तेल कीमतों में गिरावट को दिए 5 कारण मात्र छलावा

Edited By ,Updated: 21 Apr, 2016 04:17 PM

oil production

तेल उत्पादन में कमी के लिए दोहा, कतर में तेल उत्पादन करने वाले 18 देशों की बैठक रविवार को बिना किसी समझौते के सम्पन्न हो गई।

दोहा: तेल उत्पादन में कमी के लिए दोहा, कतर में तेल उत्पादन करने वाले 18 देशों की बैठक रविवार को बिना किसी समझौते के सम्पन्न हो गई। गत सप्ताह तेल की कीमत 40 डालर प्रति बैरल तक बढ़ गई थी जब 2 बड़े तेल उत्पादक देशों सऊदी अरब और रूस ने आशा व्यक्त की थी कि तेल उत्पादन को लेकर होने वाली यह बैठक किसी समझौते तक पहुंचेगी किन्तु जैसे ही बैठक का दिन आया इसमें भाग लेने वाले देशों के सुर बदल गए और ईरान ने बैठक में अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा।

इसी तरह सऊदी अरब ने अपने अल्टीमेटम के साथ ईरान के विरोध का समर्थन किया जबकि किसी समझौते तक पहुंचने के लिए ईरान का बैठक में भाग लेना जरूरी था। इसके चलते गत रविवार को बैठक कई घंटों तक चली और अंत में ईरान के तेलमंत्री के बिना बैठक शुरू हुई। इसके बाद रूस और अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने कहा कि बैठक बेनतीजा रही क्योंकि सऊदी अरब और अन्य गल्फ देश ईरान और लीबिया के बिना बैठक के लिए तैयार नहीं थे। अब जबकि दोहा बैठक समाप्त हो चुकी है, अब हम तेल उत्पादन में कमी के लिए जिम्मेदार कारणों को जान सकते हैं।

1. सऊदी अरब ने अपने हितार्थ कार्य किए
बैठक के पहले डिप्टी क्राऊन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और अली अल नैमी आश्वस्त थे, जब उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे ईरान और सऊदी अरब के बिना तेल उत्पादन में कमी के लिए तैयार नहीं होंगे। सऊदी अरब की यही स्थिति और रणनीति रही है। राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक रूप से सऊदी अरब के पास तेल उत्पादन में हुई कमी का आपूर्ति के लिए कुछ भी नहीं है। सऊदी अरब की मुख्य प्राथमिकता अब उसका अपना राष्ट्रीय हित है, रूस, यूनाइटिड स्टेट और वेनेजुएला का हित नहीं।

2. राजनीतिक रूप से अलग-थलग है ईरान
ईरान के तेलमंत्री ने बैठक में न शामिल होने के लिए कहा जिसे ईरानी जनता को आश्वस्त करने के रूप में देखा जा सकता है, किन्तु इससे देश की राजनीतिक मजबूती में कोई मदद नहीं मिली। इस तरत दोहा से यह तस्वीर सामने आएगी कि रूस और सऊदी अरब तेल उत्पादन करने वाले 18 देशों को साथ-साथ लाए लेकिन, ईरान के अड़ियल रवैये से सहमति नहीं बनी। इस बीच सऊदी अरब और दूसरे देश आतंकवाद का समर्थन करने और यमन, सीरिया व ईराक पर सैन्य गतिविधियां जारी रखने के लिए ईरान पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं।

3. उत्पादन को फ्रीज करना कटौती नहीं
ऐसा नहीं है कि कच्चे तेल के उत्पादन को फ्रीज करना पूरी दुनिया को इसकी आपूर्ति करने मे कटौती करना है। क्या उत्पादक देश बड़ी मात्रा में तेल उत्पादन के लिए तैयार हैं, जैसा कि उन्होंने जनवरी में किया था। तब रूस, सऊदी अरब और दूसरे कई देश अधिक तेल उत्पादन कर सकेंगे जैसा कि उन्होंने गत वर्ष किया था। रूस और ईराक ने दोहा वार्ता के पहले अचानक अपना तेल उत्पादन बढ़ा दिया और वर्ष 2016 में अपने आप को अधिक तेल  उत्पादन के लिए प्रतिबद्ध बताया।

4. तेल उत्पादन ही समाधान
अब जबकि दोहा वार्ता पर सहमति नहीं बन सकी है, तेल की कीमतें गिर रही हैं, जैसा कि दोहा वार्ता के पहले कीमतें बढऩे के कयास लगाए जा रहे थे। अमरीका की फै्रकिंग इंडस्ट्री अब बैंक कि कर्जदार नई कंपनियों और प्रत्येक सप्ताह अपनी परिसंपत्तियां बेचने वाली कंपनियों को मजबूत बना रही है। यही नहीं तेल उत्पादन भी अपने आप ही गिरेगा क्योंकि कई कंपनियां बाजार से जा चुकी हैं। सिर्फ उन कंपनियां को छोड़कर जो आॢथक रूप से मजबूत हैं शैल का उत्पादन धीमी गति से कर रही हैं। चीन और भारत से इसकी मांग लगातार धीरे-धीरे बढ़ रही है जिसके चलते तेल उत्पादक कंपनियों को पटरी पर लाना और तेल उत्पादन ही समाधान है।

5. वेनेजुएला और रूस अब भी असुलझे प्रश्न
यद्यपि वेनेजुएला दोहा बैैठक का मजबूत सदस्य था और एक बेनतीजा सहमति से चाहे कच्चे तेल के भाव में उछाल आया है लेकिन यह उछाल वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने के लिए नाकाफी है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या ओपेक अपने सदस्य देशों की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को ऊपर उठा पाएगा? उधर दूसरी तरफ रूस का भारी मात्रा में तेल उत्पादन करना एक बार फिर चर्चा का विषय है।

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