Edited By bhavita joshi,Updated: 15 May, 2019 11:30 AM
राइट टू इनफॉर्मेशन (आर.टी.आई.) का नियम लागू करने की मंशा यह थी कि अगर लोगों को किसी भी बात की जानकारी चाहिए तो वह आर.टी.आई. से हासिल कर सकते हैं।
चंडीगढ़(वैभव) : राइट टू इनफॉर्मेशन (आर.टी.आई.) का नियम लागू करने की मंशा यह थी कि अगर लोगों को किसी भी बात की जानकारी चाहिए तो वह आर.टी.आई. से हासिल कर सकते हैं। लगता है अब यह आर.टी.आई. अब मात्र एक मजाक बन कर रह गई है। आर.टी.आई. एक्ट-2005 के नियमों की धज्जियां उस वक्त उड़ीं, जब चंडीगढ़ के एक सरकारी स्कूल से जानकारी मांगने पर सही जानकारी नहीं दी। चंडीगढ़ निवासी रणधीर सिंह ने गवर्नमैंट मॉडल सीनियर सैकेंडरी स्कूल (जी.एम.एस. एस..एस.) सैक्टर-37 से स्कूल से जुड़ी कुछ जानकारी मांगी थी जिसकी स्कूल प्रशासन ने सही जानकारी नहीं दी।
रणधीर ने बताया कि उसने आर.टी.आई. के तहत जो जानकारी स्कूल प्रशासन से मांगी थी, वह ऑफिशियल थी और ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसमें स्कूल के किसी व्यक्ति विशेष की व्यक्तिगत जानकारी मांगी गई हो। रणधीर ने स्कूल प्रशासन पर आरोप लगाया कि उसने जब पहली आर.टी.आई. डाल कर जवाब मांगा तो स्कूल प्रशासन ने उसका बहुत देर बाद जवाब दिया जो संतोषजनक भी नहीं था। इसके बाद मैंने तीन आर.टी.आई. डालीं, जिसका भी प्रशासन ने सही जवाब नहीं दिया। रणधीर ने आरोप लगाया कि स्कूल प्रशासन जानकारी देने की बजाय सिर्फ खानापूर्ति ही कर रहा है।
सोशियोलॉजी लैक्चरर ने प्रिंसीपल की मोहर लगाकर दिया आर.टी.आई. का जवाब
रणधीर ने कहा कि जी.एम.एस.एस..एस.-37 में 2003 से काम कर रही सोशियोलॉजी की लैक्चरर नरेंद्र कौर ने एक आर.टी.आई. का जवाब सैंट्रल पब्लिक इनफॉर्मेशन आफिसर बन कर दिया। नरेन्द्र कौर यही नहीं रुकी, उन्होंने आर.टी.आई. के जवाब में खुद को वाइस प्रिंसीपल लिखकर और प्रिंसीपल की मोहर पर अपने ही सिग्नेचर कर आर.टी.आई. का जवाब दिया। नियम के मुताबिक एक लैक्चरर कभी भी सैंट्रल पब्लिक इनफॉर्मैशन आफिसर के सिग्नेचर कर आर.टी.आई. का जवाब नहीं दे सकता। आर.टी.आई. का जवाब सिर्फ स्कूल का प्रिंसीपल ही अपने सिग्नेचर करके दे सकता है।
प्रिंसीपल के रूम में लगे ए.सी. की भी जानकारी स्कूल के पास नहीं
रणधीर ने आर.टी.आई. डालकर स्कूल प्रशासन से यह भी जानकारी मांगी थी कि स्कूल के प्रिंसीपल के कमरे जो ए.सी. लगा हुआ है, उसे इंस्टॉल करने की कॉपी उन्हें उपलब्ध करवाई जाए। इस सवाल के जवाब में स्कूल प्रशासन ने केवल इतना ही लिखा-नो रिकॉर्ड अवेलैबल। इसका मतलब यही है कि स्कूल प्रिंसीपल के कमरे में जो ए.सी. लगा है, उसकी जानकारी स्कूल प्रबंधन के पास है ही नहीं। रणधीर ने बताया कि आर.टी.आई. के साथ स्कूल प्रशासन का यह सबसे बड़ा मजाक है।
तत्कालीन कार्यकारी प्रिंसीपल ने किया सरकारी सामग्री का दुरुपयोग
रणधीर ने कहा कि स्कूल का यह हाल है था कि तत्कालीन कार्यकारी प्रिंसीपल इंद्रबीर कौर खुद ही सरकारी सामग्री का दुरुपयोग कर रही थीं। मैंने जो आर.टी.आई. में 9 सवाल पूछे थे उनमें से कुछ प्रिंसीपल द्वारा की जा रही सरकारी सामग्री के दुरुपयोग से संबंधित भी थे, जिनकी जानकारी मांगी गई थी। स्कूल प्रशासन से बार-बार इन्हीं 9 सवालों का जवाब मांगा गया है जो वह नहीं दे पा रहा है। अगर स्कूल प्रशासन सच्चा है तो वह क्यों नहीं सही जानकारी सार्वजनिक कर रहा।
डी.ई.ओ. को शिकायत की थी इंद्रबीर को शिक्षा विभाग ने प्रोमोशन कर किया सेवा मुक्त
स्कूल की तत्कालीन कार्यकारिणी प्रिंसीपल की शिकायत रणधीर ने डी.ई.ओ. को भी की थी। शिक्षा विभाग के आफिसर्स ने कार्यकारी प्रिंसीपल इंद्रबीर कौर पर कार्रवाई तो नहीं की, उल्टा इंद्रबीर कौर की डी.पी.सी. कर रैगलुर प्रिंसीपल बनाकर सेवा मुक्त कर दिया।
हियरिंग के लिए मिला 9:30 बजे का वक्त
रणधीर ने बताया कि उन्हें एक आर.टी.आई. का जवाब तो मिला लेकिन उसकी हियरिंग के लिए रात के 9:30 बजे का वक्त दिया गया था। इस बात को लेकर उन्होंने शिक्षा विभाग को लैटर भी लिखा था, जिसके बाद उन्हें अगली तारीख दी गई थी।
टीचर्स की गलत दिखाई नियुक्ति
रणधीर ने बताया कि जब जी.एम.एस.एस.एस.-37 में बतौर फिजिकल एजुकेशन टीचर की तैनाती की नियुक्ति की समय अवधि की जानकारी मांगी तो उसके जवाब में स्कूल प्रशासन ने जवाब दिया गया कि वह 2018 से स्कूल में ज्वाइन हुए हैं, जबकि वह वर्ष 2003 से स्कूल में इस पद पर बने हुए हैं।