PGI रिसर्च में खुलासा, ज्यादा स्मार्टफोन का इस्तेमाल बच्चे के लिए खतरनाक

Edited By Priyanka rana,Updated: 10 Nov, 2018 08:55 AM

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आज हर चीज नेट पर मौजूद है। स्कूल लैवल पर कम्पीटिशन इतना बढ़ गया है कि पैरेंट्स भी बच्चों को स्मार्ट फोन्स व टैब खुद देते हैं।

चंडीगढ़(पाल) : आज हर चीज नेट पर मौजूद है। स्कूल लैवल पर कम्पीटिशन इतना बढ़ गया है कि पैरेंट्स भी बच्चों को स्मार्ट फोन्स व टैब खुद देते हैं। मगर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इससे बच्चे डिप्लोपिया (डबल दिखना) नाम का बीमारी शिकार हो रहे हैं। पी.जी.आई. एडवांस आई. सैंटर की एक लैटेस्ट रिसर्च में सामने आया है कि बच्चों में जरूरत से ज्यादा स्मार्ट फोन का इस्तेमाल उनकी आंखों की रोशनी पर बहुत बुरा असर डाल रहा है। 

इस कारण उन्हें डिप्लोपिया होने के चांस तो बढ़ ही रहे हैं। साथ ही बच्चों में भैंगापन (आंखों की पुतलिया टेड़ी होना) भी हो रहा है। हाल ही में यह स्टडी न्यूरोपैथेमोलॉजी जरनल में  पब्लिश हुई है। पी.जी.आई. पैडियाट्रिक ऑप्थोमोलॉजी डिपार्टमैंट से डा. सवलीन, डा. मनप्रीत और डा. जसप्रीत सुखिजा ने इस स्टडी पर काम किया है। 

सही वक्त पर करवाएं इलाज :
पी.जी.आई. ऑप्थोमोलॉजी क्लीनिक में आने वाले मरीजों में से 25 प्रतिशत मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल को लेकर आते हैं। डा. मनप्रीत बताते हैं कि इसके सिम्पटम्स एकदम सामने आते हैं। अगर सही वक्त पर अगर इसका इलाज करवाया जाए तो यह ठीक हो जाता हैं। 

आजकल स्कूली बच्चों के लिए टैब या स्मार्ट फोन जरूरी भी है लेकिन लगातार 4 घंटे या ज्यादा इस्तेमाल सही नहीं है इसलिए हम हमेशा कहते हैं अगर फोन यूज करना है तो पार्ट्स में बांट लेना जरूरी है। इन 4 घंटों को आप 1 घंटे या डेढ़ घंटे में बांट सकते हैं। अंधेरे में फोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। 

उपचाराधीन 3 बच्चे स्टडी में किए शामिल :
पी.जी.आई. एडवांस आई सैंटर के पैडियाट्रिक ऑप्थमोलॉजी क्लीनिक की डा. मनप्रीत ने बताया कि बच्चों में स्मॉर्टफोन का इस्तेमाल बहुत ज्यादा हो रहा है। हम क्लीनिक में आने वाले  पैरेंट्स को साइड इफैक्टस के बारे में अवेयर करते हैं लेकिन इनके साइड इफैक्टस को लेकर हमारे पास कोई फैक्ट्स नहीं थे जिसके कारण हमने यह स्टडी की है। 

पी.जी.आई. आई सैंटर से इलाज करवा रहे 14 साल से कम तीन बच्चों को इसमें शामिल किया गया था। मरीजों की हिस्ट्री चैक की गई तो मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल सामने आया था। स्टडी में देखा गया कि जैसे ही मरीजों को फोन का इस्तेमाल बंद किया गया उनकी बीमारी में रिकवरी भी अच्छी हुई। 

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