइव डोनर लीवर ट्रांसप्लांट में बच्चे की मौत हो गई है।
चंडीगढ़ (पाल): पिछले महीने पी.जी.आई. में पहली बार हुए लाइव डोनर लीवर ट्रांसप्लांट में बच्चे की मौत हो गई है। 25 जनवरी को पी.जी.आई. के इतिहास में पहली बार एक लाइव डोनर लीवर ट्रांसप्लांट (एल.डी.एल.टी.) किया गया था। ऐसा करने वाला पी.जी.आई. नॉर्थ इंडिया का पहला अस्पताल बना था। पी.जी.आई. काफी अर्से से ब्रेन डेड मरीजों के ओर्गन ट्रांसप्लांट करने में देश के चुनिंदा अस्पतालों में शुमार है लेकिन लाइव लीवर डोनर ट्रांसप्लांट को लेकर अस्पताल काफी अर्से से काम कर रहा था।
पी.जी.आई. सर्जन, पैडएट्रिक, एनेस्थिसिया, टैक्नीकल और नर्सिंग स्टाफ की टीम ने एक 6 साल के बच्चे में लीवर ट्रांसप्लांट के इस प्रोसैस को पूरा किया था। बच्चा झारखंड का रहने वाला था, जिसे यहां पी.जी.आई. एडवांस पैडएट्रिक सैंटर में रैफर किया गया था। बच्चे को उसकी दादी ने अपना लीवर डोनेट किया था। वह नेहरू अस्पताल के लीवर आई.सी.यू. में एडमिट था। 7 से ज्यादा डाक्टरों की टीम ने लीवर ट्रांसप्लांट किया था।
डोनर की लाइफ भी खतरे में होती है
कैडेवर के मुकाबले लाइव लीवर ट्रांसप्लांट करने का प्रोसैस काफी मुश्किल है। मरीज के साथ डोनर की लाइफ भी खतरे में होती है। ज्यादा मुश्किल लीवर मैचिंग को लेकर होती है। ब्लड के साथ साथ जैनेटिक भी मैच होना इसके लिए जरूरी हो जाता है। लीवर बॉडी का एक ऐसा पार्ट है जिसका अगर थोड़ा सा हिस्सा काटकर ट्रांसप्लांट भी कर दिया जाए तो वह दोबारा ग्रो कर लेता है लेकिन ट्रांसप्लांट के लिए एक हैल्दी लीवर मिलना भी काफी रेयर होता है।