Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Jul, 2020 08:26 AM
सम्राट चंद्रगुप्त ने एक दिन अपने प्रतिभाशाली प्रधानमंत्री चाणक्य से कहा, ‘‘कितना अच्छा होता कि तुम अगर रूपवान भी होते।’’
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Chanakya Niti: सम्राट चंद्रगुप्त ने एक दिन अपने प्रतिभाशाली प्रधानमंत्री चाणक्य से कहा, ‘‘कितना अच्छा होता कि तुम अगर रूपवान भी होते।’’
चाणक्य ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज रूप तो मृगतृष्णा है। आदमी की पहचान तो गुण और बुद्धि से ही होती है, रूप से नहीं।’’
‘‘क्या कोई ऐसा उदाहरण है जहां गुण के सामने रूप फीका दिखे।’’ चंद्रगुप्त ने पूछा।
‘‘ऐसे तो कई उदाहरण हैं महाराज, चाणक्य ने कहा, ‘‘पहले आप पानी पीकर मन को हल्का करें, बाद में बात करेंगे।’’ फिर उन्होंने दो पानी के गिलास बारी-बारी से राजा की ओर बढ़ा दिए।
‘‘महाराज पहले गिलास का पानी इस सोने के घड़े का था और दूसरे गिलास का पानी काली मिट्टी की उस मटकी का था। अब आप बताएं, किस गिलास का पानी आपको मीठा और स्वादिष्ट लगा।’’
सम्राट ने जवाब दिया, ‘‘मटकी से भरे गिलास का पानी शीतल और स्वादिष्ट लगा एवं उससे तृप्ति भी मिली।’’
वहां उपस्थित महारानी ने मुस्कराकर कहा, ‘‘महाराज हमारे प्रधानमंत्री ने बुद्धिचातुर्य से प्रश्र का उत्तर दे दिया। भला यह सोने का खूबसूरत घड़ा किस काम का जिसका पानी बेस्वाद लगता है। दूसरी ओर काली मिट्टी से बनी यह मटकी, जो कुरूप तो लगती है लेकिन उसमें बहुत से गुण छिपे हैं। उसका शीतल सुस्वाद पानी पीकर मन तृप्त हो जाता है। अब आप ही बतला दें कि रूप बड़ा है अथवा गुण एवं बुद्धि?’’