हैड कांस्टेबल विजय की लाइब्रेरी में किताबें नहीं नोट और सिक्के

Edited By Priyanka rana,Updated: 15 Oct, 2018 01:24 PM

vijay kumar library

हैड कांस्टेबल विजय की लाइब्रेरी में अंग्रेजों के दौर के नोट और सिक्के

चंडीगढ़(रमेश) : मुगलों के दौर से पहले ही भारत में करंसी का प्रयोग होने लगा था। बाद में अंग्रेज आए और करंसी बदल गई। आने व मासे से शुरू हुआ पैसों का यह खेल 2000 के नोट तक पहुंच गया। 

मासे से 2000 के नोट के बीच के 780 वर्षों में कई सिक्के व नोट भारतीय करंसी के गवाह बने और बंद होते गए। वर्ष-2017 में नोट बंदी तक का हर एक सिक्का व नोट चंडीगढ़ पुलिस के हैडकांस्टेबल विजय ने एकत्रित कर रखा है। विजय 25 वर्षों से इस अनमोल खजाने को जमा कर रहे हैं जोकि अब एक लाइब्रेरी का रूप ले चुका है। 

लाइब्रेरी में अंग्रेजों के दौर के सिक्के भी :
विजय के पास पर 20 पैसे, 10 पैसे, 5 पैसे, 2 पैसे, 1 पैसा, दो आने, एक आना, आधा आना, आप गिनते-गिनते और इन्हें देखते थक जाएंगे। ये गिनती यहीं नहीं रुकती, रुपए की कहानी बड़ी पुरानी है और रुपयों की इस लाइब्रेरी में अंग्रेजों के दौरे के सिक्के भी मौजूद हैं। यहां पर रुपया सिर्फ रुपया नहीं है, एक सफर है करंसी का। एक ऐसी दास्तां जो आज पहुंचते-पहुंचते 2000 के नोट तक पहुंच गई है।  

विजय कुमार के पास आपको पुराने जमाने से लेकर नए जमाने तक के सभी सिक्के मिलेंगे। वहीं, बात करें नोटों की तो आजादी के बाद के सभी नोट उनके पास हैं। वर्ष-1989 से विजय इन सिक्कों की क्लैक्शन करते आ रहे हैं। विजय का कहना है कि उन्होंने उस समय एक अखबार में न्यूज पढ़ी, जिसमें एक व्यक्ति के पास 1 रुपए के 16 सिक्के थे। उसके बाद से विजय का जनून भी जाएगा और आज तक जागा हुआ है। 

परिवार वाले और दोस्त उड़ाते थे मजाक : 
विजय कहते हैं कि पहले तो परिवार वाले और दोस्त उसका मजाक उड़ाते थे लेकिन अब सभी उसकी कलैक्शन में मदद करते हैं। विजय ने कभी अपने इस संग्रह को मीडिया से सांझा नहीं किया लेकिन ‘पंजाब केसरी’ को पता चलते ही उनसे संपर्क कर उन्हें मनाया और उनकी कलैक्शन को सार्वजानिक किया। 
 

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