Edited By pooja verma,Updated: 25 Mar, 2019 11:47 AM
बौद्धिक विकलांगता के साथ जन्म लेने वाले बच्चों को एक स्पैशल केयर की जरूरत होती है
चंडीगढ़ (पाल): बौद्धिक विकलांगता के साथ जन्म लेने वाले बच्चों को एक स्पैशल केयर की जरूरत होती है। ताकि वह अपने रोजाना के कामों के लिए वह दूसरों पर निर्भर न रहे। ग्रिड (गर्वनमैंट रीहैबलिएटेशन इंस्टीट्यूट फॉर इंटलेक्चुअल डिसेबिलिटीज) के डायरैक्टर प्रो. बी.एस. चवन की माने तो मानसिक तौर दिव्यांग बच्चों को पूरी तरह ठीक तो नहीं किया जाता है।
लेकिन बौद्धिक विकलांगता को जन्म देने वाले कुल कारणों में से 50 प्रतिशत को रोका जा सकता है। प्रो. चवन के मुताबिक ग्रिड में हुई कई रिसर्च में सामने आया है कि गर्भावस्था व नवजात अवस्था में इसका कुछ समाधान हो सकता है।
दिव्यांगों के लिए 1 प्रतिशत आरक्षण
राइट ऑफ पर्संस विद डिसेबिलिटी एक्ट-2016 के तहत सरकारी नौकरियों में दिव्यांगों के लिए 1 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया, जबकि वे पर्संस विद डिसेबिलिटी एक्ट-1995 के तहत 3 प्रतिशत आरक्षण में कवर नहीं किए गए।
कई सरकारी विभागों में कुल नौकरियों का एक प्रतिशत बौद्धिक विकलांगता, मानसिक रोग, ऑटिज्म, मल्टीपल डिसेबिलिटी और वर्गीकृत लर्निंग विकार वाले व्यक्तियों के लिए आरक्षित है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम में जन्म से 18 वर्ष की उम्र में 4-डी (जन्म दोष, विकास में असर, अन्य कमियां और रोगों) को लक्षित करता है।
गर्भवती महिलाओं में खून की कमी है मुख्य कारण
बौद्धिक विकलांगता के मुख्य कारणों में गर्भवती महिला में खून की कमी, अनियंत्रित हाई ब्लड प्रैशर और डायबटीजि, गर्भावस्था के दौरान लंबे वक्त तक ज्यादा बुखार रहना, चोट लगना, अत्यधिक रक्तस्राव, देरी से रोना, नवजात शिशु को पीलिया, और मातृ एवं नवजात संक्रमण शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि डाऊन सिंड्रोम के 90 प्रतिशत से अधिक मामलों को गर्भावस्था के दौरान जैनेटिक सैंटर जी.एम.सी.एच.-32 में डिलीवरी से पहले स्क्रीनिंग के जरिए पहचाना जा सकता है।